Nagpur News: जेंडर डिस्फोरिया में शरीर से विपरीत होता गुणधर्म, एचआरटी से होती है उपचार की शुरूआत

जेंडर डिस्फोरिया में शरीर से विपरीत होता गुणधर्म, एचआरटी से होती है उपचार की शुरूआत
  • पूर्ण परिवर्तन के लिए लंबे उपचार से करनी होती है सर्जरी
  • एचआरटी से शुरू कर एसआरएस से मिलता है समाधान

Nagpur News चंद्रकांत चावरे . हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) हार्मोंस बदलने की लंबी प्रक्रिया है। लिंग के विपरीत गुणधर्म होने पर संबंधित महिला या पुरुष गुणधर्म के अनुसार स्वयं को बदलना चाहे, तो उसके उपचार की शुरूआत एचआरटी से होती है। यह थेरेपी एक साल तक चलती है। इसमें इंजेक्शन व कुछ दवाएं दी जाती हैं। एक साल के परिणाम के आधार पर यदि संबंधितों को समाधान होता है, तो आगे की थेरेपी की जाती है। जब शरीर और गुणधर्म विपरीत हों, तो उसे जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें यह महसूस होता है कि, उसके प्राकृतिक लैंगिक शरीर के विपरीत उसके गुणधर्म हैं। उसका मन-मस्तिष्क व गतिविधियां प्राकृतिक शरीर से विपरीत हैं। जैसे शरीर पुुरुष का है, लेकिन उसके गुणधर्म व गतिविधियां विपरीत होती हैं। स्त्री शरीर के मामले में भी यही होता है कि, उसके गुणधर्म व गतिविधियां पुरुषों जैसे होती हैं। ऐसे व्यक्तियों की उसकी इच्छा अनुरूप समाधान खोजना जरूरी होता है। यदि एेसा नहीं हो पाया, तो वह भावनात्मक रूप से टूट जाता हैं।

केस-1 मेल टू फीमेल (ट्रांसफीमेल) : मनीष (परिवर्तित नाम) अब मनीषा बन चुकी है। यानि पुरुष से महिला बन चुकी है। मनीषा ने अपनी व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं की, लेकिन उसने ‘मेल टू फीमेल’ बनने का कारण बताया। वह 10 साल की थी। उसका शरीर पुरुष का था, लेकिन भीतरी गुणधर्म, स्वभाव व गतिविधियां महिलाओं जैसी थीं। इस कारण वह असामान्य व असहज महसूस करती थी। परिवार व समाज ने भी इस बात को समझा, इसलिए उसने एचआरटी शुरू की। हार्मोन से उसके शरीर में बदलाव होने लगा। बालों के बढ़ाने से लेकर एक महिला की परिपूर्णता के लिए जरूरी हार्मोंस दिए गए। डेढ़ साल तक यह प्रक्रिया चली। इसके बाद एसआरएस सर्जरी (टॉप व बॉटम) की गई।

केस-2 फीमेल टू मेल (ट्रांसमेल) : अरुणा (परिवर्तित नाम) अब अरुण बनने की कगार पर है। महिला के रूप में जन्म लेकर उसके गुणधर्म व गतिविधियां पुरुष की तरह थे। परिजन, समाज, रिश्तेदार और हर किसी ने उसे मानसिक शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। 19 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। संघर्ष कर उच्चशिक्षित हुआ। 2017 से उसने उपचार शुरू किया। 2018 में एचआरटी के बाद एक एसआरएस सर्जरी हुई। टॉप सर्जरी होने के बाद बॉटम सर्जरी की प्रक्रिया शुरू है। इसके लिए 5 से 7 लाख रुपए खर्च आने वाला है। जैसे ही पैसे की व्यवस्था होगी, दूसरी सर्जरी भी करने वाले हैं। इसके बाद अरुणा पूर्ण रुप से अरुण में परिवर्तित हो जाएगी।

एचआरटी से समाधान होने पर सर्जरी प्रक्रिया : जब कोई एचआरटी थेरेपी शुरू करने पहुंचता है, तो सबसे पहले उसके मानसिक स्वास्थ की जांच की जाती है। उस आधार पर ही अागे एचआरटी थेरेपी शुरू की जाती है। जब एचआरटी थेरेपी से समाधान हो, तो संबंधित व्यक्ति की इच्छा होने पर उपचार प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। अगले चरण में एसआरएस सर्जरी (सेक्सुअल रिअसाइनमेंट सर्जरी) यानि जीआरएस (जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी) की प्रक्रिया की जाती है। इसमें टॉप सर्जरी यानि छाती की सर्जरी व बॉटम सर्जरी यानि लिंग परिवर्तन सर्जरी का समावेश है। सर्जरी करवाने वाले सामान्य जीवन जी सकते हैं, शारीरिक संबंध बना सकते हैं, लेकिन उन्हें बच्चे नहीं हो सकते। बदलाव के बाद भी हार्मोंस की दवा और इंजेक्शन नियमित लेने पड़ते हैं। फीमेल से मेल बनने के लिए अधिकतम 10 लाख रुपए का खर्च आता है। ऐसे मामलों में बच्चादानी निकाली जाती है। वहीं मेल से फीमेल के लिए अधिकतम 8 लाख रुपए खर्च आता है। सूत्रों ने बताया कि, सर्जरी का पुराना नाम अब जीएएस (जेंडर अफर्टमेंटल सर्जरी) हो गया है।

मरीजों को समस्या से गुजरना पड़ता है : जेंडर डिस्फोरिया में एचआरटी व एसआरएस सर्जरी की जाती है। एचआरटी से समाधान होने पर आगे की प्रक्रिया की जाती है। एसआरएस सर्जरी (टाप व बॉटम) की जाती है। जेंडर डिस्फोरिया के मरीजों को काफी समस्या से गुजरना पड़ता है। शरीर के विपरीत गुणधर्म होने से परिवार, रिश्तेदार व समाज उन्हें अलग नजरिए से देखता है, जबकि ऐसे लोगों के प्रति सकारात्मक नजरिया होना चाहिए। इस विषय को लेकर जागरूकता का अभाव है। इस विषय के प्रति जनमानस में जागरूकता फैलाना जरूरी है। हमारे यहां सालाना 2 मरीज ऐसे आते हैं। पहले नागपुर में सर्जरी नहीं होती थी। अब नागपुर में भी सर्जरी होने लगी है। -डॉ. सुधीर भावे, मनोरोग विशेषज्ञ

सरकारी अस्पतालों में चाहिए काउंसलिंग सेंटर : सरकारी अस्पतालों में काउंसलिंग सेंटर, जांच, उपचार व सर्जरी की व्यवस्था होनी चाहिए। महंगी सर्जरी होने से सभी यह सर्जरी नहीं कर सकते। काउंसलिंग के माध्यम से सकारात्मकता व समाधान दोनों का विकल्प निकलता है। हम संस्था के माध्यम से जितना हो सके सकारात्मकता से काम करते हैं। यह व्यवस्था टू वे होनी चाहिए। कोई अस्पताल में सीधे जाता है, तो उसकी जानकारी संस्था को और संस्था के पास आता है, तो उसकी जानकारी अस्पताल को मिलनी चाहिए। इस विषय में जागरूकता होना जरूरी है। -निकुंज जोशी, सीईओ, सारथी ट्रस्ट, नागपुर


Created On :   18 April 2025 1:33 PM IST

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