Nagpur News: हड्डियों की जांच से उम्र के निर्धारण को लेकर सवाल, बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट का मुद्दा

हड्डियों की जांच से उम्र के निर्धारण को लेकर सवाल, बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट का मुद्दा
  • नाबालिग से जुड़े मामले में कोर्ट ने दिया था आदेश
  • बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट का मुद्दा
  • साक्ष्य के रूप में यह स्वीकार्य है : एड. संजय डोईफोडे

Nagpur News. दुष्कर्म के ज्यादातर मामले में पीड़िता का जन्म प्रमाण पत्र या जन्म से संबंधित कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं रहने पर पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए अदालत बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट करने का आदेश देती है। साथ ही कोई आरोपी नाबालिग होने का दावा करता है, तब उसकी उम्र जानने के लिए यह परीक्षण किया जाता है। लेकिन बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट करने के बावजूद भी सही आयु को लेकर केवल अनुमान लगाया जा सकता है, इसके बारे निश्चित नहीं कहा जा सकता, यह बात कोर्ट के एक फैसले से सामने आई है।

विधि जानकारों की अपनी राय : जिला सत्र न्यायालय नागपुर ने हाल ही के महीने में दुष्कर्म के मामले में सबूतों के अभाव के चलते एक आरोपी को बरी किया था। इस मामले में पीड़िता के आयु का निर्धारण करने के लिए उसे ऑसिफिकेशन परीक्षण के लिए भेजा गया। परीक्षण के बाद भी चिकित्सक पीड़िता की सही आयु को लेकर निश्चित नहीं थे। यह निरीक्षण कोर्ट के आदेश में दर्ज है। इसलिए ऑसिफिकेशन परीक्षण कितना सटीक है, या यह परीक्षण केवल अनुमान प्रक्रिया है, क्या इसे सबूत के रूप में स्वीकार्य माना जाएगा या नहीं? ऐसे कई सवालों को लेकर दैनिक भास्कर ने विधिज्ञ से बातचीत की।

यह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं : एड. राजेंद्र डागा

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ के एड. राजेंद्र डागा ने कहा कि दुष्कर्म से जुड़े ज्यादातर मामलों में ऑसिफिकेशन परीक्षण के निर्देश अदालत की ओर से दिए जाते हैं। कई मामले खुद पुलिस ही पीड़िता का ऑसिफिकेशन परीक्षण कर लेती है। ऐसा केवल दुर्लभ मामलों में ही होता है, लेकिन इस परीक्षण को पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। क्योंकि यह उम्र का केवल अनुमान होता है। परीक्षण में जो उम्र बताई जाती है, इससे दो साल कम या दो साल ज्यादा अनुमानित किया जाता है। इसे अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है और वादी या प्रतिवादी को लाभ पहुंचाने के लिए इसका आधार बनाया जा सकता है।

साक्ष्य के रूप में यह स्वीकार्य है : एड. संजय डोईफोडे

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ के सरकारी वकील संजय डोईफोडे ने कहा कि, ऑसिफिकेशन परीक्षण कोर्ट में साक्ष्य में रूप में स्वीकार्य माना जाता है। दुष्कर्म से जुड़े मामलों में अगर नाबालिग पीड़िता की मां ने पीड़िता की उम्र कुछ और बताई और पिता ने कुछ और बताई, लेकिन आरोपी की इस पर कोई आपत्ति नहीं तो वह उम्र स्वीकार्य होती है। लेकिन दो अलग अलग उम्र पर आरोपी ने आपत्ति जताई तो अदालत ऑसिफिकेशन परीक्षण करने का आदेश देती है। इस परीक्षण के अलावा पीड़िता की ट्रांसफ़र सर्टिफ़िकेट (टीसी) को छोड़ ग्राम पंचायत, महानगर पालिका का जन्म प्रमाण पत्र या अस्पताल से मिला जन्म प्रमाण पत्र साक्ष्य के तौर पर स्वीकार्य है।

टेस्ट कैसे किया जाता है? : ऑसिफिकेशन टेस्ट एक चिकित्सा प्रक्रिया है जो उम्र निर्धारित करने के लिए हड्डियों का विश्लेषण करती है। इस परीक्षण में शरीर की कुछ हड्डियों, जैसे कि हंसली, उरोस्थि और श्रोणि का एक्स-रे लेना शामिल है, ताकि हड्डियों में वृद्धि की डिग्री निर्धारित की जा सके।


Created On :   24 March 2025 8:30 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story