जब हिटलर से मिलने जर्मनी पहुंचे थे सुभाष चंद्र बोस
- आजादी की लड़ाई में बोस ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से भी मदद मांगी थी।
- इस साल सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती मनाई जाएगी।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी
- 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। इस साल उनकी 122वीं जयंती मनाई जाएगी। आजादी की लड़ाई में वह इतना मशगूल थे कि उन्होंने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से भी मदद मांगी थी। 1941 में वर्ल्ड वॉर छिड़ चुकी थी। जर्मनी, ब्रिटेन के खिलाफ जंग में था। इसी दौरान नेताजी ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ रहे भारतीय क्रांतिकारियों की मदद के लिए हिटलर से मदद मांगी थी। हिटलर से मिलने को लेकर कई कहानियां मशहूर हैं। दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान अमेरिका, ब्रिटिश, फ्रांस, चीन आदि एकतरफ थे। वहीं दूसरी तरफ जर्मनी, इटली, जापान आदि जैसे देश थे। सुभाष चंद्र बोस ने उस वक्त "मेरे दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त" वाले सिंपल रूल को फॉलो किया। नेताजी और हिटलर दोनों की विचारधारा भले ही कई मायनों में अलग-अलग हों, लेकिन बोस ने उस वक्त हिटलर का समर्थन लेने का फैसला किया।
हिटलर को भारतीयों और अफ्रीकियों से थी नफरत
हिटलर ने उस दौरान एक किताब में भारतीयों को यहूदियों और अफ्रीकियों से तूलना की थी। उन्होंने तीनों को एकसमान माना था और वह इन तीनों से सबसे ज्यादा नफरत करते थे। हिटलर ने उस दौरान यह भी कहा था कि भारत किसी भी अन्य देश के नियंत्रण में होने से बेहतर है कि ब्रिटिश शासन में है। उन्होंने 1933 में जब सुभाष चंद्र बोस जर्मनी में थे, उनसे मिलने से भी इनकार कर दिया था। हालांकि 1940 की शुरुआत में स्थिति बदल चुकी थी। जर्मनी वर्ल्ड वॉर जीतने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ब्रिटिशर्स को हराना चाहते थे। हिटलर जानता था कि यदि वॉर के दौरान भारतीय ब्रिटिश का समर्थन करते हैं, तो उससे ब्रिटिश सेना को मजबूत मिल जाएगी और इससे जर्मनी के जीतने की संभावना कम हो जाएगी। इसलिए उन्होंने 1940 की शुरुआत में बोस से मिलना की इच्छा जताई थी।
हिटलर ने चली थी चाल, बोस ने एक झटके में पहचाना
उस दौर में सारा देश हिटलर के आंतक से डरता था। अंतत: 1942 में बोस हिटलर से पहली बार उनके आवास पर मिलने पहुंचे। इस दौरान एक बहुत ही मनोरंजक घटना घटी। उस दौरान हिटलर ने नेताजी को एक कमरे में बैठाया था। उस वक्त हिटलर ने अपने कुछ अंगरक्षक रखे हुए थे, जो कि ठीक हिटलर की तरह ही दिखते थे और उनको पहचानना बहुत कठिन था। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति हिटलर की तरह वेश भूषा में उनके सामने आया और हाथ बढ़ाते हुए कहा मैं हिटलर हूं। बोस ने भी हाथ बढ़ाया और कहा मैं सुभाष भारत से... मगर आप हिटलर नहीं हैं। इसके बाद वह व्यक्ति चला गया। इसके बाद एक दूसरा व्यक्ति आया। यह व्यक्ति बहुत ही कठोर स्वभाव का था। उसने भी नेताजी के सामने हाथ बढाया और कहा मैं हिटलर। नेताजी ने फिर हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा मैं सुभाष भारत से...मगर आप हिटलर नहीं हो सकते। मैं यहां केवल हिटलर से मिलने आया हूं।
तीसरी बार फिर एक व्यक्ति ठीक उसी तरह की वेशभूषा में आया और नेताजी के सामने आकर खड़ा हो गया। कुछ देर तक चुप रहने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने कहा मैं सुभाष हूं। भारत से आया हूं, लेकिन आप हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें, क्योंकि मैं मित्रता के बीच में किसी भी तरह का दीवार नहीं चाहता। हिटलर बहुत कठोर व्यक्तित्व के माने जाते थे। उसके सामने इतनी हिम्मत से बोलने वाले बहुत कम लोग होते थे। नेताजी की हिम्मत भरी बात सुनकर हिटलर ने दस्ताने उतार दिए और हाथ मिलाया। जब हिटलर ने बोस से पूछा कि उन्होंने हिटलर को कैसे पहचाना। इसपर बोस ने कहा कि पहले दो व्यक्तियों ने पहले ही हाथ बढ़ा दिया। जबकि जो व्यक्ति मिलने आता है, वह पहले हाथ बढ़ाता है। बोस के इस बात से हिटलर हैरान रह गए थे।
बोस ने ताल ठोक कर रखी अपनी मांग
इसके बाद बोस ने हिटलर से ब्रिटिशर्स के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीयों के साथ गठबंधन बनाने पर चर्चा की थी। हालांकि बोस यह जानते थे कि हिटलर सिर्फ भारत को आजाद करने के लिए कोई सैन्य सहायता नहीं देगा। इसके साथ ही बोस ने नॉर्थ अफ्रीका में गिरफ्तार किए गए भारतीय कैदियों की रिहाई की भी मांग की थी। पहले तो हिटलर इस बात से सहमत नहीं थे, लेकिन बोस के बहुत प्रयासों के बाद वह कैदियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद बोस ने ब्रिटिश शासन से लड़ने और भारत को आजाद कराने के लिए जर्मनी में 1000 से अधिक लोगों की एक सेना तैयार की थी। इसे इंडियन लीजन और आजाद हिंद फौज और टाइगर लीजन नाम दिया गया था। इस सेना को बाद में इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल कर लिया गया था।
हिटलर ने बोस से मांगी थी माफी
इतना ही नहीं हिटलर ने भारतीयों के लिए जो बातें किताब में लिखी थीं। नेताजी ने जब हिटलर को उन बातों की याद दिलाई और नाराजगी जताई, तो हिटलर ने उनसे माफी भी मांगी थी। इसके साथ ही हिटलर ने बोस से विवादित बातें हटाने का वादा भी किया था। इसके बाद नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ पहले जापान और इसके बाद सिंगापुर पहुंचे। सिंगापुर में उन्होंने आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथ में ले ली। इसके बाद वह फौज के साथ बर्मा पहुंचे। बर्मा में ही बोस ने "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" वाला नारा दिया था। ऐसा कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को जापान जाते वक्त ताइवान के पास नेताजी का दुर्घटना में निधन हो गया था। हालांकि उनका शव आजतक किसी को नहीं मिल पाया है। इतना ही नहीं नेताजी की मौत पर आज भी विवाद बना हुआ है।
Created On :   21 Jan 2019 11:31 PM IST