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Success : नागपुर से इंजीनियरिंग करने वाला किसान ऑनलाइन बेच रहा फल, घड़ी भर की फुर्सत नहीं
डिजिटल डेस्क, नागपुर। लर्निंग सेंटर यानी संतरा नगरी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने वाले नीरज ढांडा ने प्रोफेशनल लाइफ से अलग हटकर किसानी में ऐसा हाथ आजमाया कि अब वो दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं। नीरज ने 500 से 600 रुपए किलो फल बेचने शुरु कर दिए, वो भी ऑनलाइन। इस काम के लिए नीरज ने सबसे पहले अपनी एक कंपनी बना ली। इसके बाद हाईवे बेल्ट पर जम्बो अमरूदों की ऑनलाइन डिलीवरी भी शुरु कर दी। वेबसाइट पर ऑर्डर मिलते ही डिलीवरी होने तक ग्राहकों को ऑर्डर ट्रैकिंग की सुविधा भी दी गई। देखते ही देखते इस इंजीनियर किसान ने 36 घंटे में डिलीवरी का टारगेट भी सेट कर लिया। खास बात यह है 10 से 15 दिन तक जंबो अमरूद ताजा रहते हैं, जब्कि साधारण अमरूद दो तीन दिन में ही खराब हो जाते हैं।
जंबो अमरूद के लिए तो धड़ा-धड़ा ऑनलाइन ऑर्डर मिल रहे हैं। नीरज ने उन युवाओं को रास्ता दिखाया है, जो डिग्रियां हासिल कर छोटी- मोटी नौकरी के लिए यहां वहां भटक रहे होते हैं, इसके बाद भी अच्छी नौकरी उनके हाथ नहीं लगती है। कहते हैं न कि वक्त का सही इस्तेमाल ही सफलता की कुंजी होती है।
नीरज की कोशिश रंग लाई। कुरुक्षेत्र के गीता जयंती महोत्सव में उन्हें स्टॉल लगाने के लिए सरकार ने आमंत्रित किया था। वहां मौजूद 700 स्टालों में सबसे ज्यादा भीड़ जम्बो अमरूद के स्टाल पर ही देखने को मिली। इतना ही नहीं नीरज अब ग्रीन टी, आर्गेनिक फूड और शक्कर भी ऑनलाइन बेचना शुरु करने वाले हैं।
दादा जी कहते थे, ख्याल अपना लेकिन पसंद औरों की....हालांकि नीरज इससे इत्तेफाक नहीं रखते थे, वह कहते थे कि ख्याल भी अपना और पसंद भी अपनी। क्योंकि नीरज को बिचौलियों का शोषण साफ-साफ समझ का चुका था। सबसे पहले उन्होंने 7 एकड़ खेत में चेरी लगाई, लेकिन उनका पहला एक्सपेरिमेंट फेल हो चुका था। परिवारवालों ने फिर नौकरी करने की सलाह दी। लेकिन नीरज के दिमाग में नौकरी-वौकरी नहीं थी। वो अमरूद के कुछ पौधे खरीदे लाए और खेत में लगा दिए। किस्मत से फसल अच्छी हो गई, इसके बाद जब मंडी में अमरूद लेकर पहुंचे, तो सभी बिचौलिए एक हो गए और अमरूद का दाम 7 रुपए किलो लगाया गया। नीरज ने उनकी एक न सुनी, गांव के आसपास 6 काउंटर लगा दोगुनी कीमत में अमरूद बेच दिए।
हाईटेक किसानी का यह सफर इतना आसान नहीं था। रोहतक के पले बढ़े नीरज को खेती बाड़ी विरासत में मिली थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले उन्होंने नौकरी की, इसके बाद जैसे ही कुछ पैसे जुटा लिए तो पुश्तैनी काम आगे बढ़ाने का फैसला किया। बचपन में नीरज ने देखा कि दादा और पिता कड़ी मेहनत कर फसल उगाते थे, लेकिन सारी मलाई बिचौलियों के मुंह जाती थी, अंदर ही अंदर नीरज को ये बात कचोटती रही, एक बार जब नहीं रहा गया, तो उन्होंने परिवारवालों पर नाराजगी जताई, लेकिन परिजन का मानना था कि बिचौलियों के कारण ही तो उनकी फसल बिकती है।
Created On :   25 Jun 2019 12:17 PM IST