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दो नाम से दी गई डिग्रियों से परेशान हो रहे स्टूडेंट्स, भविष्य को लेकर चिंतित
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित पोस्ट ग्रेजुएट इन मास कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम के विवाद को लेकर विद्यार्थियों में परेशानी बढ़ी हुई है। डिग्री का सही नाम क्या है, जिन्हें गलत नाम की डिग्री मिली है, उनका भविष्य क्या होगा, ऐसे तमाम सवाल स्टूडेंट्स को परेशान कर रहे हैं। विषय से जुड़े जानकारों की मानें, तो यूनिवर्सिटी की इस गलती के कारण बीते दस वर्ष में पाठ्यक्रम की पढ़ाई करने वाले सैकड़ों विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर है। जिन विद्यार्थियों को गलत नाम की डिग्री मिली, यूनिवर्सिटी को इसमें जरूरी सुधार करना चाहिए। इस मामले में नागपुर यूनिवर्सिटी अपने जनसंपर्क विभाग प्रमुख डॉ. धर्मेश धवनकर से स्पष्टीकरण मांगने का निर्णय लिया है।
एमए मास कम्युनिकेशन ही सही
नागपुर विश्वविद्यालय ने जुलाई 1969 में अपने यहां सोशल साइंस फैकल्टी के तहत डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म की शुरुआत की। इसके बाद अगले कुछ वर्षों तक यह विभाग फलने-फूलने लगा। देश के विविध विश्वविद्यालयों में विविध नामों से पोस्ट ग्रेजुएट पत्रकारिता और जनसंवाद की पढ़ाई कराई जाती थी।इसमें समानता लाने के लिए वर्ष 2002 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक बड़ा बदलाव किया। यूजीसी ने साफ किया कि मास्टर ऑफ आर्ट्स (मास कम्युनिकेश्न) ही पाठ्यक्रम का सही नाम है। इसके बाद सभी विश्वविद्यालयों को अपने यहां ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स इन मास कम्युनिकेश्न’ नाम से पाठ्यक्रम चलाने के आदेश दिए गए।नागपुर यूनिवर्सिटी ने वर्ष 2008-09 में इस बदलाव को स्वीकार किया। मास कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम से जुड़ा आखिरी अपडेट यूजीसी ने वर्ष 2014 को जारी किया था, जिसमें सभी विश्वविद्यालयों को मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन (एमएमसी) पाठ्यक्रम का नाम बदल कर मास्टर ऑफ आर्ट्स (मास कम्युनिकेश्न) करने को कहा गया था।
यहां हुई गलती
यूनिवर्सिटी ने बीते कुछ वर्षों में कुछ विद्यार्थियों को ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स इन मास कम्युनिकेश्न’ की डिग्री दी है, तो कुछ को 'मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन’ (एमएमसी) की डिग्री दी है। ऐसे में जो पाठ्यक्रम बंद हो गया है, इसकी डिग्री देकर यूनिवर्सिटी ने विद्यार्थियों का भविष्य संकट में डाल दिया है। इसके लिए यूनिवर्सिटी का परीक्षा विभाग, एकेडमिक विभाग और यूनिवर्सिटी कुलगुरु, जिन्होंने डिग्रियों पर हस्ताक्षर किए, उनके समन्वय का आभाव नजर आता है। दूसरी गलती यह है कि पुराने नियमों के अनुसार जब यूनिवर्सिटी में 9 फैकल्टियां थीं, तब मास्टर ऑफ आर्ट्स (मास कम्युनिकेश्न) सोशल साइंस फैकल्टी के तहत आता था, लेकिन नया यूनिवर्सिटी अधिनियम लागू होने के बाद जब यूनिवर्सिटी में चार ही फैकल्टी शेष बची, तो मास्टर ऑफ आर्ट्स (मास कम्युनिकेश्न) को ह्यूमेनिटिज शाखा में न डाल कर यूनिवर्सिटी ने उसे इंटरडिसिप्लिनरी शाखा में डाल दिया।
विवाद पर अधिष्ठाता की चुप्पी
इस पूरे मसले पर मुझे कुछ भी नहीं कहना है। विश्वविद्यालय प्रशासन, जब इस मामले को मेरे पास भेजेगा, तो मैं इसको देखूंगी, इसके आगे मुझे कुछ नहीं कहना है। -डॉ. राजश्री वैष्णव, अधिष्ठाता इंटरडिसिप्लिनरी शाखा
Created On :   18 Jun 2019 1:56 PM IST