आंध्र : विधानसभा में 1 भी सीट जीते बगैर मुख्य विपक्ष बनने के फिराक में भाजपा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दक्षिण भारत में विस्तार की कोशिशों में जुटी भाजपा को फिलहाल आंध्र प्रदेश में ही सबसे उर्वर सियासी जमीन दिख रही है। भाजपा यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार से हताश तेलुगू देशम पार्टी(तेदेपा) के नेताओं को तोड़कर उसे और कमजोर करने में जुटी हुई है। इस मिशन में पार्टी के राज्यसभा सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव, राज्य के सह प्रभारी व राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर और एक अन्य राष्ट्रीय सचिव सत्या कुमार लगे हुए हैं। इनकी कोशिशों से अब तक आंध्र प्रदेश में अब तक 60 छोटे-बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
तेदेपा के छह में से चार राज्यसभा सांसदों को बीते जून में अपने पाने में लाने में सफल रही भाजपा ने सोमवार को नायडू सरकार में पूर्व मंत्री और तीन बार के विधायक आदिनारायण रेड्डी को भी तोड़ लिया। रेड्डी के भाजपा में शामिल होने के बाद अन्य नेताओं के भी दलबदल की अटकलें लगने लगीं हैं। तेदेपा के एक दर्जन विधायक पहले से भाजपा के संपर्क में हैं, मगर इन्हें भाजपा एक रणनीति के तहत अभी शामिल नहीं करना चाहती।
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सत्या कुमार ने आईएएनएस से इन विधायकों के पार्टी के संपर्क में होने की पुष्टि करते हुए कहा, राज्य में नायडू की पार्टी बिखर चुकी है। आने वाला वक्त अब भाजपा का है। यही वजह है कि राज्य में तेदेपा का हर नेता भाजपा में आना चाहता है। मगर भाजपा एक-एक करके किसी को नहीं शामिल करेगी।
दरअसल, किसी पार्टी के दो-तिहाई सांसद या विधायक एक साथ दूसरे दल में जाते हैं तो उन पर दलबदल विरोधी कानून नहीं लागू होता। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने दलबदल को तैयार तेदेपा के एक दर्जन विधायकों से साफ कह दिया है कि वह फुटकर में उन्हें शामिल नहीं करेगी। अगर तेदेपा के एक साथ 16 विधायक आने को तैयार हों तो पार्टी जरूर विचार कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि 16 विधायकों के एक साथ आने से उनकी सदस्यता पर किसी तरह का खतरा नहीं होगा और वे भाजपा के विधायक बन जाएंगे। जून में भी भाजपा ने इसी रणनीति के तहत तेदेपा के छह में से चार राज्यसभा सांसदों के आने पर ही उन्हें पार्टी में शामिल किया था। दो-तिहाई संख्या होने के कारण उन पर दलबदल विरोधी कानून नहीं लागू हुआ था।
सूत्र बताते हैं कि यदि तेदेपा के 16 विधायकों को एक साथ तोड़ने में भाजपा सफल हुई तो वह विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने के बावजूद सीधे मुख्य विपक्षी दल बन जाएगी।
इस साल लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने 175 सदस्यीय विधानसभा में 151 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि 2014 में 103 सीटें जीतने वाली चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा को सिर्फ 23 सीटों से ही संतोष कर दूसरे स्थान पर रहना पड़ा था। पिछली बार चार सीटें जीतने वाली भाजपा का इस बार खाता भी नहीं खुला था।
Created On :   22 Oct 2019 4:00 PM IST