पश्चिम बंगाल में विपक्षियों ने कहा: हिंदी की कौन सी बोली बनेगी अंग्रेजी का विकल्प
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- हिंदी को भाषायी विविधता वाले देश में थोपना बकवास
डिजिटल डेस्क, कोलकाता। हिंदी को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने हिंदी विरोधी राजनीतिक दलों में खलबली मचा दी है और आपसी विरोध को भुलाकर पश्चिम बंगाल की सभी पार्टियां इस बात पर एकमत हैं कि अंग्रेजी का विकल्प हिंदी हो ही नहीं सकती है। पश्चिम बंगाल के विपक्षी पार्टियों ने हिंदी भाषा की विविधता को कटघरे में खड़ा करते हुये पूछा कि आखिर केंद्रीय गृह मंत्री हिंदी की किस बोली को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में पेश करेंगे। उनका कहना है कि एक ही राज्य में हिंदी की एक से अधिक बोलियां या उपभाषायें होती हैं और प्रत्येक राज्य में इसकी बोली अलग है, ऐसी स्थिति में इसे अंग्रेजी के विकल्प के तौर पर कैसे पेश किया जा सकता है।
विपक्षी दल इसे भाजपा की साजिश भी करार दे रहे हैं कि वह मुख्य मुद्दों से लोगों को भटकाने के लिये हिंदी को लेकर विवादित बयान दे रही है। इसी मसले पर आईएएनएस ने विभिन्न राजनीतिक दलों से बात की, जिसके मुख्य अंश निम्नलिखित हैं।
आईएएनएस ने तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सदस्य सुष्मिता देव से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, यह बहुत ही वाहियात प्रस्ताव है। हिंदी को थोपने की कोशिश से अन्य क्षेत्रीय भाषा बोलने वालों के बीच दरार आयेगी। हर व्यक्ति अपनी मातृभाषा बोलने में गर्व महसूस करता है और इसमें कोई परेशानी नहीं है कि कोई व्यक्ति अपने मन से हिंदी सीखे। लेकिन हिंदी को भाषायी विविधता वाले देश में थोपना बकवास है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री को यह भी स्पष्ट करना चाहिये कि वह हिंदी की किस बोली को अंग्रेजी के विकल्प के तौर पर बढ़ावा देना चाहते हैं। तूणमूल कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर स्पष्ट राय रखती है कि हिंदी को थोपने की कोशिश का हर कीमत पर विरोध किया जायेगा।
पश्चिम बंगाल की सत्तारुढ़ पार्टी के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने आरोप लगाया कि यह भाजपा और आरएसएस का पुराना एजेंडा है। एक राष्ट्र-एक भाषा-एक धर्म या हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान के एजेंडे को पूरा करने के लिये हिंदी को थोपने की कोशिश की जा रही है। इससे देश में तनाव उत्पन्न होगा क्योंकि गैर हिंदी भाषी लोग इसका विरोध करेंगे ही। यह पूरी तरह असंवैधानिक और महंगाई तथा बेरोजगारी बढ़ने जैसे ज्वलंत मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने की साजिश है। तृणमूल कांग्रेस इसका हर हाल में विरोध करेगी।
कांग्रेस नेता शुभांकर सरकार भी इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की भाषा ही बोलते नजर आये। उन्होंने कहा कि अमित शाह दावा करते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में करीब 70 प्रतिशत आधिकारिक दस्तावेज हिंदी भाषा में तैयार होते हैं लेकिन सिर्फ इसी आधार पर हिंदी को थोपने की कोशिश नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश की 47 प्रतिशत आबादी हिंदी की विभिन्न बोलियां बोलती है जबकि 53 प्रतिशत आबादी अन्य भारतीय भाषायें बोलते हैं तो ऐसे में 47 प्रतिशत की भाषा को 53 प्रतिशत आबादी पर कैसे थोपा जा सकता है।
कांग्रेस नेता ने भी यही सवाल उठाये कि शाह किस बोली को अंग्रेजी का विकल्प बनायेंगे। उन्होंने इस बातचीत में कश्मीर फाइल्स फिल्म का जिक्र करते हुये कहा कि यह केंद्र सरकार का तरीका है ज्वलंत मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने का। इसी तर्ज पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती ने भी इस मुद्दे को भाजपा और संघ का पुराना एजेंडा कहा। माकपा नेता ने कहा कि यह अनेकता में एकता के सिद्धांत के खिलाफ है और इससे हिंदीभाषी तथा गैर हिंदीभाषी के बीच दरार आना तय है। यह लोगों को रोज की समस्याओं से भटकाने का तरीका है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने बंगाली भाषा के प्रति बंगाली लोगों की संवेदना को देखते हुये इस मसले पर बहुत बचकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस, माकपा और तूणमूल कांग्रेस की आदत बन गयी है कि वह केंद्र सरकार के हर प्रस्ताव और पहल का राजनीतिकरण करे। गृह मंत्री ने कुछ वास्तविकताओं के आधार पर ही यह प्रस्ताव पेश किया है। सभी विपक्षी पार्टियों से आग्रह है कि वे किसी भी मुद्दे का राजनीतिकरण करने से पहले देश की वास्तविकता के बारे में जागरूक हों।
(आईएएनएस)
Created On :   16 April 2022 2:31 PM IST