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बाल अधिकार संरक्षण आयोग: बकाया फीस के लिए अभिभावकों से संपर्क करें स्कूल, विद्यार्थियों को प्रक्रिया से रखें दूर
- बच्चों को ह्वाइटकार्ड देकर या डायरी में लिखकर अभिभावकों को फीस चुकाने का कोई संदेश न भेजें
- रजिस्टर्ड पोस्ट, स्पीड पोस्ट, कुरियर, ई-मेल जैसे माध्यमों का इस्तेमाल करें स्कूल
- 7 साल बाद फैसला, बेटा बन गया इंजीनियर
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बकाया फीस के लिए स्कूल सीधे अभिभावक से संपर्क करें और विद्यार्थियों को इससे दूर रखें। महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शिकायत की सुनवाई के बाद यह आदेश दिया है। आयोग ने स्कूलों से कहा है कि बच्चों को ह्वाइटकार्ड देकर या डायरी में लिखकर अभिभावकों को फीस चुकाने का कोई संदेश न भेजें। अभिभावकों को सूचना देने के लिए स्कूल रजिस्टर्ड पोस्ट, स्पीड पोस्ट, कुरियर, ई-मेल जैसे माध्यमों का इस्तेमाल करें। यदि विद्यार्थियों का रिजल्ट रोका गया है तो उसे तुरंत जारी किया जाए। आयोग ने राज्य के शिक्षा आयुक्त को भी निर्देश दिए हैं कि बकाया फीस को लेकर वे राज्य भर के स्कूलों को दिशा-निर्देश जारी करें।
विद्यार्थियों को दिया था ह्वाइटकार्ड
मामला मुंबई के दादर स्थित आइईएस मॉडर्न इंग्लिश स्कूल से जुड़ा है। पैरेंट्स टीचर्स एसोसिएशन ने आयोग से शिकायत की थी। इसमें बताया गया कि बकाया फीस के लिए कक्षा में खड़ा कर बच्चों को ह्वाइटकार्ड दिया था। इससे बच्चे खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। अभिभावक प्रसाद तुलसकर ने बताया कि स्कूल ने फीस बढ़ा दी। शिक्षा उप-निदेशक ने भी कहा था कि फीस गलत तरीके से बढ़ाई गई थी। हम पुरानी फीस चुकाने को तैयार थे। लेकिन स्कूल प्रबंधन बढ़ी हुई फीस मांग रहा था।
7 साल बाद फैसला, बेटा बन गया इंजीनियर
तुलसकर ने बताया कि मामले की शिकायत 2016 में की गई थी। उस वक्त उनका बेटा 10वीं कक्षा में पढ़ता था, जो अब इंजीनियर बन चुका है। आयोग में पद रिक्त होने जैसी कई वजहों से सुनवाई में देरी हुई। लेकिन उन्हें खुशी है कि लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार दूसरे बच्चे इस तरह से अपमानित महसूस नहीं करेंगे। हालांकि हम चाहते थे कि इस मामले में स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। आगे कोई कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर हम वकीलों की राय ले रहे हैं।
‘बच्चों का आत्मविश्वास हो जाता है कमजोर’
मनोचिकित्सक डॉ. सागर मूंदड़ा ने कहा कि सहपाठियों के सामने बकाया फीस को लेकर सवाल से बच्चों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है। उन्हें लगता है कि वे दूसरों से कमतर हैं। माता-पिता को लेकर भी उन्हें लगता है कि शायद वे उन्हें प्यार नहीं करते। डॉ. मूंदड़ा ने कहा कि इन हालात में बच्चों को यह भी लगने लगता है कि पैसा ही सब कुछ है…पैसा नहीं होने पर उन्हें अपमानित होना पड़ रहा है। इसका प्रतिकूल असर उनकी मानसिकता पर पड़ता है।
Created On :   17 Nov 2023 9:45 PM IST