सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से पूछा- राज्य सांस्कृतिक अधिकारों की अपनी धारणा के आधार पर जल्लीकट्टू की अनुमति दे सकता है?
- आयोजन से पहले हर दिन बैल को खिलाया जाता है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सांडों को वश में करने वाले खेल जल्लीकट्टू की अनुमति देने वाले राज्य के कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार से पूछा कि क्या किसी जानवर का इस्तेमाल इंसानों के मनोरंजन के लिए किया जा सकता है। तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि जो व्यक्ति अपने बैल का प्रदर्शन करता है वह जानवर का बहुत ख्याल रखता है, और जल्लीकट्टू मनोरंजन नहीं है। इसके अलावा, जनवरी में होने वाले आयोजन से पहले हर दिन बैल को खिलाया जाता है, उन्होंने तर्क दिया।
बेंच में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार ने कहा, क्या जल्लीकट्टू जैसे खेल में जानवरों को इंसानों के मनोरंजन के लिए प्रताड़ित किया जा सकता है और क्या कोई राज्य सांस्कृतिक अधिकारों की अपनी धारणा के आधार पर इसकी अनुमति दे सकता है? सिब्बल ने तर्क दिया कि अदालत को इसे मनोरंजन के रूप में देखने के बजाय ऐतिहासिक ²ष्टिकोण से देखना चाहिए।
इस पर पीठ ने सवाल किया कि अगर यह मनोरंजन नहीं है तो लोग इसे देखने के लिए क्यों इकट्ठा होते हैं। सिब्बल ने जवाब दिया कि यह बैल की ताकत और जानवर की ताकत का प्रदर्शन करना है। पीठ ने यह भी पूछा कि देसी नस्ल के संरक्षण के लिए जल्लीकट्टू कैसे जरूरी है? इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने तर्क दिया कि प्रत्येक जानवर सम्मान का हकदार है।
सिब्बल ने पूछा कि किस मायने में, तो पीठ ने जवाब दिया, जब तक आप जीवित हैं, इस संसार में आप जिस भी रूप में जीवित हैं, आप गरिमापूर्ण व्यवहार के अधिकारी हैं। पीठ ने इस बात का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड साक्ष्य लाने के लिए भी कहा कि यह एक सांस्कृतिक प्रथा है। पीठ ने बताया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया था कि जब कानून जानवरों के प्रति क्रूरता पर रोक लगाता है, तो कोई संशोधन अधिनियम नहीं हो सकता है, जो क्रूरता को बनाए रखता है।
सिब्बल ने कहा कि ऐसे कई खेल हैं जिनमें एक व्यक्ति घायल हो जाता है या मारा भी जाता है। तमिलनाडु सरकार ने एक लिखित जवाब में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का कार्य नहीं है, बल्कि महान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य वाला कार्यक्रम है। 2014 में, शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि जल्लीकट्टू आयोजनों या बैलगाड़ी दौड़ के लिए बैलों को प्रदर्शन करने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जल्लीकट्टू को अनुमति देने के लिए केंद्रीय कानून, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 को तमिलनाडु द्वारा संशोधित किया गया था। दिन भर की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई छह दिसंबर को निर्धारित की है।
(आईएएनएस)
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Created On :   1 Dec 2022 5:30 PM GMT