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मेडिकल में हर साल बढ़ रहे मरीज, लेकिन सुविधाएं ही नहीं , परेशान हो रहे मरीज
डिजिटल डेस्क,नागपुर। मेडिकल अस्पताल में हर साल मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन कर्मचारी व संसाधनों की संख्या नहीं बढ़ रही है। जिसके चलते मरीजों की असुविधाएं भी बढ़ रही है। आंकड़ों की बात करें गत तीन वर्षों में मेडीकल में 2 लाख मरीजों की संख्या बढ़ी है। जो ओपीडी व कैजूलटी विभाग के मिलकर है। हालांकि इनकी सुविधाओं के लिए लगने वाले स्ट्रेचर, व्हील चेअर यहां तक एम्बुलेंस की संख्या भी नहीं बढ़ सकी है। ऐसे में कई बार तो मरीज खुद सलाइन हाथ में पकड़कर दूसरे वार्ड शिफ्ट होते हैं।
नागपुर का मेडिकल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है। जहां दूर दराज से रोजाना हजारों मरीज आते हैं। अधिकृत आंकड़ों की बात करें तो प्रति महीना 50 हजार से ज्यादा मरीज यहां आकर इलाज करवाते हैं, जिसमें कई एडमिट भी होते हैं। वर्ष 2016 में ओपीडी में 7 लाख 19 हजार से ज्यादा मरीजों ने इलाज किया है। जिसमें 64 हजार 8 सौ से ज्यादा को एडमिट किया गया था। वर्ष 2017 में यह आंकड़ा लगभग उतना ही रहा, लेकिन एडमिट होनेवालें मरीजों की संख्या 5 हजार से बढ़ गई। वर्ष 2018 में 9 लाख मरीज ओपीडी तक पहुंचे। जिसमें 85 हजार से ज्यादा एडमिट हुए थे।
वर्ष 2019 में अब तक ही आंकड़ा ओपीडी का 6 लाख के करीब पहुंच गया है। वही एडमिट मरीजों की संख्या 40 हजार से ज्यादा हो गई है। लेकिन सुविधाओं को देखा जाए तो मरीजों की संख्या के अनुसार न तो कर्मचारियों की संख्या बढ़ी है, और न ही संसाधनों की संख्या बढ़ सकी है। इसी कारण मेडिकल में कई बार मरीजों को लेकर जाने के लिए स्ट्रेचर कम पड़ जाते हैं। स्ट्रेचर मिलने पर इसे धकेलने के लिए कर्मचारी नहीं रहने से मरीज के परिजनों को ही इसे धकेलते लेकर जाना पड़ता है। कई बार व्हील चेअर के लिए मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। बहुत ज्यादा जरूरी रहने पर मरीज इंतजार किये बगैर खुद ही हाथ में सलाइन पकड़कर वार्ड तक पहुंचता है। ऐसे में मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ मेडिकल में संसाधनों की जरूरत भी बढ़ाने की अपेक्षा सामान्य लोग कर रहे हैं।
खराब स्थिति में संसाधन
संसाधनों की कमी का हाल केवल एकमात्र मेडिकल का ही नहीं। बल्कि इसमें मेयो अस्पताल भी शामिल हैं। संसाधनों की कमी कारण एक ओर बढ़ते मरीज है, वही दूसरी ओर खराब संसाधनों की मरम्मत नहीं होती है। स्ट्रेचर व्हील चेअर महीनों से खराब अवस्था में पड़े रहने के बाद भी इसकी मरम्मत नहीं की जाती है। जिससे कम संसाधनों में मरीजों को और भी ज्यादा इसका टोटा सहना पड़ता है।
Created On :   21 Sept 2019 4:17 PM IST