बॉम्बे हाई कोर्ट: गंभीर मामलों में अभियुक्त को अंतरिम संरक्षण या संरक्षण देने से न्याय की विफलता हो सकती है

गंभीर मामलों में अभियुक्त को अंतरिम संरक्षण या संरक्षण देने से न्याय की विफलता हो सकती है
  • अदालत ने नाबालिग से दुराचार के आरोपी छात्र को जमानत देने से किया इनकार
  • पुणे के समर्थ पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ पहले भी दो आपराधिक मामले दर्ज

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि गंभीर मामलों में अभियुक्त को अंतरिम संरक्षण या संरक्षण देने से न्याय की विफलता हो सकती है। ऐसे में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पॉक्सो) के मामले में नाबालिग से दुराचार के आरोपी छात्र को जमानत नहीं दी जा सकती है। आरोपी के खिलाफ पुणे के समर्थ पुलिस स्टेशन में पहले भी दो आपराधिक मामले दर्ज थे। न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की एकल पीठ के समक्ष 20 वर्षीय छात्र रोहन शंकर निकम की ओर से वकील प्रशांत राउल की दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 482 के अनुरूप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के अंतर्गत याचिकाकर्ता के अग्रिम जमानत का अनुरोध किया गया। सरकार के अतिरिक्त वकील अमित पालकर ने उसकी जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ 14 वर्षीय लड़की से दुराचार के मामले में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 74, 75, 78 के साथ-साथ लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम 2012 की धारा 12 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। उसके खिलाफ इस मामले में गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है। वह आदतन अपराधी है। उसके खिलाफ पहले से भी दो मामले लंबित हैं। पीठ ने सरकारी वकील की दलील को स्वीकार कर कहा कि किसी भी स्थिति में जब गैर जमानती वारंट जारी किया जाता है, तो याचिकाकर्ता असाधारण शक्ति के तहत अग्रिम जमानत मांगने का हकदार नहीं है। निश्चित रूप से यह न्याय के हित में असाधारण मामलों में अग्रिम जमानत देने की न्यायालय की शक्ति से वंचित नहीं करेगा। यदि व्यक्ति लगातार न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हैं और फरार रहते हैं, वे ऐसे अनुदान के हकदार नहीं हैं। पीठ ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है और उसके द्वारा उसे चुनौती नहीं दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के तहत याचिकाकर्ता गिरफ्तारी से पहले जमानत मांगने का हकदार नहीं है।

जांच रिपोर्ट नहीं दिए जाने मात्र से दोषी कर्मचारी को स्वतः बहाल नहीं किया जा सकता....बॉम्बे हाई कोर्ट

दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कल्याण डोंबिवली महानगर पालिका (केडीएमसी) के क्लर्क की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जांच रिपोर्ट नहीं दिए जाने मात्र से दोषी कर्मचारी को स्वतः बहाल नहीं किया जा सकता है। अदालत ने केडीएमसी के क्लार्क के खिलाफ चार वेतन वृद्धियों को स्थायी रूप से रोकने की सजा को बरकरार रखा है। क्लार्क पर केडीएमसी में 1992 में ऑक्ट्रोई चेक पोस्ट तैनाती के दौरान ट्रक चालक से रिश्वत लेने का आरोप है। न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की एकलपीठ ने केडीएमसी के क्लर्क दत्तात्रय योगीराज बदावे की याचिका पर कहा कि केडीएमसी आयुक्त द्वारा याचिकाकर्ता को चार वेतन वृद्धियों के स्थायी रोक के मामूली दंड पर छोड़ दिया गया था। यदि रिश्वत स्वीकार करने के आरोप के समर्थन में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य होता, तो उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता था। वह औद्योगिक न्यायालय के 16 दिसंबर 2001 के निर्णय को खारिज किए जाने से संतुष्ट था। इसलिए उसने साढ़े पांच साल तक चुनौती देने की जहमत नहीं उठाई। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर अंततः लगाए गए जुर्माने की प्रकृति और याचिका दायर करने में हुई अत्यधिक देरी को देखते हुए मुझे औद्योगिक न्यायालय द्वारा पारित विवादित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई वैध कारण नहीं मिला। याचिका में कोई दम नहीं है। इसे खारिज किया जाता है।

क्या है पूरा मामला

याचिकाकर्ता को वर्ष 1980-81 में केडीएमसी की सेवाओं में नियुक्त किया गया था। वह साल 1992 में ऑक्ट्रोई चेक पोस्ट क्लर्क के रूप में तैनात था। इस दौरान 3 दिसंबर 1992 को वह ट्रक चालक से चुंगी वसूल नहीं की और 400 रुपए की रिश्वत स्वीकार कर ली थी।

Created On :   13 April 2025 9:31 PM IST

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