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जीवनदान: बेसहारा, प्रताड़ित महिलाओं को मिला नया जीवन, दानदाताओं की मदद से हो रहा जीवनयापन
- सरकार से नहीं मिलता कोई अनुदान
- दानदाताओं की मदद से हो रहा गुजारा
- स्वाधार गृह बन रहा न्याय और रोजगार का माध्यम
रीता हाडके,बेसा(नागपुर)। अबला, दुखियारी, अप्राकृतिक यौन शोषण का शिकार, घर से बेघर हुई, घरेलू हिंसा की शिकार, कुमारी माता, विधवा, अनाथ जैसी पीड़ित महिलाओं को यदि किसी का सहारा मिल जाए, तो सहारा देने वाला किसी भगवान से कम नहीं होता। कुछ ऐसा ही बेसा स्थित स्वाधार गृह की अधीक्षिका उषा मालवीय को पीड़ित महिलाएं मानती हैं। भारतीय आदिम जाति सेवक संघ विदर्भ शाखा नागपुर द्वारा संचालित स्वाधार गृह 1983 से कार्यरत हैं। हाल ही में यहां 16 महिलाएं और उनके 7 बच्चे आए, जिनका जीवनयापन दानदाताओं की मदद से किया जा रहा है।
रोंगटे खड़े कर देते हैं : यह महिलाएं दर-दर की ठोकरें खाते-खाते कभी पुलिस की मदद, तो कभी किसी के बताने पर उषा दीदी के पास सहारे के लिए पहुंची हैं। इन पीड़ित महिलाओं की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं। नेपाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, मुंबई, यवतमाल, भंडारा आदि क्षेत्र से पीड़ित महिलाएं उषा दीदी के पास मदद की आस में आई थीं और उषा मालवीय ने उन्हें अपना लिया है। उनकी कहानी कुछ इस प्रकार है।
केस 1. सौतेली मां ने घर से निकाल दिया : मीना (बदला हुआ नाम) यवतमाल से कुछ वर्ष पूर्व आई थी। घर में सौतेली मां की पीड़ा से तंग आकर पुलिस की मदद से वह स्वाधार गृह पहुंची। उसने बताया कि उसका रंग काला होने के कारण उसकी सौतेली मां उसे पसंद नहीं करती थी। उसे घर से बाहर करने के लिए उसने उसकी आंखों में फिनाइल डाल दिया, जिसके कारण वह एक आंख से नहीं देख पा रही है। उसे पढ़ाई से वंचित रखकर घर के सभी काम करवाती थी और भोजन नहीं देती थी। उसने उसे लूला लंगड़ा करके घर से निकाल दिया। वह दर-दर की ठोकरें खाते हुए उषा दीदी के पास पहुंची। यहां वह खुश है।
केस 2. रोजगार दिलाने नेपाल से लाई गई : पांच माह पूर्व नेपाल से विधवा दो बच्चों की मां अभिशिखा (बदला हुआ नाम) स्वाधार गृह पहुंची। नेपाल की एक महिला उसे नागपुर में रोजगार दिलाने के नाम पर लाई थी। पति के देहांत होने के बाद उसका दुनिया में अपना कोई नहीं था। माता-पिता भी वह छोटी उम्र में ही चल बसे थे। अंदाजा था कि उस शातिर महिला ने पीड़िता को वेश्यावृत्ति में ढकेलने के उद्देश्य से नागपुर में लाई थी। अभिशिखा के सारे पैसे, कपड़े, सामान छीन लिए गए थे। अभिशिखा को महिला की जालसाजी की भनक लगते ही वह अपने बच्चों के साथ पुलिस की मदद से उषा दीदी के पास पहुंच गई। यहां दूसरों के घर के काम कर पैसे जुटाए और हाल ही में अपने बच्चों के साथ नेपाल चली गई है।
केस 3. पैसे मांगने पर बेटे करते थे बेरहमी से पिटाई : किरण (बदला हुआ नाम) ने एक-एक पैसा जुटाकर एक छोटा प्लाट खरीदा और टीन का घर बनाकर दो बेटों के साथ रहना चाहती थी। पति के गुजर जाने से उसके लिए कोई सहारा नहीं बचा था। घर-घर काम कर वह अपना और बच्चों का गुजरा कर रही थी। जब बच्चे बड़े हो गए, तो वह गलत संगत में पड़कर शराब पीने लगे। ढलती उम्र में किरण काम नहीं कर पा रही थी। उसका एक बेटा 26 और दूसरा 28 वर्ष का है। वे मजदूरी करते हैं। जब किरण बेटों से दवा के लिए पैसे मांगती, तो वे उसकी बेरहमी से पिटाई करते थे। अंतत: एक परिचित के सहारे स्वाधार गृह पहुंची और अंतिम पड़ाव खुशी से बीता रही है।
नाममात्र मानधन में सेवा : संस्था की अधीक्षिका उषा मालवीय के साथ काउंसलर सुहास खेरडे, वार्डन हेमा तिवारी, सचिव राजेश मालवीय, क्लर्क ऋतुजा कलबूत और चिकित्सक सोनम अंडेलकर ट्रस्ट की और से मिल रहे नाममात्र मानधन पर इन महिलाओं को सहारा दे रहे हैं। स्वाधार गृह को जिला महिला बाल कल्याण की मान्यता मिली है, लेकिन अब तक सरकारी मान्यता नहीं मिली है।
चार हजार महिलाओं को अब तक दिया गया है आश्रय : संस्था पिछले 41 वर्ष से कार्यरत है। बिना सरकारी अनुदान से संस्था दानदाताओं की मदद से संचालित की जा रही है। यहां अब तक चार हजार महिलाओं को आश्रय दिया गया, जिसमें से ढाई से तीन हजार महिलाओं को न्याय दिलवाया है। 2023 में 60 महिलाएं और उनके 26 बच्चों को सहारा दिया था। अब 16 महिलाएं और 6 बच्चे आश्रित हैं। कुंवारी बच्चियों की शादी भी करवाई जाती है, साथ ही रोजगार के अवसर भी दिए जाते हैं उषा मालवीय, अधीक्षिका, स्वाधार गृह बेसा
Created On :   10 Feb 2024 2:34 PM IST