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Nagpur News: विकास से मुलाकात का वक्त तय कर लिया जाए, शीतकालीन सत्र में पेचीदे सवाल नारों के शोर में गुम गए
- अंडमान निकोबार द्वीप के मुख्यालय पोर्ट ब्लेयर की दूरी दो हजार 280 किलोमीटर
- मध्य अंडमान तक पहुंचने के लिए दूरी बढ़ जाएगी
- पेचीदे सवाल नारों के शोर में गुम गए
Nagpur News : प्रकाश दुबे। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से अंडमान निकोबार द्वीप के मुख्यालय पोर्ट ब्लेयर की दूरी दो हजार 280 किलोमीटर है। मध्य अंडमान तक पहुंचने के लिए दूरी बढ़ जाएगी। सीधा सड़क संपर्क संभव नहीं है। जल जहाज से चार दिन में पहुंचते हैं। मध्य अंडमान में सड़कों का अकाल है।
पांच बरस हो गए, मरम्मत तक नहीं हुई-लोकसभा सदस्य ने केंद्रीय राजमार्ग एवं सड़क परिवहन मंत्री पत्र लिखकर शिकायत की। इस काम के लिए 156 करोड़ रुपए मंत्री नितिन गडकरी ने आवंटित कर दिए हैं। महाराष्ट्र की राजधानी से उपराजधानी नागपुर की दूरी एक हजार किलोमीटर से कुछ कम है। गड़चिरोली जाना हो तो कम से कम दो किलोमीटर बढ़ जाते हैं। पूरे इलाके में नक्सली प्रभाव का रोना रोया जाता है।
कल कारखाने लगाने वाले, सड़क बनाने वाले, कोयला सहित कीमती खनिज की खुदाई कर करोड़ों की कमाई करने वाले कनफुसियाते हैं- हम क्या करें? माओवादियों की मांग पूरी नहीं करेंगे तो काम नहीं कर सकते। आम धारणा यही है कि पुलिस और सशस्त्र बल पर भरोसा करने के बजाय कारोबारी और उद्योजक माओवादियों के संरक्षण पर अधिक निर्भर हैं। इसलिए मांग, जरूरत और अपनी औकात के अनुरूप उन्हें भुगतान करते रहते हैं।
आवागमन के साधनों की कमी का एक कारण सीधे, सुगम रास्तों का अभाव है। करीब चालीस बरस पहले 1980 के दशक में लोकसभा के तत्कालीन सदस्य विलास मुत्तेमवार लगभग हर अधिवेशन में मांग करते थे कि झ़ुड़पी जंगल को वन क्षेत्र की सूची से हटाया जाए वरना विदर्भ का विकास रुका रहेगा। जाने किस विशेषज्ञ प्रशासक ने झाड़ियों के समूह को वनक्षेत्र का दर्जा देकर कटाई पर रोक लगा दी थी। उन दिनों संसद के अधिवेशन में सदस्यों को बोलने का अवसर मिलता था। मंत्रियों को जवाबदेही निभानी पड़ती थी।
मुत्तेमवार के सिवा कुछ और सांसदों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखे थे। कई दशक बीत जाने के बाद गोंदिया-जबलपुर रेल मार्ग का मीटर गेज से बड़ी लाइन में काम चलाऊ परिवर्तन हुआ। कहीं कहीं कमा अधूरा है। नागपुर से उमरेड़ के बीच छोटी लाइन का काम हाथी चाल से काम जारी है। अच्छे दिन आने की उम्मीद है। झुड़पी जंगल का मसला अटका हुआ है। महाराष्ट्र मंडल के विभाग वितरण में चंद्रशेखर बावनकुले राजस्व मंत्री बने। नए मंत्री ने रविवार को मंजूर किया कि गलत आकलन के कारण करीब 86 हजार हेक्टेयर जमीन झुड़पी जंगल के नाम से दर्ज है। उनकी कटाई किए बगैर मरघट तक नहीं बनाया जा सकता।
