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अपने जैविक माता-पिता को तलाशने मुंबई पहुंची महिला - कोर्ट से मिली राहत
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डिजिटल डेस्क, मुंबई । जैविक माता-पिता की तलाश में महाराष्ट्र में आई विदेशी महिला को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहत प्रदान की है। यह विदेशी महिला स्विट्जरलैंड की नागरिक है। न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के समक्ष सहायक सरकारी वकील ने कहा कि नियमानुसार तीसरे व्यक्ति को गोद लिए गए शख्स के बारे में सूचनाएं व दस्तावेज देने की अनुमति नहीं है। जबकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मेरी मुवक्किल ने एक महिला को लिखित रूप में पावर ऑफ अटॉर्नी देकर अपने दत्तक से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अधिकृत रूप से नियुक्त किया है। ऐसे में सरकारी अधिकारियों से असहयोग की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि गोद लिए गए बच्चे से जुड़ी गोपनीय व संवेदनशील जानकारी साझा करने से रोकने के लिए सरकार की ओर से बनाए गए नियम सराहनीय हैं। ले किन जिसे गोद लिया गया है यदि वह स्वयं किसी तीसरे व्यक्ति को पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए नियुक्त करता है तो ऐसी स्थिति में उस अधिकृत व्यक्ति को जानकारी देनी चाहिए। यह कहते हुए खंडपीठ ने दत्तक से जुड़े प्राधिकरण को विदेशी महिला से संबंधित जानकारी उस महिला को देने को कहा है जिसे विदेशी महिला ने पावर ऑफ अटॉर्नी दी है। खंडपीठ ने इस विषय पर विदेशी महिला को एक हलफनामा भी देने को कहा है। उसमें स्पष्ट करने को कहा है कि जानकारी देने के बाद वह खुद से जुड़ी गोपनीयता के भंग होने का दावा नहीं करेगी। यह कहते हुए याचिका को समाप्त कर दिया।
हाईकोर्ट में दायर की याचिका
स्विट्जरलैंड के एक दंपति ने 1978 में मुंबई के आशा सदन से गोद लिया था। अब यह महिला अपनी जड़ों की तलाश में मुंबई आई है। दत्तक से जुड़े विभाग से अपने जैविक माता-पिता की जानकारी जुटाने की कोशिश कर रही है। चूंकि उसके लिए स्विट्जरलैंड से बार-बार भारत आ पाना संभव नहीं है। इसलिए उसने पुणे की एक महिला को अपने दत्तक से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी दी है। लेकिन राज्य में दत्तक से जुड़े सरकार के प्राधिकरण से संबंधित अधिकारी उस महिला के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं। लिहाजा विदेशी महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
महिला को गर्भपात की नहीं मिली अनुमति
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गर्भपात को लेकर अदालत द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा दिए गए मत पर दूसरे मेडिकल बोर्ड की राय लेने की मांग को अस्वीकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट द्वारा गठित किए गए मेडिकल बोर्ड पर दूसरी राय लेना पहले बोर्ड की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करना जैसे होगा इसलिए हम इस तरह की मांग को स्वीकार नहीं कर सकते है। यह कहते हुए खंडपीठ ने महिला को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया। दरअसल, एक महिला ने 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में भ्रूण के हृदय में विसंगति होने का दावा किया गया था। लिहाजा हाईकोर्ट ने पुणे के ससून अस्पताल को महिला के भ्रूण की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया था। मेडिकल बोर्ड ने अपने रिपोर्ट में साफ किया था कि महिला के भ्रूण की गड़बड़ी को बच्चे के जन्म के बाद इलाज से ठीक किया जा सकता है।
Created On :   14 Oct 2019 12:13 PM IST