Nagpur news: हेल्थ हब नागपुर में सुविधाओं को तरसते सरकारी अस्पताल, कब होगा उद्धार

हेल्थ हब नागपुर में सुविधाओं को तरसते सरकारी अस्पताल, कब होगा उद्धार
  • होमियोपैथी संस्थान : सरकार पत्र देगी तो खुलेगी राह
  • आयुर्वेद महाविद्यालय: सीटों की कटौती फिर भी सरकार गंभीर नहीं
  • एचआईवी नियंत्रण: केंद्र को आपत्ति नहीं, दुविधा में राज्य सरकार

Nagpur news. उपराजधानी को हेल्थ हब माना जाता है। सरकार ने एम्स, कैंसर इंस्टिट्यूट जैसे कड़े बड़े संस्थान लाकर और सरकारी अस्पतालों में अत्याधुनिक उपचार की घोषणाओं ने नागपुर में इलाज की संभावनाओं को बढ़ाया है। लेकिन इन दावों के बावजूद सरकारी स्वास्थ्य महकमा ही छोटी-छोटी चीजों से जूझ रहा है। कहीं ओपीडी के लिए डॉक्टर नहीं है तो कहीं बजट की मामूली कमी से काम अटका पड़ा है। ऐसे में कई सरकारी अस्पताल जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार से बजट में अपेक्षाएं बढ़ गई हैं।

प्रादेशिक मनोचिकित्सालय : मनुष्यबल नहीं, ओपीडी का इंतजार

उपराजधानी के मानकापुर स्थित प्रादेशिक मनोचिकित्सालय परिसर में जिला अस्पताल का निर्माण पूरा हो चुका है। 12 साल पहले 2013 में जिला अस्पताल बनाने की मंजूरी दी थी। उस समय 28.48 करोड़ रुपए की निधि मंजूर की गई थी। 2018 में इसका निर्माण शुरू हुआ। 2019 में निर्माण पूरा होना था, जो पांच साल विलंब से 2024 में पूरा हुआ। अब भी कुछ छोटे व महत्वपूर्ण काम होना बाकी है। यहां तत्काल ओपीडी शुरू करने के लिए सरकार को पिछले साल ही पद भर्ती का प्रस्ताव भेजा गया है। अब तक मंजूरी नहीं मिल पायी है। जब मंजूरी मिलेगी, तब भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाएगी। इसमें 2025 पूरा बीत जाने का अनुमान है। समय पर निधि नहीं मिलने से हुई विलंबता के चलते लागत बढ़ गई। इसलिए पुराने व कुछ नये कामों को मिलाकर यह योजना कुल 59.32 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। करीब चार महीने पहले एक विधायक ने यहां का दौरा कर ओपीडी शुरू करने की सूचना दी थी, लेकिन पद भर्ती के प्रति सरकार ने ठाेस कदम नहीं उठाया। प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पायी है। पद भर्ती की मंजूरी और भरती प्रक्रिया पूरी करने में 2025 बीत जाएगा। यानी सामान्य ओपीडी 2026 में ही शुरू होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

होमियोपैथी संस्थान : सरकार पत्र देगी तो खुलेगी राह

नागपुर में अखिल भारतीय होमियोपैथी संस्थान बनाने के लिए बरसों से प्रयास किया जा रहा है। संस्थान बनने पर यहां स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम व अनुसंधान कार्य हो सकेगा। इसका लाभ आसपास के चार-पांच प्रदेशों को होगा। दो साल पहले हाेमियाेपैथी डॉक्टरों की संस्था ने केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी को पत्र दिया गया था। इसके बाद गडकरी ने आयुष मंत्रालय को पत्र देकर इस दिशा में प्रयास करने का अनुरोध किया था। तत्कालीन आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पत्र पर विचार करने का आश्वासन दिया था। बाद में प्रतिउत्तर में कहा गया था कि यदि राज्य सरकार की तरफ से केंद्र सरकार को सकारात्मक पहल का पत्र दिया जाए, संस्थान निर्माण पर विचार किया जा सकता है। संस्था ने 2024 में तुरंत मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री को पत्र देकर केंद्र को पहल करने की गुहार लगायी है। यानी जब राज्य सरकार पहल करेगी तो उपराजधानी में होमियोपैथी संस्थान का निर्माण हो सकता है। इधर सरकार इस विषय को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रही।

