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शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मंजूरी न लेने पर स्कूल की मान्यता वापस नहीं -हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। निजी गैर अनुदानित स्कूल ने यदि शिक्षकों की नियुक्ति के लिए शिक्षा निदेशालय से मंजूरी नहीं ली है तो इस आधार पर स्कूल की मान्यता को वापस नहीं लिया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने पुणे के सिमबायसेस शैक्षणिक संस्थान की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। सिमबायसेस ने पुणे व कोल्हापुर में दो गैर अनुदानित स्कूल स्थापित की थी। इसमे से एक स्कूल अंग्रेजी व दूसरी मराठी माध्यम की थी। स्कूल ने अपने यहां शिक्षकों की नियुक्ति करने से पहले शिक्षा निदेशालय की मंजूरी नहीं ली है। इस आधार पर स्कूल की मान्यता को वापस लेने के संबंध में राज्य के शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल को 20 जून 2002 को नोटिस जारी किया गया था। नोटिस में साफ किया गया था कि स्कूल में हुई नियुक्ति में आरक्षण का भी पालन नहीं किया गया है। इसके साथ ही स्कूल की ओर से तय की गई फीस के संबंध में मंजूरी नहीं ली गई है। और स्कूल में कार्यरत शिक्षकों की वरिष्ठता की सूची भी नहीं तैयार की गई है। शिक्षा विभाग के इस नोटस के खिलाफ सिमबायसेस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि निजी गैर अनुदानित स्कूलों को शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में शिक्षा निदेशालय से मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है। स्कूल प्रबंधन को सिर्फ नियुक्ति किए शिक्षकों की सूची उनकी योग्यता के साथ शिक्षा निदेशालय को सौपनी होती है। जहां तक बात नियुक्ति में आरक्षण की है तो हमने नौकरी के लिए विज्ञापन जारी किया था पर हमे आरक्षित वर्ग के योग्य लोग नहीं मिले। ऐसे में स्कूल की मान्यता वापस लेने के संबंध में जारी किया नोटिस नियमों के खिलाफ है।
शिक्षा विभाग की ओर से जारी की गई नोटिस व याचिका में उल्लेखित तथ्यों व कोर्ट के एक पुराने फैसले पर पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि गैर अनुदानित स्कूल ने शिक्षकों की नियुक्ति से पहले शिक्षा निदेशालय से मंजूरू नहीं ली है इस आधार पर ऐसी स्कूल की मान्यता को वापस नहीं लिया जा सकता है। खंडपीठ ने स्कूल की फीस के मुद्दे पर शिक्षा निदेशक को नए सिरे से आदेश जारी करने को कहा है और शिक्षकों की वरिष्ठता सूची के संबंध में कानून के हिसाब से निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
कोर्ट की अवमानना का मामला: हाईकोर्ट की सुनवाई की हुई वीडियो रिकॉर्डिंग
वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में कोर्ट की अवमानना के आरोपी अधिवक्ता अरविंद वाघमारे की याचिका पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई। मामले में विविध पहलुओं पर गौर करने के बाद कोर्ट ने एड. वाघमारे द्वारा दायर 10 विविध अर्जियों पर पहले सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इसके बाद अवमानना के मामले पर सुनवाई होगी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई 29 जुलाई को रखी है।
बता दें कि, इसके पूर्व एड.वाघमारे ने दो जजों की बेंच के समक्ष लगे इस प्रकरण को तीन जजों की बेंच के समक्ष ले जाने के लिए अर्जी दायर की थी। उनका पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने इसे अयोग्य मानते हुए खारिज किया और 20 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई थी। वहीं कोर्ट ने वाघमारे पर चल रहे अवमानना प्रकरण में उन्हें और उनके चार पक्षकारों को नोटिस किया था। इसी मामले में वाघमारे के बर्ताव से नाराज होकर कोर्ट ने उन्हें करीब दो घंटे की न्यायिक हिरासत मंे भेजा था। उनके माफी मांगने के बाद कोर्ट ने उन्हें रिहा किया था। मामले में हाईकोर्ट की ओर से एड. फिरदौस मिर्जा ने पक्ष रखा।
यह है मामला
यह मामला अप्रैल 2016 से शुरू हुआ। एड. वाघमारे के पक्षकार के मामले पर कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर उन्होंने आपत्ति जताई थी। आरोप किया कि, कोर्ट ने उनकी याचिका डिस्पोज की थी, लेकिन ऑर्डर में डिसमिस यानी रद्द लिखा आया। भरे कोर्ट में इस याचिका डिस्पोज किया गया था, लेकिन अपलोड किए गए ऑर्डर में याचिका को डिसमिस यानी रद्द बताया गया। उन्होंने इसे मानवीय भूल समझ कर सुधार की अर्जी दायर की, लेकिन बात बनने की जगह बिगड़ती चली गई और अंतत: उन पर और उनके पक्षकारों पर कोर्ट की अवमानना का मामला दायर कर दिया गया। ऐसे में उन्होंने इस अवमानना प्रकरण में हाईकोर्ट में अपील दायर की है। साथ ही हाईकोर्ट रजिस्ट्री पर कुल 50 लाख रुपए का मानहानि का दावा भी प्रस्तुत किया है।
Created On :   13 Jun 2019 11:18 AM IST