आजादी की निशानी है नेहरू को मिला सेंगोल, नई संसद में स्थापित करेगी मोदी सरकार

आजादी की निशानी है नेहरू को मिला सेंगोल, नई संसद में स्थापित करेगी मोदी सरकार
  • देश में सत्ता हस्तांतरण का सबसे बड़ा प्रतीक
  • चोल साम्राज्य और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से है खास कनेक्शन
  • नए संसद भवन में आसंदी के पास होगा स्थापित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर देश में सियासी घमासान मचा हुआ है। विपक्ष के 19 दलों ने यह कहते हुए उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया है कि नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के हाथों कराया जाना चाहिए न कि पीएम नरेंद्र मोदी के। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया है कि 28 मई को पीएम मोदी नई संसद का उद्घाटन करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नई इमारत में स्पीकर के पास 'सेंगोल' को रखा जाएगा।

अमित शाह ने बताया है कि 'देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल को स्वीकार किया था। इसका हमारे इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। बता दें कि यह 'सेंगोल' अभी प्रयागराज के संग्रहालय में रखा हुआ है। शाह ने कहा, सेंगोल को संग्रहालय में रखना ठीक नहीं है। अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा। उन्होंने कहा, सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से आए हुए अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे

देश के अधिकांश नागरिकों को नहीं है जानकारी

शाह ने बताया कि, 'संसद की नई इमारत के उद्घाटन के मौके पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। इसके पीछे युगों पुरानी एक परंपरा है। इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है। 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है। सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। जब इसके बारे में पीएम मोदी को पता चला तो उन्होंने इसकी गहन जांच करवाई और निर्णय लिया कि इस अमूल्य संपदा को देश के सामने लाना चाहिए।'

क्या है सेंगोल?

दरअसल सेंगोल एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ है 'धन से भरा हुआ।' इतिहासकारों के मुताबिक इसका संबंध 9वीं से 13 तक दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में शुमार रहे चोल राजवंश से था। जब चोल राजवंश में जब एक राजा अपने उत्तराधिकारी को सत्ता सौंपता था तब सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता था। वहीं 14 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तब भी स्वतंत्रता व सत्ता हस्तांतरण के रूप में ब्रिटेन की तरफ से देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू को यही सेंगोल सौंपा गया था।

कैसे बना आजादी का प्रतीक?

सेंगोल को हिंदी में 'राजदंड' कहा जाता है। दक्षिण भारत जहां चोलवंश का साम्राज्य था वहां इसे न्यायप्रिय और निष्पक्ष शासन का प्रतीक माना जाता है। जब अगस्त 1947 में भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने जा रही थी तब भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन भारत को सत्ता सौंपने की तैयारी कर रहे थे। कागजी तौर पर तो यह काम पूरा हो गया था लेकिन माउंटबेटन के मन में यह सवाल था कि आखिर भारत को आजादी और सत्ता हस्तांतरित करने का प्रतीक क्या होगा?

सी राजगोपालाचार्य ने सुझाया नाम

जब माउंटबेटन ने यह बात नेहरू से साझा की तो उन्होंने इसके लिए देश पहले भारतीय गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचार्य से सहायता ली। तमिलनाडू से आने वाले राजगोपालाचार्य ने बहुत विचार करके सेंगोल का नाम नेहरू को सुझाया। उनका यह सुझाव नेहरू को काफी पसंद आया। इसके बाद नेहरू ने इसको बनवाने की जिम्मेदारी राजगोपालाचार्य को ही सौंपी। इसके लिए राजगोपालाचार्य ने सबसे पहले तमिलनाडु के सबसे पुराने मठ थिरुवदुथुराई से संपर्क किया। उन्होंने सेंगोल को बनवाने के लिए मठ के 20वें गुरुमहा सन्निथानम से विनती की। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। सन्निथानम ने अपनी निगरानी में एक जौहरी से सेंगोल को बनाने के लिए कहा। इस तरह सोने का सेंगोल तैयार कराया गया। इस सेंगोल के शीर्ष पर नंदी को विराजमान किया गया।

सेंगोल को बनाने के बाद इसे लॉर्ड माउंटबेटन तक पहुंचाने के लिए मठ की ओर से ही एक दल को विशेष विमान से नई दिल्ली भेजा गया। 14 अगस्त की देर रात सेंगोल माउंटबेटन को सौंपा गया, जिसके बाद माउंटबेटन ने इसे तामिलनाडू से आए संत श्रीकुमार स्वामी थम्बिरन को सौंपा।

संत श्रीकुमार स्वामी थम्बिरन ने इस सेंगोल को तमिल परंपरा के मुताबिक पहले जल से स्वच्छ किया फिर परंपरागत थेवरम के भजन गाए गए। इसके बाद थम्बिरन ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसे सौंपा। इस तरह यह सेंगोल देश में सत्ता हस्तांतरण का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक प्रतीक बन गया।


Created On :   24 May 2023 3:17 PM IST

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