बॉम्बे हाईकोर्ट: जिला परिषद के प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त अंशकालिक प्रशिक्षिकों को बड़ी राहत

जिला परिषद के प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त अंशकालिक प्रशिक्षिकों को बड़ी राहत
  • अदालत ने अंतिम आदेश तक अंशकालिक प्रशिक्षिकों 7 हजार वेतन प्रतिमाह जारी रखने का निर्देश
  • 2 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट से राज्य के जिला परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त 1349 अंशकालिक प्रशिक्षिकों को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने कहा कि अंशकालिक प्रशिक्षकों को 7 हजार रुपए प्रति माह की दर से भुगतान अगले आदेश तक अप्रैल और मई महीने के लिए भी जारी रहेगा। अंशकालिक प्रशिक्षकों के लिए राशि पूर्णकालिक शिक्षक को भुगतान की जाने वाली राशि का कम से कम 50 फीसदी होनी चाहिए। पूर्णकालिक शिक्षकों का वेतन 50 हजार रुपए है। अदालत के आदेश पर 4 सप्ताह के भीतर कार्रवाई करने को को कहा गया है। 2 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एम.एम.सथाये की खंडपीठ के समक्ष गायत्री सुभाष मुले और शरद विनायक चव्हाण की ओर से वरिष्ठ वकील एस.बी.तालेकर और वकील माधवी अय्यप्पन की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की सेवाएं यथास्थिति के आदेश की स्थिति को बहाल किया जाए। याचिकाकर्ताओं की उसी स्कूल में नियुक्ति जारी रखी जाए, जहां उन्हें शुरू में यह जांच के बाद नियुक्त किया गया था कि छात्रों की संख्या 100 से ऊपर है। याचिकाकर्ताओं की सेवाएं जारी रखी जाएंगी और उन्हें अगले आदेशों के अधीन प्रति माह 7 हजार रुपए का भुगतान किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील वरिष्ठ वकील एस.बी.तलेकर दलील दी कि राज्य के विभिन्न जिला परिषदों द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में कला शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा और कार्य शिक्षा पढ़ाने वाले 1349 अंशकालिक प्रशिक्षकों की दुर्दशा की एक खेदजनक स्थिति सामने आती है। राज्य सरकार की 1 सितंबर 2017 को जारी सरकारी पॉलिसी (नीति) को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत अदालत के फैसले के विपरीत है। उन्हें 2009 के अधिनियम की धारा 19 और 23 की अनुसूची (प्रथम) के अनुसार अंशकालिक प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। इस अधिनियम लागू होने के बावजूद प्रशिक्षकों के पास कार्यकाल की कोई सुरक्षा नहीं है।

याचिका में दावा किया गया है कि हाई कोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने औरंगाबाद, बीड, हिंगोली और अन्य जिला परिषदों द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त अंशकालिक प्रशिक्षकों द्वारा दायर याचिकाओं पर भी फैसला सुनाया था, जिस पर अमल नहीं किया जा रहा है। 1 अप्रैल 2010 को आरटीई अधिनियम 2009 लागू हुआ था। राज्य सरकार ने तीन साल के भीतर अंतिम नीति दस्तावेज तैयार नहीं किया, जैसा कि आरटीई अधिनियम के तहत विचार किया गया था। राज्य सरकार को अपने संवैधानिक और वैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए दीर्घकालिक उपायों के रूप में स्थायी बुनियादी ढांचे और स्थायी आधार पर नियुक्तियों पर अपनी नीति बनानी होगी।

Created On :   12 May 2024 9:14 PM IST

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