राम मंदिर आंदोलन: वो सरकारी नौकर जिसने नेहरू और पंत को अनसुना किया, पद से हटाए गए लेकिन राम लला को नहीं हटाया, नायर साहब के नाम से बनी पहचान

वो सरकारी नौकर जिसने नेहरू और पंत को अनसुना किया, पद से हटाए गए लेकिन राम लला को नहीं हटाया, नायर साहब के नाम से बनी पहचान
  • 22 जनवरी को रामलला के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा
  • राम मंदिर को लेकर राममय हुआ देश का माहौल
  • यूपी में राम मंदिर बनने की उत्साह लोगों के चेहरे पर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में 22 दिसंबर 1949 की रात काफी अहम थी। कहते हैं इस रात बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुम्बज में रामलला की मूर्ति का प्राकट्य हुआ, जहां अब 22 जनवरी को रामलला के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस घटना के बाद ही अदालत में दोनों पक्ष ने मुकदमा दायर किया था। बढ़ते विवाद के चलते सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया। लंबे मुकदमे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर 2010 को इस केस पर फैसला सुनाया। दोनों पक्ष के बीच जो कानूनी लड़ाई की शुरूआत हुई उसमें तत्कालीन मजिस्ट्रेट के के नायर की प्रमुख भूमिका थी।

दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने विवाद के कारण को ही समाप्त करने का आदेश दे दिया थे। जिसे मानने से के के नायर ने साफ मना कर दिया। ऊपर से ऑर्डर आया कि रामलला की मूर्ति को विवादित ढांचे के केंद्रीय स्थान से हटा दिया जाए। रामलला की मूर्ति के प्राकट्य की खबर फैलने के बाद वहां भारी संख्या में साधु-संत और आम हिन्दू लोगों का जमावड़ा हो गया था। मूर्ति के प्राकट्य की जानकारी फैलते ही राम भक्तों में उमंग की लहर दौर गई और सभी परिसर में जमा हो गए। कई साधु-संतों ने अखंड कीर्तन की भी शुरूआत कर दी। के के नायर ने हालात बिगड़ने और हिंसा की संभावना का हवाला देते हुए मूर्ति हटाने से इंकार कर दिया। अगर उसी वक्त रामलला की मूर्ति विवादित ढांचे के केंद्रीय स्थान से हट जाती तो शायद आज राम मंदिर का सपना साकार नहीं होता। इस लिहाज से राम मंदिर के निर्माण में के के नायर की अहम भूमिका रही। संकल्प बुकलेट में आंदोलन के प्रमुख चेहरों की लिस्ट में के के नायर का नाम भी शामिल है।

नेहरू के आदेश को दो बार नकारा

22 दिसंबर 1949 की रात रामलला के प्राकट्य के बाद मुस्लिम समाज के लोगों ने मस्जिद में मूर्ति रखने का विरोध किया। वहीं मूर्ति प्राकट्य की खबर फैलते ही रामभक्तों का जमावड़ा लग गया। रामभावना प्रबल हो गई और भारतीय जनता पार्टी इस पूरी घटना में रामभक्तों के समर्थन में खड़ी थी। जनता का झुकाव भाजपा की ओर था और मामला अगर बड़ा होता तो पार्टी को बड़ा जनाधार मिलता। इसे रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को यथास्थिति बहाल करने का निर्देश दिया।

जवाहर लाल नेहरू ने यथास्थिति बनाने के लिए के के नायर को एक पत्र लिखा था। स्थिति बिगड़ने और हिंसा भड़काने का हवाला देते हुए जवाबी पत्र में नायर ने रामलला की मूर्ति हटाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद नेहरू ने जवाबी पत्र में एक बार फिर से यथास्थिति बनाने का निर्देश दिया। के के नायर एक बार फिर मूर्ति हटाने के निर्देश की अनदेखी कर अपने फैसले पर डटे रहे। उनके इस रवैये से नाराज होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने पद से निलंबित कर दिया। इससे पहले भी नायर ने 1 जून 1949 को राम जन्मभूमि विवाद से संबंधित एक रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी। जिसमें उन्होंने राम मंदिर के लिए भूमि देने की बात कही थी।

सरकार के खिलाफ कोर्ट में जीत

पद से निलंबित किए जाने के बाद के के नायर ने अदालत का रूख किया। उन्होंने सरकार के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया। जिसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई। कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए निलंबन को खारिज कर दिया और नायर को उनका पद फिर से मिल गया। हालांकि, उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया, नेहरू और पंत से नाराजगी को इस फैसले का कारण माना जाता है। नेहरू और पंत के खिलाफ जाना आम लोगों की नजर में बड़ी बात थी। इस वजह से लोगों ने उनकी हिम्मत से प्रभावित होकर उन्हें 'नायर साहब' कहना शुरू कर दिया।

चुनाव में उतरे, हासिल हुई जीत

पद से इस्तीफा देने के बाद के के नायर राजनीतिक मैदान में उतर गए। राम मंदिर के निर्माण के लिए वह परिवार सहित जनसंघ में शामिल हो गए। 1952 में उन्होंने अपनी पत्नी शकुंतला नायर को चुनावी मैदान में उतारा जहां पत्नी ने जीत हासिल की। साल 1962 के विधानसभा चुनाव में नायर ने तत्कालीन महादेवा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1967 में पत्नी के साथ नायर लोकसभा चुनाव में उतरे जहां दोनों को बड़ी जीत हासिल हुई।

Created On :   8 Jan 2024 9:31 PM IST

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