Mumbai News: सिप्पी और परिवार के बीच संपत्ति विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा, सरकारी कर्मचारियों की समय से पहले पोस्टिंग पर सुनवाई

सिप्पी और परिवार के बीच संपत्ति विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा, सरकारी कर्मचारियों की समय से पहले पोस्टिंग पर सुनवाई
  • रमेश सिप्पी और उनके भतीजे के बीच संपत्ति को लेकर चल रहा विवाद
  • सरकारी कर्मचारियों का समय से पहले ट्रांसफर और पोस्टिंग पर हाई कोर्ट का दूसरा खंडपीठ करेगा फैसला
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति पर एमपीडीए के तहत कार्रवाई के नासिक पुलिस आयुक्त के आदेश को किया रद्द

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने बॉलीवुड निर्देशक रमेश सिप्पी और उनके परिवार के बीच संपत्ति विवाद को मध्यस्थता के लिए भेज दिया है। दोनों पक्ष विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पर सहमत हो गए हैं। न्यायमूर्ति बी.पी.कोलाबावाला और न्यायमूर्ति एफ.पी.पूनीवाला की पीठ ने रमेश सिप्पी द्वारा दायर याचिका को स्थगित कर दिया, जिससे दोनों पक्ष मध्यस्थता को एक विकल्प के रूप में विचार कर सकें। पीठ ने मध्यस्थ से विवाद सुलझाने के लिए चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। पीठ ने कहा कि यदि मध्यस्थ को और समय की आवश्यकता होती है, तो पक्षकार विस्तार की मांग करने के लिए स्वतंत्र हैं। रमेश सिप्पी और उनके भतीजे सुनील अजीत सिप्पी अपने पिता के निधन के बाद से ही आपस में उलझे हुए थे। दोनों पक्ष एक अस्थायी समझौते पर पहुंच गए हैं। समझोते के तहत जी.पी.सिप्पी के पोते शान और समीर उत्तम सिंह मुंबई के अल्टामाउंट रोड पर स्थित आवासीय संपत्ति पर कब्जा नहीं छोड़ेंगे। उसमें कोई तीसरा पक्ष नहीं होगा। रमेश सिप्पी ने अपनी दिवंगत मां की संपत्ति के प्रशासन के लिए दायर मुकदमे में आदेश के विरुद्ध याचिका दायर की थी। दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि शान और समीर पूरे फ्लैट का नवीनीकरण कर सकते हैं। वे अदालत की अनुमति के बिना कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं कर सकते। रमेश सिप्पी ने शोले जैसी ब्लॉकबस्टर हिट फिल्मों का निर्देशन किया है।

सरकारी कर्मचारियों का समय से पहले ट्रांसफर और पोस्टिंग पर हाई कोर्ट की दूसरी खंडपीठ करेगी फैसला

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सरकारी कर्मचारियों का समय से पहले ट्रांसफर एवं पोस्टिंग पर फैसला दूसरे खंडपीठ के पास भेज दिया है। इसको लेकर दायर याचिका में सरकारी कर्मचारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का समय निश्चित करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि सरकारी कर्मचारी से उसकी पोस्टिंग बरकरार रखने या मनचाही पोस्टिंग पाने की उम्मीद और ट्रांसफर के मुद्दों पर देश भर के न्यायालय और न्यायाधिकरण में बड़े पैमाने पर मुकदमेबाजी देखनों को मिलती है। सरकारी मुहकमें में इसको लेकर भ्रष्टाचार भी हो रहा है। यदि सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का समय निश्चित कर दिया जाए, तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है। न्यायमूर्ति ए.एस.चंद्रकर, न्यायमूर्ति संदीप मार्ने और न्यायमूर्ति जितेन्द्र जैन की पीठ के समक्ष सर्किल अधिकारी विश्वास लक्ष्मण गदाडे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मनमाने तबादले बढ़ रहे थे और इसलिए उन्हें नियंत्रित करने के लिए सरकार और उनके विभाग व्यापक रूप से तबादले की शक्ति को नियमित करने वाले दिशा-निर्देश और नीतियां लेकर आएं। ऐसी नीतियों और दिशा-निर्देश पालन स्थानांतरण करने वाले अधिकारियों को तबादले करते समय करना चाहिए। पीठ ने माना कि सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार दोहराया है कि स्थानांतरण सेवा की एक घटना है और नियुक्ति प्राधिकारी के पास कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में व्यापक विवेकाधिकार है। न्यायालय और न्यायाधिकरण स्थानांतरण प्राधिकारी द्वारा प्रयोग किए गए विवेकाधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। पीठ ने यह भी कहा कि स्थानांतरित करने वाले प्राधिकारी में निहित विवेक को मान्यता दी है कि जहां भी विशेष परिस्थितियां मौजूद हों, वहां 3 साल के सामान्य कार्यकाल में अपवाद हो सकता है। इस प्रकार निर्णय एक बार फिर असाधारण परिस्थितियों के कारण 3 वर्ष के सामान्य कार्यकाल को पूरा करने से पहले सरकारी कर्मचारी को स्थानांतरित करने की अनुमति के मुद्दे से निपटता है। यह निर्णय वास्तव में हमारे पास भेजे गए प्रश्न को तय करने में कोई सहायता प्रदान नहीं करता है। गैर-सचिवालय समूह-सी कर्मचारियों का सामान्य कार्यकाल अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार केवल 3 वर्ष है। यह स्थानांतरित करने वाले प्राधिकारी को तय करना है। पीठ ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि याचिका पर निर्णय लेने के लिए दूसरे खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति पर एमपीडीए के तहत कार्रवाई के नासिक पुलिस आयुक्त के आदेश को किया रद्द

वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने नासिक पुलिस आयुक्त द्वारा एक व्यक्ति को खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम (एमपीडीए)अधिनियम के तहत हिरासत में लेने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने उस व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस. एम. मोदक के समक्ष संकेत सुधाकर पगारे की ओर से वकील आयशा अंसारी की दायर याचिका में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने अपने दोस्त को नासिक पुलिस आयुक्त के एमपीडीए के तहत हिरासत में लेने के आदेश को चुनौती दी। याचिकाकर्ता की वकील आयशा अंसारी ने दलील दी कि हिरासत के आधार पर पुलिस की ओर से विवेक का उपयोग नहीं किया गया। उन्होंने अपनी व्यक्तिगत संतुष्टि के लिए पिछले इतिहास पर भरोसा किया था, लेकिन हिरासत के आधार पर दो अपराधों को संदर्भित करता है। पीठ ने माना कि एफआईआर में हिरासत में लिए गए व्यक्ति का नाम बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया गया है। इसलिए ये सभी अवलोकन दिमाग के इस्तेमाल पर आधारित नहीं हैं। गवाहों के बयान में हिरासत में लिए गए व्यक्ति के नाम और भूमिका का संदर्भ है। उसने शिकायत के अलावा अन्य जांच दस्तावेजों का अवलोकन किया है। हिरासत में लिए गए व्यक्ति का नाम या उसकी किसी भूमिका का उल्लेख नहीं है। यह विवेक का प्रयोग न करने का एक और उदाहरण है। इन सभी बिंदुओं पर हम संतुष्ट हैं कि बंदी आदेश निरस्त किए जाने योग्य है। पुलिस ने आरोप लगाया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति पर नासिक पुलिस पुलिस स्टेशन क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न कर रहा है। वह लगातार आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है। इसलिए यह साबित होता है कि वह एमपीडीए अधिनियम की धारा 2(बी-1) के तहत खतरनाक व्यक्ति है।

Created On :   17 Jan 2025 9:43 PM IST

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