आयुर्वेद महाविद्यालय: सीटों की कटौती फिर भी सरकार गंभीर नहीं

राज्य सरकार की नीति के चलते सरकारी अस्पतालों में स्थायी पद भर्ती नहीं हाेने का आरोप लगाया जाता है। पिछले साल सरकार ने पद भर्ती करने की घोषणा की थी। लेकिन यह पद भर्ती स्थायी नहीं, बल्कि ठेका पद्धति से की जा रही है। परिणामस्वरुप सरकारी चिकित्सा सेवा में आने से डॉक्टर-विशेषज्ञ ना-नुकूर करने लगे हैं। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालयों में स्थायी भर्ती नहीं हो रही है। डेढ़ साल पहले भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग ने राज्य के शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालयों का सर्वेक्षण किया था। इस दौरान अनेक खामियां पायी गई थी। इसमें संसाधन व मूलभूत जरूरी सुविधाओं के साथ ही मनुष्यबल की कमी पाई गई थी। शिक्षकों की भर्ती करने को कहा गया था, लेकिन सरकार ने भर्ती संबंधी स्थायी हल नहीं निकाला। 11 महीने के ठेका पद्धति पर भर्ती का निर्णय लिया । सुविधाएं व संसाधनाें के अभाव को देखते हुए आयोग ने 50 से अधिक सीटों में कटौती कर दी। राज्य के नागपुर, नांदेड, उस्मानाबाद व मुंबई स्थित शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालयों में एमडी व एमएस स्नातकोत्तर कोर्स की सुविधा है। वर्तमान में महाविद्यालयों में सीटों के हिसाब से पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं है। वहीं संसाधनों व सुविधाओं की कमी है।

एचआईवी नियंत्रण: केंद्र को आपत्ति नहीं, दुविधा में राज्य सरकार

सरकार ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान अंतर्गत 10 साल से अधिक समय से ठेका पद्धति पर सेवा दे रहे कर्मचारियों को स्थायी करने के लिए अधिसूचना जारी की है। इसका लाभ सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था अंतर्गत विविध कार्यक्रम, अभियान व योजनाओं के लिए काम कर रहे कर्मचारियों को दिया जा रहा है। इसमें टीबी, कैंसर, कुष्ठरोग व सूचीबद्ध संक्रामक बीमारियांें के नियंत्रण के लिए काम करनेवाले कर्मचारियों का समावेश है, लेकिन महाराष्ट्र राज्य एड्स नियंत्रण संस्था के कर्मचारियों का उल्लेख नहीं किया गया है, जबकि यह संस्था 1999 से कार्यरत है। राज्यभर में 2000 और अकेले नागपुर जिले में यह संख्या 110 से अधिक है। केवल एनएचएम से जुड़े कर्मचारियों को स्थायी किया जा रहा है। राज्य सरकार ने 1998 में महाराष्ट्र राज्य एड्स नियंत्रण संस्था की स्थापना की है। महाराष्ट्र राज्य एड्स कंट्रोल एम्प्लाइज एसोसिएशन ने पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को निवेदन देकर समायोजन का का आग्रह किया है। इस मामले में 2014 में केंद्र की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया कि महाराष्ट्र राज्य एड्स नियंत्रण संस्था के कर्मचारियों को स्थायी करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। 10 साल बीतने के बावजूद सरकार की संवेदना नहीं जागी। इस विषय को लेकर संगठन व स्वास्थ्य विभाग की बैठक भी हो चुकी है, बावजूद सकारात्मक पहल नहीं की जा रही है।

Created On :   10 March 2025 7:25 PM IST

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