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यूनिवर्सिटी : शिक्षा में राजनीति, खींचतान में निकला पूरा साल
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय का साल खासा हंगामेदार रहा। यूनिवर्सिटी के कई फैसले विवादों का कारण बने। पूरे साल राजनीति यूनिवर्सिटी के कामकाज पर हावी नजर आई। इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ कुर्सी टिकाए रखने पर भी खासा जोर रहा। कुलगुरु, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक और वित्त व लेखा अधिकारी के पद यूनिवर्सिटी के चार प्रमुख पद हैं। इस वर्ष यूनिवर्सिटी के कुलगुरु की कार्यशैली विवादों का कारण बनी। 9 मार्च को लॉ कॉलेज में आयोजित जस्टा कॉजा कार्यक्रम में उन्होंने यूनिवर्सिटी की राजनीति पर विवादित टिप्पणी की और यूनिवर्सिटी को एकेडमिक दहशतवाद का केंद्र बता दिया। इनके इस बयान की न सिर्फ चारों ओर आलोचना हुई, बल्कि बाद में उनकी कार्यशैली पर ही विरोधक सवाल उठाने लगे। मार्च में ही प्रस्तावित सीनेट की बैठकों में विवादित प्रश्न शामिल न करने, चर्चा का समय घटाने से लेकर तो पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के कारण आलोचना हुई।
कुलसचिव की कुर्सी पर घमासान
यूनिवर्सिटी में वर्ष 2019 में कुलसचिव की कुर्सी के लिए जोरदार खींचतान हुई। जून 2018 में डॉ. पूरणचंद्र मेश्राम के सेवानिवृत्त होने के बाद कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थविनायक काणे ने पदभार डॉ. नीरज खटी को सौंपा। नाराज उपकुलसचिव डॉ. अनिल हिरेखण द्वारा महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में शिकायत करने के बाद आयोग ने उन्हें प्रभारी कुलसचिव बनाने की सिफारिश कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थविनायक काणे से की। जिसे मानने से कुलगुरु ने साफ इनकार कर दिया। इस पर बड़ा बवाल हुआ, विविध कर्मचारी संगठनों ने डॉ. हिरेखण को पदभार सौंपने को लेकर कुलगुरु को निवेदन भी दिया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
यूनिवर्सिटी ने कुलसचिव पद पूर्णकालिक नियुक्ति के लिए प्रक्रिया आयोजित की। सितंबर में इसके नतीजे आए और डॉ.नीरज खटी को ही पूर्णकालिक कुलसचिव चुना गया। सूत्र बताते हैं कि नियुक्ति की आस लगाए बैठे शिक्षण मंच के डॉ. संजय दुधे की नियुक्ति नहीं होने के कारण कुलगुरु पर राजनीतिक दबाव आया और अंतत: डॉ. खटी को पूर्णकालिक कुलसचिव नहीं बनाया गया, लेकिन तब से वे प्रभारी कुलसचिव बने हुए हैं। कुलसचिव पद के लिए दूसरी बार नियुक्ति प्रक्रिया आयोजित की गई है।
एसएसआर नहीं हुआ तैयार, नैक लटका
नागपुर विश्वविद्यालय को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडेशन काउंसिल (नैक) द्वारा दिया गया "अ' दर्जा इस दिसंबर को समाप्त हो रहा है। यूनिवर्सिटी को नए सिरे से नैक से मूल्यांकन कराना है, लेकिन अब तक यूनिवर्सिटी की सेल्फ स्टडी रिपोर्ट (एसएसआर) तैयार नहीं हुई है। जब तक नैक को एसएसआर रिपोर्ट नहीं भेजी जाती, नैक की टीम निरीक्षण करने नहीं आती है। दरअसल यह रिपोर्ट काफी पहले नैक को चले जानी चाहिए थी, लेकिन यूनिवर्सिटी की ओर से रिपोर्ट तैयार करने में काफी समय खर्च हो गया। अंतत: यूनिवर्सिटी ने 10 दिसंबर तक हर हाल में रिपोर्ट तैयार करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन 10 दिसंबर बीत जाने के बाद भी यह रिपोर्ट तैयार नहीं हुई है। अब यूनिवर्सिटी दर्जा समाप्त होने के बाद जो तीन महीने का अतिरिक्त समय मिलता है, उसमें नैक मूल्यांकन की उम्मीद रख रहा है।
नई इमारत का सपना पूरा हुआ
साल के आखिर तक आते-आते राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय की नई प्रशासकीय इमारत का सपना भी पूरा हुआ। बजाज उद्योग समूह द्वारा की गई 10 करोड़ की मदद से अंबाझरी रोड पर एक भव्य इमारत बनाई है। 19 दिसंबर को राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के हाथों इमारत का उद्घाटन किया गया। यह इमारत 9 एकड़ में पूर्व-पश्चिम की ओर बनी है। यूरोपीय गोथिक शैली का वास्तुशिल्प है। 4 मंजिला इमारत में कुल 1 लाख 44 हजार 735 वर्गफीट निर्माणकार्य किया गया। पहली मंजिल पर 200 क्षमता के दो सभागृह, 100 बैठक क्षमता के दो सभागृह, तीसरी मंजिल पर 50 बैठक क्षमता का एक और 25 बैठक क्षमता के दो कक्ष निर्मित किए गए है। सारी इमारत रेनवॉटर हार्वेस्टिंग क्षमता की है। परिसर में करीब 600 पौधे लगाए गए हैं।
