Mumbai News: 80 वर्षीय वृद्धा को 40 वर्ष से अधिक समय तक कानूनी लड़ाई के बाद मिला न्याय

80 वर्षीय वृद्धा को 40 वर्ष से अधिक समय तक कानूनी लड़ाई के बाद मिला न्याय
  • अदालत ने सोलापुर के जिला न्यायालय के आदेश को किया रद्द
  • 1980 से वृद्धा को दो बेटियों के साथ पति के परिवार से लड़नी पड़ी कानूनी लड़ाई
  • अदालत ने वृद्धा को मानसिक रूप से दिव्यांग पति का माना संरक्षक

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से 1980 से 40 वर्ष से अधिक की लंबी लड़ाई के बाद 80 वर्षीय शिवम्मा शिवशंकर वाले और उनकी दो बेटियों को पति की संपत्ति पाने के लिए परिवार के साथ से कानूनी लड़ाई में न्याय मिला। अदालत ने सोलापुर के जिला न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें शिवम्मा को मानसिक रूप से दिव्यांग पति को संरक्षक मानने और उनकी मृत्यु होने से इनकार कर दिया था।

न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकलपीठ ने शिवम्मा शिवशंकर वाले की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि शिवम्मा के पति के जीवित होने के किसी वैध प्रमाण के बिना संरक्षकता आदेश को रद्द करने के लिए 1987 अधिनियम की धारा 69 को लागू करने के लिए कोई पर्याप्त कारण नहीं दिखाया गया है। इसलिए जिला न्यायाधीश के निर्णय और आदेश को रद्द किया जाना चाहिए। शिव शंकर के भाई के बेटा यह साबित करने में विफल रहा कि शिवशंकर जीवित थे और उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जाली था। इस प्रकार भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 107 और 108 के तहत परिकल्पित भार याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होगा।

पीठ ने माना कि जिला न्यायाधीश ने गलत तरीके से यह मान लिया है कि पत्नी ने पति शिव शंकर की मृत्यु की तारीख 4 मई 1990 के बारे में गलत बयान दिया था। मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष पत्नी द्वारा शपथ पत्र की गलत व्याख्या की गई है। जिला न्यायाधीश ने मृत्यु प्रमाण पत्र पर अविश्वास करने के लिए कोई वैध कारण दर्ज नहीं किया है।

क्या है पूरा मामला

सोलापुर के अक्कलकोट निवासी 80 वर्षीय शिवम्मा शिवशंकर वाले की दो बेटियां है। उनके पति उस समय दिव्यांग हो गए, जब उनकी बेटियां छोटी थी। उनके पति के नाम से संपत्ति थी। उनके 27 मार्च 1980 को सिविल विविध पागलपन अधिनियम की धारा 62 के अंतर्गत दायर आवेदन को स्वीकार करते हुए उन्हें उनके पति शिव शंकर का संरक्षक नियुक्त किया गया। शिव शंकर के भाइयों और भाई के बेटों ने याचिकाकर्ता को शिव शंकर और उनकी संपत्ति के संरक्षक नियुक्त करने के आदेश को चुनौती देने के लिए बार-बार झूठी आपत्तियां उठाईं।

उनके भाई के बेटे रमेश वीरपक्षप्पा वाले के आवेदन पर जिला न्यायालय ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 की धारा 65 के अंतर्गत याचिकाकर्ता के नाम से जारी संरक्षकता आदेश को रद्द कर दिया था। उसने न्यायालय में एक गवाह पेश किया था, जिसने दावा किया था कि शिव शंकर को जीवित देखा गया था। जबकि उनकी पत्नी ने उनकी मृत्यु का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया था। याचिकाकर्ता शिवम्मा ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

Created On :   18 April 2025 7:55 PM IST

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