स्कूलों में शौचालयों की हालत ख़राब: बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार
  • सरकारी स्कूलों में लड़कियों के शौचालयों की हालत ख़राब
  • निरीक्षण के लिए न्यायिक अधिकारियों को शामिल करने की बाध्यता

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की खराब स्थिति पर निष्क्रियता के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि स्कूलों में उचित सुविधाएं सुनिश्चित की जिम्मेदारी सरकार की। अदालत ने इसके लिए जिला न्यायाधीशों को शामिल करने पर सरकार की खिंचाई की।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष बुधवार निकिता गोर की ओर से वकील विनोद सांगवीकर की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जनहित याचिका में सैनिटरी नैपकिन को एक आवश्यक वस्तु के रूप में मान्यता देने, करों से मुक्त करने और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन राष्ट्रीय दिशा निर्देश 2015 को लागू करने की मांग की गई है।

याचिका करता की ओर से वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने दलील दी कि स्कूलों में पानी उपलब्ध नहीं है और शौचालय खराब स्थिति में हैं। कुछ स्थानों पर शौचालय खुली जगह में हैं और मानसून के दौरान उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाते हैं, वहां उन्हें बदलने के लिए कोई जगह नहीं है। कानूनी सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट में सुविधाओं की खराब स्थिति दिखाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं, जिससे पर्याप्त सुविधाओं की कमी के कारण कई लड़कियां स्कूल जाने से वंचित हो गई हैं।

राज्य के एजीपी भूपेश सामंत ने राज्य में स्कूलों की स्थितियों के संबंध में 2018 में औरंगाबाद पीठ द्वारा शुरू की गई एक स्वत: संज्ञान जनहित याचिका की ओर इशारा किया। जुलाई 2023 में औरंगाबाद पीठ ने जिला परिषद, नगर निगम, नगर परिषद, पंचायत समिति जैसे स्थानीय अधिकारियों द्वारा संचालित सभी स्कूलों का निरीक्षण करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए एक समिति के गठन का निर्देश दिया। समितियों का नेतृत्व प्रत्येक जिले के प्रधान जिला न्यायाधीश करते हैं। सामंत ने कहा कि राज्य के प्रत्येक जिले में समितियां क्रियाशील हैं।

इस पर खंडपीठ ने सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या कर डाले? हम इस स्तर पर आ गए हैं कि आप से जो अपेक्षा की जाती है, उसके लिए हम स्कूलों के शौचालयों का निरीक्षण करने के लिए प्रधान जिला न्यायाधीशों को शामिल कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वहां पढ़ने वाली लड़कियों को सुविधाएं मिलें। हमें ऐसे मामलों में पीडीजे को शामिल करते हुए आदेश पारित करने में बहुत खुशी नहीं होती है।

अदालत औरंगाबाद खंडपीठ के एक आदेश का जिक्र कर रही थी, जिसमें स्थानीय अधिकारियों द्वारा संचालित स्कूलों का निरीक्षण करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए संबंधित जिला न्यायालय के प्रधान जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में समितियों के गठन का निर्देश दिया गया था। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य भर के विभिन्न सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में शौचालयों की खराब स्थिति दिखाने वाली जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों की रिपोर्ट पर जवाब दे।

Created On :   11 Oct 2023 8:08 PM IST

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