Panna news: आदिवासी गरीब महिलाओं के साथ शहर में लकड़ी बेंचने आ रहे है मासूम बच्चे

आदिवासी गरीब महिलाओं के साथ शहर में लकड़ी बेंचने आ रहे है मासूम बच्चे
  • आदिवासी गरीब महिलाओं के साथ शहर में लकड़ी बेंचने आ रहे है मासूम बच्चे
  • स्कूल की शिक्षा से हो रहे है दूर
  • सर्व शिक्षा एवं शिक्षा विभाग के जिम्मेदार नहीं दे रहे है ध्यान

Panna news: पन्ना जिले में अनुसूचित जनजाति वर्ग की बडी आबादी गरीबी के बोझ से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। माता-पिता के गरीबी के बोझ से उनके बच्चों का भविष्य भी दफन हो रहा है। शासन-प्रशासन द्वारा आदिवासियों के प्रति अपने आपको शुभचिंतक बताते हुए समय-समय पर बडे आयोजन भी करते है किन्तु आदिवासी समाज गरीबी अशिक्षा और अज्ञानता के भंवर जाल से बाहर निकले इसको लेकर जमीनी धरातल पर जिम्मेदारों द्वारा जरूरी कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। पन्ना जिला मुख्यालय से सटे हुए गांवों की ही बात करें तो इन गांवो में बडी संख्या में अपनी अलग बसाहट में आदिवासी समाज के गरीब रहते है। जिनके पास न तो रहने के लिए ठीकठाक घर है मिट्टी से बने और पत्थर चीपों की छत की झोपडिय़ों में ज्यादतर आदिवासियों का जीवन कट रहा है। इनके बच्चों की हालत भी दयनीय रूप से देखी जा सकती है। पेट भरने के लिए ठीकठाक भोजन भी उपलब्ध नहीं होता।

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आदिवासी गरीब महिलाओं के ऊपर अपने घर के सदस्यों की भरण-पोषण की जिम्मेदारी है काम नहीं होने की वजह से जंगल से सटे गांवों की बसाहट में रहने वाली आदिवासी महिलायें प्रतिदिन शहर में लकडी का बोझा सिर में लादकर शहर में आकर बेचती है और उनसे जो दाम मिल जाता है उससे बच्चों का पेट भरती है। इस तरह से लकडिय़ां बेचकर गुजारा करने वाली गरीब आदिवासी महिलाओं के साथ ७-८ साल से लेेकर १५-१६ साल तक की बच्चे-बच्चियां भी लकड़ी के गठ्ठे का बोझ अपने सिर में रखकर अपने गांव से पन्ना शहर तक पहुंच रहे है। पन्ना के समीपी गांवों से अजयगढ मार्ग की ओर से देवेन्द्रनगर मार्ग की ओर से कुंजवन की ओर से छतरपुर मार्ग की ओर से इस तरह से सडक़ में कदम नापते हुए लकड़ी का बोझ लिए हुए बच्चों को प्रतिदिन देखा जा सकता है। जिस समय बच्चे सडक़ में लकड़ी के गटठे का बोझ सिर में रखकर शहर में लकड़ी बेचने के लिए आते हैं वह समय स्कूल जाने का होता है इससे साफतौर पर समझा जा सकता है कि इस तरह के बडी संख्या में आदिवासी बच्चे भले उनके नाम स्कूलों में दर्ज हो किन्तु वह स्कूली शिक्षा से दूर बने हुए है। स्कूली शिक्षा से दूर होने से गरीब आदिवासी बच्चों के जीवन में ज्ञान की ज्योति बुझी है और जीवन से शिक्षा रूपी ज्ञान की ज्योति दूर होने की वजह से बच्चो का वर्तमान ही बल्कि भविष्य खतरे में है।

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Created On :   13 Dec 2024 5:30 PM IST

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