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अवैध निर्माण पर तल्ख टिप्पणी : हम मुक्त राष्ट्र का अर्थ यह नहीं कि यहां सबकुछ मुफ्त
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि हम मुक्त राष्ट्र में रहते है इसका मतलब यह नहीं है कि यहां सब कुछ मुफ्त मिले। अलीबाग में समुद्र किनारे बनाए गए अवैध बगलों को गिराने को लेकर सरकार की हिचकिचाहट को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी की है। इससे पहले अदालत ने बंगलो को गिराने में की जा रही देरी को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की। इससे पहले सहायक सरकारी वकील मनीष पाबले ने मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने कहा कि अलीबाग में बने अवैध निर्माण को लेकर बंगले के मालिकों ने निचली अदालतों से स्थगन आदेश लिया है। जिसके चलते सरकारी अधिकारी अवैध बंगलों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहे है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से पिछली सुनवाई के दौरान भी यहीं बात कही गई थी। हमने सरकार को इस विषय को लेकर निचली अदालतों में आवेदन दायर करने के लिए कहा था। ताकि स्थगन आदेश को हटाया जा सके। इस पर सरकारी वकील श्री पाबले ने कहा कि सरकार की ओर से इस मामले को लेकर दायर किए गए कई आवेदन निचली अदालत में खारिज हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि जिन अवैध निर्माण को अदालत का संरक्षण नहीं मिला है, ऐसे अवैध निर्माण को आठ सप्ताह के भीतर गिरा दिया जाएगा। इस दलील पर खंडपीठ ने कहा कि जमीन के स्वामित्व व अतिक्रमण को लेकर हाईकोर्ट के कई फैसले हैं, क्या आप ने ( राज्य सरकार) ने इन फैसलों को निचली अदालत में पेश किया है? आखिर आप की ओर से अवैध निर्माण को ढहाने को लेकर हिचकिचाहट क्यों दिखाई जा रही है? खंडपीठ ने कहा कि अखिर इतने बडे पैमाने पर तेजी से अवैध निर्माण कैसे हो रहा है? हम फ्री नेशन (मुक्त राष्ट्र) में रहते हैं, इसका मतलब मुफ्त का राष्ट्र नहीं है। जहां सब कुछ मुफ्त में मिलता हो। अवैध निर्माण एक तरह की लूट जैसा है। यह बात कहते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को तेजी से अवैध निर्माण को हटाने का निर्देश दिया और कहा कि जिन अवैध निर्माण को अदालत ने संरक्षण दिया है इसकी जानकारी अगली सुनवाई के दौरान पेश करने को कहा। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र धवले ने इस विषय पर साल 2009 में जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अलीबाग के समुद्र किनारे बने अवैध निर्माण को ढहाने का निर्देश दिया था। प्रशासन की ओर से अब तक अलीबाग के 159 अवैध निर्माण को नोटिस जारी किया जा चुका है। जिसमे से 24 अवैध निर्माण गिराए गए हैं। जबकि 111 अवैध निर्माण के मामले में निचली अदालत ने स्थिति को यथावत रखने का निर्देश दिया है।
कैदी को चार गुना सजा देने के फैसले पर पुनर्विचार के आदेश
उधर मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अमरावती पुलिस को एक कैदी के भाई की बीमारी की पड़ताल करने के आदेश दिए हैं। दरअसल भाई की किडनी की बीमारी का कारण बताते हुए कैदी ने पैरोल पर छूटने के बाद 24 दिन अतिरिक्त छुट्टी मनाई, जिस कार उसकी 96 दिनों की सजा बढ़ाई गई। कैदी ने अतिरिक्त सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसके बाद कोर्ट ने यह आदेश जारी किया। याचिकाकर्ता हत्या का दोषी पाया गया है और अमरावती जेल में सजा काट रहा है। पैरोल नियमों के मुताबिक जेल प्रशासन ने उसे 30 दिन की पैरोल दी थी। लेकिन पैरोल खत्म होने के बाद आरोपी फरार हो गया। 24 दिन तक पुलिस को नहीं मिला। 24 दिन के बाद जब उसने समर्पण किया, तो नियमों का उल्लंघन करने के कारण जेल अधिक्षक ने फरारी की अवधि से चार गुना अधिक यानी कुल 96 दिनों की सजा बढ़ा दी। जेल अधीक्षक के इस फैसले को कैदी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कैदी के अधिवक्ता अमोल चाकोतकर ने हाईकोर्ट में दलील दी कि जब जेल अधीक्षक ने उसे सजा बढ़ाने का नोटिस दिया था, तब उसने अपना स्पष्टीकरण दिया था। जिसमें जेल प्रशासन को बताया गया था कि उसके भाई की किडनी खराब हो गई थी और उसे अस्पताल मंे भर्ती कराया गया था। लिहाजा उसे समर्पण करने में विलंब हुआ। लेकिन जेल प्रशासन ने उसके स्पष्टीकरण पर गौर किए बगैर उसकी सजा बढ़ा दी। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट मंे हुई सुनवाई मंे निकल कर आया कि उसकी सजा बढ़ाते वक्त अधीक्षक ने पुलिस रिपोर्ट नहीं मंगाई। मामले में सभी पक्षों को सुनकर जेल प्रशासन को पड़ताल करने को कहा है कि वाकई उसका भाई अस्पताल में था या नहीं। हाईकोर्ट ने जेल प्रशासन को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है।
Created On :   31 July 2019 12:57 PM IST