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Mumbai News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य की जेलों में बंद गंभीर रूप से बीमार कैदियों पर जताई चिंता
- अदालत ने सरकार को हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का दिया निर्देश
- बीमार कैदियों के लिए मेडिकल बेल और हाउस अरेस्ट के बारे में केंद्र सरकार की एडवाइजरी का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने को कहा
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य के विभिन्न जेलों में बंद गंभीर रूप से बीमार कैदियों पर चिंता जताई है। अदालत ने राज्य सरकार को एडवाइजरी के कार्यान्वयन के संबंध में एक विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने प्रणालीगत देरी को दूर करने और ऐसे कैदियों के लिए मानवीय उपचार सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने अरुण भेलके की याचिका पर सुनवाई के दौरान पुणे की येरवडा सेंट्रल जेल के अपने हालिया दौरे के बाद इस मुद्दे की तात्कालिकता पर प्रकाश डाला। पीठ ने कहा कि उन्होंने रविवार को येरवडा सेंट्रल जेल की सुविधाओं का निरीक्षण किया, जिसमें विशेष रूप से महिला कैदियों से बातचीत की और वहां की परिस्थितियों का आकलन किया। अदालत ने अगस्त 2010 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रमुख एडवाइजरी का हवाला दिया, जिसमें गंभीर रूप से बीमार कैदियों के इलाज के लिए नीतियों की रूपरेखा दी गई है।
इस एडवाइजरी के अनुसार लाइलाज बीमारी से पीड़ित कैदियों को मेडिकल आधार पर जमानत, पैरोल, फरलो दी जानी चाहिए या उनके परिवार के सदस्यों की देखरेख में रखा जाना चाहिए। कुछ मामलों में जेल के भीतर ही विशेष चिकित्सा देखभाल प्रदान की जा सकती है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह ने अदालत को बताया कि मौजूदा नियमों के तहत जेल अधीक्षकों को कुछ शर्तों के साथ गंभीर रूप से बीमार कैदियों को उनके रिश्तेदारों के पास छोड़ने का अधिकार है, जिससे वे अपने अंतिम दिन परिवार के साथ बिता सकें। याचिकाकर्ता अपनी पत्नी कंचन ननावरे के साथ एक विचाराधीन कैदी था। दंपति को 2014 में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था। याचिका में दावा किया गया कि ननावरे को 2020 में एक लाइलाज बीमारी का पता चला था, लेकिन वह मेडिकल जमानत हासिल करने में असमर्थ थे। जब कंचन ने राहत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो उन्हें एक मेडिकल बोर्ड के पास भेजा गया, जिसके हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण की सिफारिश की।
हालांकि प्रक्रिया में देरी के कारण समय पर कोई आदेश पारित नहीं किया जा सका और 7 साल हिरासत में रहने के बाद जनवरी 2021 को उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद अरुण भेलके ने याचिका दायर की, जिसमें 2010 की सलाह के साथ-साथ महाराष्ट्र कारागार (दंड की समीक्षा) नियमों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया। उन्होंने अदालत से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि प्रशासनिक की चूक के कारण किसी अन्य कैदी को इसी तरह की पीड़ा का सामना न करना पड़े।
Created On :   17 Dec 2024 10:13 PM IST