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Panna News: पंचवटी धाम की पहाड़ी पर कड़ी मेहनत से उगाए सैकड़ों वृक्ष, रैपुरा के प्रेमनाथ चौरसिया पच्चीस सालों से लगातार कर रहे हैं वृक्षारोपण

- पंचवटी धाम की पहाड़ी पर कड़ी मेहनत से उगाए सैकड़ों वृक्ष
- रैपुरा के प्रेमनाथ चौरसिया पच्चीस सालों से लगातार कर रहे हैं वृक्षारोपण
Panna News: वर्षो पुराना सिद्ध क्षेत्र पंचवटी धाम रैपुरा से दो किलोमीटर दूर छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। यह छोटी सी पहाड़ी वर्षो से वीरान हो चुकी थी। इसके एक हिस्से को रैपुरा के प्रेमनाथ चौरसिया ने दोबारा हरा भरा बना दिया है। 65 वर्षीय प्रेमनाथ चौरसिया बताते हैं कि वह नवंबर 1999 से यहां स्थित हनुमान मंदिर आते थे तब उन्होंने यहां कम होते वृक्षों की संख्या पर ध्यान दिया। उन्होंने तब से यहां पौधों को रोपना शुरू किया। कहते हैं पिछले पच्चीस वर्षों में उन्होंने सैकड़ों पौधे रोपे। उनमें से 100 से अधिक पौधे अब वृक्ष बन चुके हैं। वृक्षों से आच्छदित यह क्षेत्र अब मनोहर हो चला है। इस वर्ष पहाड़ी पर महुआ के पौधे लगाए गए हैं। रामनाथ बताते हैं इस वर्ष पहाड़ी के ऊपर की तरफ कुछ पौधे रोपे थे उन्हें अभी बाल्टियों से पानी लाकर देते हैं।
500 मीटर दूर से प्रतिदिन पौधों में डालते हैं 50 बाल्टी पानी
प्रेमनाथ रैपुरा में छंगे के नाम से जाने जाते हैं। वह बताते हैं कि हर वर्ष बारिश में 30 से 40 पौधे रोपते हैं जो पौधे पत्थरों और पहाड़ी की पथरीली मिट्टी में संघर्ष कर बारिश के मौसम के बाद जीवित बचते हैं उन्हें पानी देने के लिए पास ही वन विभाग द्वारा निर्मित एक तालाब है जिससे बाल्टियों से पानी भरकर पानी देते हैं लेकिन यह छोटा सा पोखर मार्च के शुरूआती दिनों में ही सूख जाता है। जिसके बाद आधा किलोमीटर दूर जंगल में ही एक स्थान पर मिट्टी हटाकर थोड़ा-थोड़ा पानी दो बाल्टियों में भरकर स्वयं लाते हैं। ऐसा वह दिन में 25 बार करते हैं तब जाकर 50 बाल्टी पानी लाते हैं और प्रत्येक पौधे को एक-एक बाल्टी पानी देते हैं। जिससे गर्मियों में यह पौधे जीवित बच पाते हैं। छंगे बताते हैं कि पीपल और बरगद के पेड़ सबसे ज्यादा कठिनाई से उगते हैं जिनके लिए पानी लाने ज्यादा परिश्रम लगता है।
पहाड़ी से पत्थर बीनकर बना दिए सैकड़ों गुलुये
रामनाथ चौरसिया कहते हैं कि जब पौधे एक वर्ष के हो जाते हैं तो पौधों की सुरक्षा के लिए गुलुआ बनाते हैं। गुलुआ बनाने के लिए वह पहाड़ी पर ऐसे ही पड़े पत्थरों को बीनते हैं और वहीं गुलुआ बना देते हैं। वह पत्थरों को इतनी बारीकी से गोलाई में जमाते हैं कि बिना किसी जुड़ाई के वह एक दम गोलाकार बनते हैं। कहते हैं कि पूरे एक दिन में एक गुलुआ बन पाता है।
गांव का प्राचीन मंदिर एवं धार्मिक स्थल लेकिन अब कम आते हैं लोग
छंगे कहते हैं कि यह बहुत प्राचीन स्थल है जहां वर्षो से पवन पुत्र हनुमान जी महाराज की मूर्ति आज भी एक पद के तने से टिकी हुई है। लगभग बीस वर्ष पूर्व के अप्रिय घटना के बाद लोगों ने इस तरफ आना बंद कर दिया तब से चार छह लोग ही मंगलवार और शनिवार यहां आते हैं। कुछ लोग अपनी स्वेच्छा से थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ा जाते हैं जिसे वह इका करते रहते हैं फिर उसी से यह छोटा मोटा निर्माण करा देते हैं जिससे मंदिर बन सके। वह कहते हैं कि लोगो को यहां आना चाहिए।
न तो पहुंच मार्ग न ही क्षेत्र का विकास
कस्बे के प्राचीन स्थल पर न तो पहुंच मार्ग है और न ही यहां कोई विकास कार्य हुआ है। यह स्थल वन विभाग के क्षेत्र में आता है तो लोग पगडंडियों से यहां पहुंचते हैं। बारिश में पैदल पहुंचना भी मुश्किल होता है। प्रेमनाथ बताते हैं कि कभी किसी ने इसे विकसित करने का सोचा ही नहीं था इसलिए अकेले प्रयास करते रहते हैं। कहते हैं वह किसी के पास मंदिर या सिद्ध क्षेत्र के लिए सहायता मांगने कभी नहीं गए न जाएंगे। जिसे भगवान से से लगाव होगा वह स्वयं आ जायेंगे।
Created On :   24 Feb 2025 12:41 PM IST