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हाईकोर्ट : अवैध निर्माण, निष्कासन व नीलामी से जुड़े मामलों में कार्रवाई न करें, अगले सप्ताह सिर्फ दो दिन होगा कामकाज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। दुनियाभर में कहर बरपा रहा कोरोना विषाणू कथित रुप से अवैध निर्माणों को ढहाने, नीलामी व निष्कासन से जुड़े मामलों के लिए रक्षक के रुप में सामने आया है। गुरुवार को बांबे हाईकोर्ट ने राज्य की सभी महानगरपालिकाओं के आयुक्तों व नगरपरिषद से कहा है कि यदि बहुत जरुरी न हो तो एक खास अवधि तक के लिए अवैध निर्माणों, नीलामी व निष्कासन से जुड़े मामलों पर कार्रवाई न की जाए। न्यायमूर्ति एसजे काथावाला व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने सभी महानगरपालिकाओं के आयुक्तों को इस विषय पर आम दिशा-निर्देश जारी करने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही कहा है कि स्थानीय निकाय इस मामले को लेकर कोर्ट में कैविएट जरुर दायर करें। किसी भी पक्षकार को एक पक्षीय आदेश लेने से रोकने के लिए कैविएट दायर किया जाता है। खंडपीठ ने कहा कि कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए अदालत ने अपने कामकाज को काफी सीमित कर लिया है। अदालत में सिर्फ दो घंटे ही सुनवाई हो रही है। ताकि कोर्ट कक्ष में भीड़भाड़ को टाला जा सके और अदालत में सिर्फ मामले से संबंधित लोग ही आए। खंडपीठ ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि महानगरपालिका की ओर से अवैध निर्माण गिराए जाने, कंपनियों की नीलामी व निष्कासन को लेकर नोटिस जारी होने से जुड़े ज्यादातर मामले आवश्यक व तत्काल आदेश दिए जाने की मांग को लेकर दायर किए जा रहे हैं। इसलिए स्थानीय निकाय सिर्फ अवैध निर्माण गिराने के जरुरी मामले पर ही कार्रवाई करे और दूसरे इस तरह के संबंधित मामलों की कार्रवाई को कुछ समय के लिए टाल दिया जाए। खंडपीठ ने यह बात ए-वन फतेह को-आपरेटिव सोसायटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याचिका में सोसायटी ने मुंबई महानगरपालिका की ओर से अवैध ढांचे को गिराने को लेकर जारी की गई नोटिस को चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले पर फिलहाल विस्तार से सुनवाई नहीं कर रहे हैं। लेकिन अंतरिम आदेश के तौर पर ढांचे को ढहाने के संबंध में जारी की गई नोटिस पर 31 मार्च 2020 तक के लिए रोक लगा रहे हैं। यह कहते हुए खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 31 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। इसके साथ ही सभी महानगरपालिकाओं को उपरोक्त सुझाव दिया।
अगले सप्ताह सिर्फ दो दिन होगा कामकाज- नागपुर, औरंगाबाद, गोवा खंडपीठ पर भी होगा लागू
बांबे हाईकोर्ट ने कोरोना के प्रकोप के मद्देनजर अगले सप्ताह सिर्फ दो दिन काम करने का निर्णय लिया है। इन दो दिनों में सिर्फ जरुरी मामलों की सुनवाई की जाएगी। हाईकोर्ट का यह निर्णय नागपुर, औरंगाबाद, गोवा खंडपीठ पर लागू होगा। अगले हफ्ते सिर्फ सोमवार (23 मार्च) और गुरुवार (26 मार्च) को ही कोर्ट का कामकाज होगा। इस दिन सिर्फ आवश्यक मामलों की सुनवाई की जाएगी। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार एसबी अग्रवाल ने इस संबंध में परिपत्र जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि कोरोना के मद्देनजर हाईकोर्ट में अगले सप्ताह कामकाज के लिए सीमित स्टाफ उपलब्ध है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट में फिलहाल दो घंटे दोपहर 12 बजे से दो बजे की बीच सुनवाई हो रही है। हाईकोर्ट ने कोर्ट परिसर में भीड़भाड को रोकने के लिए अपने कामकाज को सीमित कर लिया है। एक न्यायमूर्ति ने तो लोगों को कोर्ट में आने से रोकने के लिए वकीलों को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए अपने कार्यालय व घर से याचिकाओं का उल्लेख करने की छूट दी है।
