खतरे में एकनाथ शिंदे की कुर्सी! कानूनी दांव-पेच में बढ सकती है शिंदे गुट की परेशानी

Eknath Shindes chair in danger! Shinde factions problems may increase due to law and order
खतरे में एकनाथ शिंदे की कुर्सी! कानूनी दांव-पेच में बढ सकती है शिंदे गुट की परेशानी
महाराष्ट्र सियासत खतरे में एकनाथ शिंदे की कुर्सी! कानूनी दांव-पेच में बढ सकती है शिंदे गुट की परेशानी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सांसदी जाने और मानहानि से जुड़े मामले पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी खूब हमलावर हैं। बीते दिन राहुल गांधी ने बीजेपी के प्रिय पात्र रहे सावरकर का नाम लेकर टिप्पणी की थी। जिसके बाद एकनाथ शिंदे ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें एक और मानहानि का मुकदमा झेलना पड़ सकता है। महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे शिंदे भाजपा पर किसी हमले को खुद पर हुए हमले की तरह ले रहे हैं। 

दरअसल, शिंदे भी कानूनी दांव-पेंच में पड़ने वाली मार से घबराए हुए हैं। शिंदे को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं शिंदे बनाम उद्धव गुट की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी न छीन ले। यदि ऐसा हुआ तो उनका सियासी भविष्य खतरे में पड़ सकता है। क्योंकि अंदरखाने में इस बात की चर्चा जोरों शोरों से चल रही है कि उद्धव ठाकरे और बीजेपी फिर से एक राह पर चल सकते हैं। वहीं शिवसेना के एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के गुटों के बीच चल रहे झगड़े की बात करें तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली संविधान खंडपीठ झगड़े से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

खतरे में शिंदे गुट की कुर्सी

इसी के साथ महाराष्ट्र में सियासी अटकलों का भी दौर जारी है कि क्या एकनाथ शिंदे आगे भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहेंगे? क्या राज्य में एक बार उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने वाले हैं? क्या शिंदे गुट के विधायक अयोग्यता का सामना करेंगे? क्या महाराष्ट्र में सदन को भंग कर दिया जाएगा और जल्द ही वहां पर चुनाव कराए जाएंगे? या मौजूदा स्थिति बनी रहेगी। हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट किसी भी मुख्यमंत्री को अपने फैसले के जरिए हटा सकता है? एनडीटीवी पर लिखे एक कॉलम में राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी ने लिखा है कि आखिरी सवाल का उत्तर हां है। पहले भी सत्तासीन मुख्यमंत्री को पद से हटाया गया है। 

पहले के मामले को समझें

साल 2016 का ही उदाहरण ले लिजिए, जब सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री कलिखो पुल को पद से हटा दिया था। इस दौरान वह मात्र 145 दिन ही मुख्यमंत्री रहे थे। पुल को पद से हटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति बहाल कर दी थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने उनके सभी निर्णयों को अमान्य करार दिया था। महाराष्ट्र का भी मामला काफी जटिल है। जिसने दलबदल से संबिधित संविधान की दसवीं अनुसूची को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। हालांकि, इस मामले में शिंदे गुट के विधायकों ने दलबदल या किसी दूसरे दल में विलय नहीं  किया और असली शिवसेना होने का दावा किया। 

जानें पूरा मामला

गौरतलब है कि, एकनाथ शिंदे ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की मदद से (जैसा उद्धव गुट के द्वारा आरोप लगाया गया है) विश्वास मत के दौरान भाजपा के साथ मिलकर बहुमत हासिल की। जिसके बाद उन्होंने अपना स्पीकर नियुक्त कर दिया। बता दें कि, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने दोनों गुटों और राज्यपाल द्वारा रखी गई प्रमुख दलीलों पर सवाल खड़े किए हैं। खबर है कि, अदालत के खंडपीठ का फैसला इन्हीं दोनों बिंदुओं पर टिका हो सकता है।  हालांकि, CJI ने उद्धव ठाकरे के सामने यह सवाल किया है कि आपने विश्वास मत परीक्षण से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा क्यों सौंप दिया? अदालत की नजर में उद्धव ठाकरे का यह कदम बहुत बड़ा पॉलिटिकल ब्लंडर है। 


 

Created On :   26 March 2023 7:23 PM IST

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