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Nagpur News: धरती बचेगी, हम बचेंगे, पशुधन आहार में सुधार से संभव है ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण
- एक प्रौढ़ गाय, भैंस से एक दिन में 250 लीटर तक मीथेन का उत्सर्जन
- यह घरेलू गैस सिलेंडर से 15 गुना ज्यादा
Nagpur News निखिल जनबंधु . ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। साथ ही जलवायु परिवर्तन पर असर हो रहा है। अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो मानव सहित समस्त जीवों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। ग्रीन हाउस गैस में मीथेन भी एक प्रमुख घटक है, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। यह जानकर हैरानी होगी कि वायुमंडल में मीथेन उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत पशुधन है। यह खुद पशु वैज्ञानिक और जलवायु विशेषज्ञों ने माना है। एक प्रौढ़ यानी 400 किलो की गाय या भैंस एक दिन में लगभग 200 से 250 लीटर तक मीथेन उत्सर्जन करती है। यानी एक घरेलू सिलेंडर के 15 गुना ज्यादा मीथेन पशुधन एक दिन में उत्सर्जित करता है।
भारत में पशुधन से प्रतिवर्ष 9.25 टेराग्राम मीथेन उत्सर्जन : डॉ. मलिक ने बताया कि, भारत में 535 मिलियन पशुधन हैं। इस पशुधन से प्रतिवर्ष 9.25 टेराग्राम (1 टेराग्राम यानी एक बिलियन किलोग्राम) मीथेन का उत्सर्जन होता है। वहीं विश्व की बात करें तो पशुधन से प्रतिवर्ष 100 टेराग्राम मीथेन उत्सर्जन किया जाता है। इसलिए भारत से लेकर पूरे विश्व के पशु वैज्ञानिक पशुधन से निकलने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर अनुसंधान कर रहे हैं।
वायुमंडल में तापमान वृद्धि का बड़ा कारण : राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान बैंगलोर के विभाग प्रमुख डॉ. प्रदीप कुमार मलिक ने खास बातचीत में यह जानकारी दी है। डॉ. मलिक ने बताया कि, गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि पशुधन के पेट की संरचना को चार भागों में विभाजित किया जाता है। इनमें एक भाग जिसे रुमेन कहा जाता है, इसमें खाए गए भोज्य पदार्थ की पाचन क्रिया होती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन रिलीज होता है और जब चर्वण (चबाने) के दौरान यह मीथेन बनकर मुंह से बाहर निकलता है। प्रौढ़ गाय या भैंस एक दिन में लगभग 250 लीटर तक मीथेन का उत्सर्जन करती है, वहीं भेड़ और बकरी 30 से 35 लीटर मीथेन एक दिन में बाहर निकालती है, जो वायुमंडल में तापमान वृद्धि का कारण बनता है। इस प्रक्रिया के लिए पशुधन को 10 से 12 प्रतिशत आहार ऊर्जा खर्च हो रही है।
इसलिए कम करने पर ज्यादा जोर ः डॉ. मलिक ने यह भी कहा कि, ग्रीन हाउस गैस में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड है, लेकिन वातावरणीय ऊष्मा की बात करें तो मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 27 गुणा शक्तिशाली है। अगर कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में रिलीज हुआ तो उसकी लाइफ खत्म होने में 100 वर्ष लगेंगे। नाइट्रस ऑक्साइड को 200 वर्ष और मीथेन को सिर्फ 10 वर्ष खत्म होने में लगेंगे। इस गैस की सबसे कम वर्ष आयु है, इसलिए उसे कम करने में ज्यादा आसानी होगी। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग के जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों में से मीथेन का उत्सर्जन कम करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
हरितधरा पशु आहार से मीथेन उत्सर्जन होगा कम
डॉ. मलिक ने कहा कि, पशुधन का मीथेन उत्सर्जन कम करने के लिए राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान बैंगलोर ने प्रौद्योगिकी विकसित की है, जिसमें हरितधरा प्रौद्योगिकी प्रमुख है। इस हरितधरा पशु आहार से पशुधन द्वारा उत्सर्जित किया जा रहा मीथेन विपरीत प्रभाव किए बिना लगभग 20 से 25 प्रतिशत कम किया जा रहा है। इस हरितधरा पशुआहार का प्रतिदिन का व्यय केवल 8 से 10 रुपए है। इस हरितधरा प्रौद्योगिकी को देश के 14 राज्यों में लागू किया गया है।
मीथेन गैस का ज़िम्मेदार बैक्टीरिया ः जुगाली करने वाला एक जानवर दिन भर में औसतन 250-500 लीटर तक मीथेन गैस छोड़ता है। एक आकलन है कि जानवर डकार और हवा छोड़ते हुए इतनी मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो 3.1 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर नुक़सान करती है।
प्रकिया इस तरह होती है: जुगाली करने वाले पशुओं में, रूमेन माइक्रोब्स जैसे बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और कवक के रूप में जीवाणु पाये जाते हैं, जो पशु द्वारा खाये गए आहार को किण्वित करके वोलाटाइल फैटी एसिड (वीएफए), माइक्रोबियल प्रोटीन, कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन जैसे विभिन्न उत्पादों मे विभाजित करते हैं। रुमेन की एनरोबिक स्थितियों के अंतर्गत, मेथानोजेनिक बैक्टीरिया मीथेन निर्माण के लिए हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं, जो मुख्य रूप से डकार के माध्यम से जुगाली करने वाले पशुओं द्वारा उत्सर्जित होता है।
पशुओं की एनर्जी की हानि : जुगाली करने वाले पशु कुल लगभग 4-12 प्रतिशत ग्रहण की गई एनर्जी को मीथेन के रूप में उत्सर्जित करके क्षय करते हैं, जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि इसके कारण पशुओं की एनर्जी की हानि भी होती है ।
दूध उत्पादन से सीधा संबंध : यदि पशुओं की एनर्जी, प्रोटीन और खनिज तत्वों की उपलब्धता को अनुकूलित करके रुमेन किण्वन की दक्षता में सुधार किया जाए, तो मीथेन के रूप में ऊर्जा की हानि को कम किया जा सकता है, जिससे इस ऊर्जा को दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए परिवर्तित किया जा सकता है।
Created On :   22 Jan 2025 3:05 PM IST