Nagpur News: एक हजार की रिश्वत मामले में 18 साल बाद आया फैसला, किसान को राहत - मुख्य आरोपी की हो चुकी है मौत

एक हजार की रिश्वत मामले में 18 साल बाद आया फैसला, किसान को राहत - मुख्य आरोपी की हो चुकी है मौत
  • हाई कोर्ट से किसान को मिली राहत
  • मुख्य आरोपी की हो चुकी है मृत्यु

Nagpur News : एक हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ ने लगभग 18 साल बाद फैसला देते हुए आरोपी किसान को निर्दोष बरी किया। 1998 में हुई इस घटना को कुल 26 साल हुए हैं। रिश्वत लेने के मामले विशेष एसीबी की अदालत ने 2006 में आरोपी किसान को एक वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी। आखिरकार हाई कोर्ट ने विशेष अदालत का फैसला रद्द करते हुए आरोपी को बरी किया। न्या. उर्मिला जोशी-फालके ने यह फैसला सुनाया।

एसीबी की कार्रवाई : इस मामले के मुख्य आरोपी रहे वनरक्षक की हाई कोर्ट में याचिका प्रलंबित रहते हुए ही मृत्यु हुई थी। कोर्ट ने बरी हुआ किसान नागपुर जिले के भिवापुर तहसील का निवासी है। जैसे ही इस किसान ने अनजाने में वन विभाग के वनरक्षक द्वारा मांगी गई रिश्वत की रकम स्वीकार कर ली, उसे एसीबी की कार्रवाई का सामना करना पड़ा। एसीबी ने यह कार्रवाई 30 जुलाई 1998 को की थी।

यह था आरोप : शिकायत आवेदन के अनुसार, एक व्यक्ति ने घर के निर्माण में लकड़ी के लट्ठों का इस्तेमाल किया था। जब इस बात की जानकारी वन विभाग के वनरक्षक को हुई तो उसने उस व्यक्ति से पूछा कि उसने वन विभाग की अनुमति के बिना लकड़ी का उपयोग कैसे किया। साथ मामले को दबाने के लिए वनरक्षक ने एक हजार रुपए की रिश्वत मांगी। उस व्यक्ति ने वनरक्षक की मांग पूरी करते हुए उसे 1 हजार रुपए दिए।

इसलिए कोर्ट ने आरोपी काे बरी किया : हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए कहा, साक्ष्यों पर गौर करने पर पता चलता है कि आरोपी को राशि स्वीकार करते समय पता नहीं था कि यह रिश्वत की रकम है। जब किसी व्यक्ति पर अपराध के लिए उकसाने का आरोप लगाया जाता है, तो अभियोजन पक्ष पर यह साबित करने का भार होता है कि मुख्य आरोपी की तरह ही उकसाने वाले का भी वही इरादा था। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है। निचली अदालत ने आरोपी किसान को दोषी ठहराते समय इन पहलुओं पर विचार नहीं किया है।

किसान ऐसे फंसा : बाद में 20 जुलाई 1998 को वनरक्षक की उसी व्यक्ति के साथ अचानक बस स्टैंड पर मुलाकात हो गई। तब वनरक्षक ने जंगल से लकड़ी लाकर घर में उपयोग करने पर आपराधिक मामला दर्ज कराने की बात करते हुए फिर 1500 रुपये की मांग की। इसलिए 29 जुलाई 1998 को पीड़ित ने एसीबी में शिकायत दर्ज कराई। अगले दिन 30 जुलाई को एसीबी स्टाफ की मौजूदगी में वनरक्षक को एक हजार रुपए देने का फैसला हुआ। लेकिन, वनरक्षक ने रकम खुद लेने के बजाय गांव के एक किसान को देने की बात कही। जैसे ही किसान ने रकम स्वीकार की, एसीबी ने वनरक्षक सहित किसान को गिरफ्तार कर लिया और अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत किया। 30 जून 2006 को एसीबी कोर्ट ने दोनों को दोषी करार देते हुए एक साल की कैद और पांच-पांच सौ रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। उसके खिलाफ दोनों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। आरोपी की ओर से एड. ए. डी. डांगोरे और राज्य सरकार की ओर से एड. स्नेहा धोटे ने पैरवी की।



Created On :   11 Nov 2024 9:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story