विकास के काम पूरा होना बहुत दूर की बात है। मंत्री बावनकुले ने आश्वस्त किया कि गलत वर्गीकरण को दुरुस्त किया जाएगा। बावनकुले जब मतदाता के रूप में पात्र नहीं थे, तब से यह मांग उठ रही है। मामला अदालत में है। आम नागरिक यह सोचकर दिल पर पत्थर रख ले कि जब भ्रष्टाचार के आरोपी बरसों तक सजा नहीं पाते, तब विकास नाम के दिव्यांग सपूत की चिंता कौन करे? झुडपी जंगल का जारी रहेगा तब मुख्यमंत्री को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना संभव नहीं होगा। भले वे बार-बार ऐलानिया कहते रहें कि तीन बरस में नक्सलवाद पर पूरी तरह काबू पा लिया जाएगा। नक्सलवाद मात्र शहरी शरारत और साजिश की देन नहीं है और न लोकतंत्र विरोधी मानसिकता की उपज है। अविकसित इलाकों में अभावग्रस्त मासूम समुदाय का शोषण इसका सबसे बड़ा कारण है। वन सहित हर कथित शासकीय संपत्ति के रक्षक आम आदमी को भयभीत करते हैं। गोली से भूनकर लोग मारे जा सकते हैं, समस्या हल नहीं की जा सकती।
गड़चिरोली, सिरोंचा, धारणी-मेलघाट, नंदूरबार आदि से मुंगई की दूरी किलोमीटर में नापना नासमझी है। इसे समय और खर्च के तराजू पर तौल कर आम आदमी के कष्ट का अनुमान लगाना अधिक सही होगा। महाराष्ट्र विधानमंडल का शीतकालीन सत्र शांति से सप्ताहभर में निपट गया। इस तरह के पेचीदे सवाल नारों के शोर में गुम गए।
नागपुर में अगले बरस फिर कोठियों, बंगलों, सरकारी दफ्तरों आदि की मरम्मत, रखरखाव, रंग-रोगन, सजावट पर करोड़ों रुपए की विधानमंडल में अनुमति ली जाएगी। यह भी नहीं पूछा जाएगा कि एक सप्ताह के अंदर हमारे जनप्रतिनिधि और दूसरे रहवासी ऐसी क्या तोड़फोड़ कर जाते हैं? वरना माना यही जाएगा कि जिस जिस ने 2024 के लिए काम किया, वह कच्चा था। मापदंड के अनुरूप नहीं था। इस बात के लिए कलेजा चाहिए, भले वह 56 इंच का न हो। ऊपर से लेकर नीचे तक संबंधित अधिकारी साल समाप्त होने से पहले तुरंत न तो काम की गुणवत्ता का परीक्षण कराएंगे और न वित्त मंत्री समेत किसी को चिंतन करने का समय है। सार्वजनिक निर्माण विभाग का रोना है कि गत दो वर्ष के कामकाज के चार खरब रुपए की बकाया राशि का भुगतान बाकी है।
40 हजार की देनदारी है और पूरक मांगों में पन्द्रह सौ करोड़ की मंजूरी ली गई है। लाडले ठेकेदारों के रुदन से खजाने की खाली तिजोरी भी सकपका गई होगी। मंत्री माणिकराव हालात भांप कर कह गए- मैं तो लहरें गिनने का काम करने तैयार हूं विकल्प दूसरे हैं। विकेंद्रीकरण पर ध्यान दें। शिकायतों और आरोपों पर गंभीरता से विचार करें। पुणे, संभाजीनगर, कोल्हापुर, नाशिक, जलगांव आदि शहरों में सैलानी बनकर दौरे न करें। समस्या सुनें और समाधान सोचें। वरना कहा जाएगा कि शीत पर्यटन का दूसरा नाम अधिवेशन बताया जाएगा।
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- 24 Dec 2024 7:03 PM IST
सदन के शोर में गुम होते मुद्दे
Nagpur News : प्रकाश दुबे। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से अंडमान निकोबार द्वीप के मुख्यालय पोर्ट ब्लेयर की दूरी दो हजार 280 किलोमीटर है। मध्य अंडमान तक पहुंचने के लिए दूरी बढ़ जाएगी। सीधा सड़क संपर्क संभव नहीं है। जल जहाज से चार दिन में पहुंचते हैं। मध्य अंडमान में सड़कों का अकाल है।
Created On :   24 Dec 2024 7:01 PM IST