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हाईकोर्ट : पबजी और सूखा नियमावली 2016 पर जवाब तलब, भाजपा सांसद सिध्देश्वर को राहत के संकेत
डिजिटल डेस्क, मुंबई। ऑनलाइन गेम ‘पबजी’ का क्या बच्चों की मानसिकता पर वास्तव में असर होता है। इस विषय पर बांबे हाईकोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को जवाब देने का निर्देश दिया हैं। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे में बच्चों पर ‘पबजी’ असर के असर को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई थी। इसे देखते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ ने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को इस संबंध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। आनलाईन गेम ‘पबजी’ पर रोक लगाए जाने की मांग को लेकर अहमद निजाम नाम के 12 साल के बच्चे ने अपने माता-पिता के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की हैं। याचिका में दावा किया गया है कि पबजी के चलते बच्चों की मानसिकता पर विपरीत असर पड़ रहा है। इससे बच्चों में हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ रही हैं। वहीं दो वयस्क छात्रों ने इस खेल को जारी रखने की मांग की है। उन्होंने अपने-अपने आवेदन में दावा किया है कि इस खेल को खेलने की अनुमति न मिलना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। खंडपीठ ने कहा कि इस आवेदन पर हम बाद में सुनवाई करेंगे। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे रहे वकील ने कहा कि इंटरनेट में उपलब्ध किसी भी आपत्तिजनक सामाग्री की शिकायत के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की गई है। इसलिए याचिकाकर्ता के अभिभावकों को इस अधिकारी के पास अपनी बात रखनी चाहिए। वहीं राज्य सरकारी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि यदि अभिभावकों को पबजी खेल पसंद नहीं है तो बच्चों पर नियंत्रण रखना अभिभावकों की जिम्मेदारी है। आखिर अभिभावक बच्चों को महंगा मोबइल फोन इस्तेमाल करने के लिए क्यों देते हैं। अभिभावकों को अपने फोन में पासवर्ड डालकर उसे बंद रखना चाहिए। ताकि बच्चों को पबजी जैसा खेल खेलने का मौका ही न मिले। सरकारी वकील ने स्पष्ट किया कि किसी भी स्कूल में ‘पबजी’ खेलने की अनुमति नहीं हैं। हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं और उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। यह देखना अभिभावकों की जिम्मेदारी है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने इस मामले में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई तीन सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी।
सूखा नियमावली 2016 का पालन न किए जाने का आरोप
बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से रबी का सूखा घोषित करने के लिए सूखा नियमावली 2016 के तहत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी पेश करने का निर्देश दिया हैं। हाईकोर्ट ने यह निर्देश सामाजिक कार्यकर्ता संजय लाखे पाटील की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। बुधवार को यह याचिका कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सतीश तलेकर ने कहा कि सकार की ओर से सूखा नियमावली 2016 के अंतर्गत सूखा घोषित करने की दिशा में समय पर कदम नहीं उठाए जाते है। नियमानुसार हर साल 31 मार्च तक रबी का सूखा घोषित जाना चाहिए। जबकि 31 अक्टूबर तक खरीफ का सूखा घोषिक किया जाना चाहिए। फिर चाहे सूखे का स्वरुप गंभीर हो,मध्यम हो या फिर चाहे हल्का हो। और उसके हिसाब से सूखे के नियंत्रण की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि समय पर सूखा घोषित न किए जाने के चलते किसान जरुरी लाभ से वंचित हो जाते है और उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि समय पर सूखा घोषित किया जाए तो किसानों को कर्जमाफी, फसल बीमा, भूमि राजस्व में छूट जैसी रियायते समय पर मिल जाती हैं। सूखा घोषित करने को लेकर नियमावली में जरुरी मानक तय किए गए हैं। इसके अंतर्गत सरकार को बारिश के पैमाने के स्तर को नापना होता हैं। और उसके हिसाब से सूखे का स्वरुप तय किया जाता हैं। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार को रबी का सूखा घोषित करने को लेकर उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा और मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी।
भाजपा सांसद सिध्देश्वर को राहत के संकेत
उधर बांबे हाईकोर्ट ने बुधवार को सोलापुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद डाक्टर जय सिद्धेश्वर शिवाचार्य को जाति प्रमाणपत्र मामले में अंतरिम राहत देने के संकेत दिए हैं। सांसद शिवाचार्य के जाति प्रमाणपत्र को अवैध ठहराए जाने के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। पिछले दिनों सोलापुर जिला जाति प्रमाणपत्र वैधता कमेटी ने सांसद शिवाचार्य के जाति प्रमाणपत्र को फर्जी पाया था और उसे स्वीकर करने से इंकार कर दिया था। इसके साथ ही शिवाचार्य के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने का भी निर्देश दिया था। याचिका में कमेटी के इस निर्णय को सांसद शिवचार्य ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। बुधवार को न्यायमूर्ति केके तातेड व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रसाद ढाकेफालकर ने खंडपीठ से मामले में अंतरिम आदेश जारी करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल को कमेटी ने अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया है। इसलिए मामले की सुनवाई से पहले आपराधिक मामला न दर्ज किया जाए और जाति प्रमाणपत्र वैधता कमेटी के निर्णय पर रोक लगाई जाए। जिसका शिकायतकर्ता के वकील ने विरोध किया। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले को दोबारा कमेटी पास सुनवाई के लिए भेजने के संकेत दिए हैं। गुरुवार को भी इस याचिका पर सुनवाई जारी रहेगी।
Created On :   11 March 2020 9:37 PM IST