चर्च में सामूहिक प्रार्थनाओं पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि क्या कोरोना के प्रकोप के बावजूद राज्य भर में स्थित गिरजाघरों (चर्च) में सामूहिक प्रार्थनाएं हो रही हैं? पेशे से एक महिला वकील ने कोरोना के बावजूद चर्च में होनेवाली सामूहिक प्रार्थानाओं के चलते होने वाली भीड़ को देखते हुए हाईकोर्ट को एक पत्र लिखा था। गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ ने इस पत्र का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। पत्र में कहा गया है कि कोरोना के प्रसार की रोकथाम के लिए सरकार व स्थानीय प्राधिकरण की ओर से भीड़भाड को रोकने के संबंध में सतर्कता संदेश व कई निर्देश जारी किए गए हैं। इसके बावजूद दक्षिण मुंबई स्थित सेवन डालर चर्च में सामूहिक प्रार्थनाएं हो रही हैं और वहां पर धर्म से जुड़ी परंपरा का भी पालन किया जा रहा है। जो लोगों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इन प्रार्थनाओं में सैकड़ो लोग इकट्ठा हो रहे हैं। पेशे से वकील सेविना क्रिस्टो ने पत्र में अदालत से आग्रह किया है कि इस मामले को लेकर सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश दिया जाए। गुरुवार को खंडपीठ ने इस पत्र पर गौर करने के बाद कहा कि सरकार गिरजाघरों में होनेवाली सामूहिक प्रार्थनाओं को लेकर क्या कर रही है हम इस मामले में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के विषय में जानना चाहते हैं। यह कहते हुए खंडपीठ ने मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी है।
पति के चरित्र को लेकर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता
बांबे हाईकोर्ट ने पति के चरित्र पर आरोप लगाने को मानसिक क्रूरता माना है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने एक सुप्रसिद्ध डाक्टर को तलाक प्रदान किया है। 17 मार्च 2002 को पेशे से डाक्टर पति ने फैशन डिजाइनर पत्नी से विवाह किया था। साल 2004 तक इस दंपति का वैवाहिक जीवन अच्छा चला । इस दौरान उन्हें एक बेटी भी हुई। लेकिन जीवन स्तर व जीवन शैली में भिन्नता के चलते दोनों में अनबन शुरु हो गई। जिसके चलते पत्नी अपने पति का घर छोड़कर चली गई। काफी प्रयास के बाद जब पत्नी साथ रहने को राजी नहीं हुई तो पति ने मुंबई की पारिवारिक अदालत में तलाक के लिए याचिका दायर की। याचिका में पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी उसके माता-पिता व उसकी बहन के साथ अशोभनीय बर्ताव करती है। इसके साथ ही वह मुझ अपने परिवार से अलग रहने के लिए भी कहती है। उसने मुझ पर मेरे सहकर्मी डाक्टर के साथ संबंध होने का आरोप लगाकर मेरे चरित्र पर सवाल उठाए हैं। पारिवारिक अदालत ने पति की तलाक से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था। लिहाजा डाक्टर पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति केके तातेड व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ के सामने डाक्टर की अपील पर सुनवाई हुई। डाक्टर की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ने दावा किया कि इस मामले में निचली अदालत का आदेश खामीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल को न सिर्फ अपमानित व प्रताड़ित किया गया बल्कि उसके बुजुर्ग माता-पिता पर भी अशोभनीय टिप्पणी की गई है। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल के चरित्र पर भी सवाल उठाए गए हैं। जो की मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। इसलिए इस क्रूरता के आधार पर मेरे मुवक्किल तलाक पाने के हकदार हैं। भारी मतभेद के चलते मामले से जुड़े दंपति का अब साथ रह पाना संभव नहीं है। सुनवाई के दौरान पत्नी ने खुद अपने मामले की पैरवी की और पति की अपील को आधारहीन बताते हुए उसे खारिज करने की मांग की। इसके साथ ही पति के आरोपों का खंडन किया और कहा कि उसे पति के घरावले ने काफी प्रताड़ित किया जिससे तंग आकर उसने घर छोड़ा है। इस मामले में पारिवारिक अदालत का फैसला सही है। मामले से जुड़े तथ्यों व सबूतो पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि पत्नी ने अपने पति के चरित्र पर आरोप लगाए हैं जो कि मानसिक क्रूरता है। इस आधार पर पति तलाक पाने का हकदार है। खंडपीठ ने पति की अपील को स्वीकार करते हुए उसे बेटी को 40 हजार रुपए प्रति माह जबकि पत्नी को 25 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इसके साथ ही पति को अपनी बेटी के नाम पर तीन माह में पांच लाख रुपए फिक्स डिपाजिट के रुप में जमा करने का आदेश दिया।
Created On :   19 March 2020 7:56 PM IST