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Nagpur News: मिर्गी - जड़ी-बूटी और तंत्र - मंत्र में उलझकर समय बर्बाद करते हैं मरीज
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- डॉक्टरों से उपचार करवाना लाभदायक
- अंगों को नुकसान होने का जोखिम
Nagpur News. चंद्रकांत चावरे | शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के मनोरोग विभाग में हर रोज मिर्गी के मरीज आते हैं। यहां की हर रोज की औसत ओपीडी 120 है। इनमें अलग-अलग मनोविकार से पीड़ित होते हैं। इनमें 16 फीसदी यानी 19 से अधिक मरीज मिर्गी की बीमारी से पीड़ित होते हैं। मरीजों में 40 फीसदी यानी 7 से अधिक मरीज ऐसे होते हैं, जो अपना समय व पैसा बर्बाद कर चुके होते हैं। यह मरीज जड़ी-बूटी व तंत्र-मंत्र के चक्कर में उलझे होते हैं। जब उन्हें लाभ नहीं होता तो परेशान होकर मेडिकल के मनोरोग विभाग में आते हैं। लंबा समय बीत जाने से बीमारी का प्रभाव भी बढ़ चुका होता है।
जांच में पाए जाते हैं सामान्य : मिर्गी को घातक बीमारी माना जाता है। इस बीमारी के जब झटके आते हैं तो मरीज का शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। वह होश खो देता है। उसका मस्तिष्क काम नहीं करता। इसलिए ऐसे मरीज के साथ हमेशा एक व्यक्ति को रहना पड़ता है। अधिकतर मरीजों को मिर्गी होने की जानकारी तक नहीं हाेती। झटके आने के बाद भी वह स्वयं को सामान्य मानता है। मनोरोग विभाग में भी ऐसे मरीजों की जांच करने पर रिपोर्ट सामान्य ही आती है। मेडिकल के मनोरोग विभाग की हर दिन की ओपीडी औसत 120 है। इनमें से 16 फीसदी यानि 19 से अधिक मरीज मिर्गी से पीड़ित होते हैं।
रोग बढ़ने पर पहुंचते मेडिकल : मिर्गी के 16 फीसदी मरीजों में से 40 फीसदी मरीजों का उपचार अस्पतालों में काफी देर से शुरू होता है। इन मरीजों को जब मिर्गी के झटके आते हैं, तो शुरुआत में इसे सामान्य बात मानकर अनदेखी की जाती है। बार-बार जब झटके आते हैं, ताे मरीज या उसके परिजन गंभीरता दिखाते हैं। उस समय उपचार के लिए कोई विकल्प तलाशते हैं। सबसे पहले अस्पताल जाने की बजाय लोगों की कही-सुनी या बताई बातों पर विश्वास कर जड़ी-बूटी से उपचार करने वालों के पास जाते हैं। कुछ मरीज तांत्रिक बाबाओं के पास जाते हैं। इस चक्कर में लाभ तो होता नहीं उलटा समय व पैसा बर्बाद हो जाता है। तब जाकर वे मनोरोग विशेषज्ञों के पास पहुंचते हैं।
अंगों को नुकसान होने का जोखिम
सर्जरी के मामले में मस्तिष्क के अन्य अंगों को नुकसान होने का जोखिम होता है। मिर्गी में मरीजों के लक्षण एक समान नहीं होते। मरीजों में भ्रम होना, अचेतावस्था में जाना, शरीर अनियंत्रित होना, अजीब हरकतें करना, डर या क्रोध की भावना पैदा होना, स्तब्ध हो जाना समेत अन्य प्रकार भी शामिल है। यह बीमारी अनुवांशिकता से होने का प्रमाण न के बराबर बताया गया है। गर्भ में भ्रूण विकास के दौरान मस्तिष्क में विकृतियां, मस्तिष्क में गंभीर चोट लगना, ब्रेन ट्यूमर या स्ट्रोक, मेनिनजाइटिस या एन्सेफलाइटिस संक्रमण, रक्त शर्करा में असंतुलन, न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन, हार्मोनल परिवर्तन, दवाओं का साइड इफेक्ट आदि कारणों से मिर्गी के झटके आने की संभावना बनी रहती है।
डॉक्टरों से उपचार करवाना लाभदायक
डॉ. मनीष ठाकरे, मनोचिकित्सा विभाग प्रमुख, मेडिकल के मुताबिक मिर्गी के मरीजों के मामले में जांच के बाद भी रिपोर्ट सामान्य आती है। रिपोर्ट में बीमारी की पुष्टि नहीं होती। इसके अलग-अलग लक्षणों वाले मरीज होते हैं। उनके लक्षणों के आधार पर दवाएं देकर नियमित उपचार किया जाता है। जड़ी-बूटी, तंत्र-मंत्र में उलझे मरीजों का समय व पैसा बर्बाद हो जाता है। उनकी बीमारी का प्रभाव अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में उनके उपचार की अवधि भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी भी बीमारी का सीधे डॉक्टरों से जांच व उपचार करवाना लाभदायक होता है।
सामान्य मरीजों का तीन साल उपचार
जड़ी-बूटी व तंत्र-मंत्र से हार चुके मरीज जब मेडिकल के मनोरोग विभाग में पहुंचते हैं, तब तक बीमारी का प्रभाव बढ़ चुका होता है। ऐसे में उनका उपचार लंबे समय तक करना पड़ता है। मिर्गी के उपचार की सामान्य कालावधि 3 साल तक होती है। लेकिन जो मरीज पहले से काफी समय गंवा चुके हैं, उनकी बीमारी को देखते हुए 5 साल तक उपचार की आवश्यकता हो सकती है। सामान्य मरीजों का कम से कम 3 साल तक नियमित उपचार करना पड़ता है।
Created On :   23 Feb 2025 7:32 PM IST