यूपी चुनाव 2022 - बसपा ने आनन फानन में बदला ब्राह्मण सम्मेलन का नाम, किसके डर से किया बदलाव?
- कोर वोट बैंक के छिटकने का डर?
- सम्मेलन की पहचान बदलने पर क्यों मजबूर मायावती?
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बनाने की कोशिश में हैं। और वह अपने पुराने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर भरोसा कर रही हैं। मायावती ने सूबे में सरकार बनाने के लिए दोबारा ब्राह्मण कार्ड खेला है, और इसके लिए उत्तर प्रदेश के हर जिले में ब्राह्मण सम्मेलन होंगे। लेकिन अब खबर यह है कि मायावती ने अपने सम्मेलन का नाम बदलकर "प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी" कर दिया है।
नाम बदला पर सियासत वही
बसपा अयोध्या से 23 जुलाई को "प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी" के बैनर तले ब्राह्मणों को साधने का आगाज करेगी। इसी के साथ बसपा का अपना चुनावी दौरा शुरू होगा। बसपा ने ब्राह्मणों को साधने के लिए बहुजन समाज पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा को चुना है। सतीश चंद्र मिश्रा बसपा के बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं। बसपा यहां पर कई कार्यक्रमों को करने वाली है जिसमें सतीश चंद्र मिश्रा शामिल होंगे। सतीश चंद्र मिश्रा सबसे पहले हनुमान गढ़ी जायेंगे। हनुमान बाबा के दर्शन करने के बाद राम लला के दरबार में जाकर पूजा अर्चना करेंगे। इसके बाद सतीश चंद्र मिश्रा सरयू तट पर मंत्रोच्चार के साथ दुग्धाभिषेक करेंगे। वह मां सरयू की आरती में भी हिस्सा लेंगे। सूत्रों के हवाले से खबर है कि वह साधु संतो के साथ भी चर्चा करेंगे। साफ है प्रबुद्ध वर्ग नाम देकर भी मायावती का फोकस ब्राह्मणों पर ही होगा।
पहले चरण में 6 जिले
सतीश चंद्र मिश्रा अयोध्या के बाद अंबेडकर नगर जायेंगे, यहां पर कार्यक्रम 24 और 25 जुलाई को होंगे। इसके बाद बसपा का अगला टारगेट 26 जुलाई को प्रयागराज और 27 को कौशाम्बी होगा। 28 जुलाई और 29 जुलाई को प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर में सम्मेलन होगा। बसपा ने अपने पहले चरण में उन जिलों को चुना है, जिन जिलों में ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा है। मायावती सिर्फ ब्राह्मणों पर दांव खेलकर अपने कोर वोटबैंक ( दलित वोटर्स ) को नाराज नहीं कर सकती हैं। गौरतलब है इसीलिए उन्होंने ब्राह्मण सम्मेलन का नाम बदलकर "प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी" कर दिया।
बसपा की तैयारी भाजपा और सपा को चोट देने की
उत्तर प्रदेश की सियासत में मायावती की राजनीति 2012 के बाद से चुनाव दर चुनाव फिसलती जा रही है। 2012 में हारने का मुख्य कारण मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पर सपा की चोट थी। 2012 बसपा का ब्राह्मण वोटर सपा की झोली में चला गया था। राजनीतिक यात्रा का सबसे खराब प्रदर्शन मायावती के नेतृत्व में 2017 के विधानसभा चुनाव में हुआ था, इस चुनाव में 70 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर्स ने भाजपा का साथ दिया था । 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा की 10 सीटें आई थी और वह दूसरे नंबर पर रही थी। 2022 के चुनाव के लिए उनकी नजर ब्राह्मण वोटर्स पर है। और इसके लिए मायावती ने अब सतीश चंद्र मिश्रा को लगाया है।
Created On :   23 July 2021 2:24 PM IST