डिग्रियों में गलतियां सामने आईं
जून में विश्वविद्यालय द्वारा संचालित पोस्ट ग्रेजुएट इन मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को गलत डिग्रियां देने का मामला भी सामने आया। वर्ष 2002 में यूजीसी ने मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन कोर्स बंद करके सभी विश्वविद्यालयों को अपने यहां ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स इन मास कम्यूनिकेश्न’ नाम से पाठ्यक्रम चलाने के आदेश दिए। नागपुर यूनिवर्सिटी ने वर्ष 2008-09 में इस बदलाव को स्वीकार किया। लेकिन यूनिवर्सिटी ने बीते कुछ वर्षों में कुछ विद्यार्थियों को ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स इन मास कम्यूनिकेश्न’ की डिग्री दी है, तो कुछ को“मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन’ (एमएमसी) की डिग्री दी है। ऐसे में जो पाठ्यक्रम बंद हो गया है, इसकी डिग्री देकर यूनिवर्सिटी ने विद्यार्थियों का भविष्य संकट में डाल दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जब मामले की जांच शुरू की तो पता चला है यह त्रुटि वर्ष 2016 और वर्ष 2017 की बैच की डिग्रियों में हुई है। इस दौरान यूनिवर्सिटी ने कुल 59 विद्यार्थियों को डिग्रियां दीं, इसमें से करीब 30 विद्यार्थियों को गलत नाम की डिग्रियां जारी हुई हैं। इसके बाद विद्यार्थियों की गलत डिग्रियां वापस मंगा कर नई डिग्रियां जारी की गईं
पाठ्यक्रम को भगवाकरण के लगे आरोप
जुलाई माह में विश्वविद्यालय का एक फैसला राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों का कारण बना। बीए के पाठ्यक्रम में आरएसएस पर केंद्रित अध्याय जोड़ने पर खासा विवाद हुआ। "आरएसएस की राष्ट्रनिर्माण में भूमिका' अध्याय बीए में शामिल गया। इसके बाद एनएसयूआई और राष्ट्रवादी विद्यार्थी कांग्रेस ने यूनिवर्सिटी के फैसले के खिलाफ सिविल लाइंस स्थित प्रशासकीय परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। संगठन पदाधिकारियों ने कुलगुरु डाॅ. सिद्धार्थविनायक काणे से मुलाकात करके यह अध्याय हटाने की मांग की। लेकिन भारी विवाद के बावजूद यूनिवर्सिटी ने इस अध्याय को अपने पाठ्यक्रम में कायम रखा। 16 दिसंबर को यूनिवर्सिटी में हुई बोर्ड ऑफ स्टडीज के बैठक में बीए प्रथम वर्ष के ‘मराठी साहित्य’ विषय में सावरकर का आत्मचरित्र ‘माझी जन्मठेप’ (मेरी उम्रकैद) शामिल करने के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक में प्रस्ताव रखा गया। इस विषय पर तर्क पर तर्क रखे गए और बैठक में खासी गहमागहमी हुई। अंतत: यह फैसला अब होल्ड पर है। सूत्रों की मानें तो इस अध्याय को बीए पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना लगभग तय है। जिसको लेकर फिर एक बार विश्वविद्यालाय सुर्खियों में छाया रहा।
इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर
विश्वविद्यालय ने इस साल की शुरुआत में ही इंफ्रास्ट्रक्चर पर खासा जोर दिया। यूनिवर्सिटी की 13.50 एकड़ जमीन पर राज्य सरकार ने विशाल एम्पीथियेटर बनाने का निर्णय लिया है। इस दिशा में सरकार को जमीन देने पर यूनिवर्सिटी की मैनेजमेंट काउंसिल ने मुहर लगाई है। यूनिवर्सिटी करीब 15000 व्यक्ति क्षमता का एम्पीथियेटर 20 करोड़ रुपए के खर्च होंगे। इसी एम्पीथियेटर के नीचे एक विशाल ऑडिटोरियम बनाया जाएगा, जो करीब 1500 व्यक्ति क्षमता का होगा।
भूल से सबक लिया, दीक्षांत समारोह का अतिथि पहले से तय किया
जनवरी 2019 में यूनिवर्सिटी का 106 वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया था। इस समारोह के लिए मुख्य अतिथि ढूंढ़ने में यूनिवर्सिटी को खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। इस बार यूनिवर्सिटी ऐसी गफलत नहीं चाहता। ऐसे में 18 जनवरी को होने जा रहे 107वें दीक्षांत समारोह में देश के मुख्य न्यायाधीश और यूनिवर्सिटी के छात्र रहे न्या. शरद बोबडे को बतौर मुख्य अतिथि शामिल किया गया।
नयनतारा सहगल के समर्थन में उठी आवाज
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में लेखिका नयनतारा सहगल को पहले आमंत्रण दिया और फिर रद्द कर दिया। इस पर प्रदेश में खूब विवाद गर्माया। इसी विवाद के बीच जनवरी में यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय के अमरावती रोड स्थित कैंपस में सहगल के समर्थन में आवाज उठी है। राजनीति शास्त्र विभाग के लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन स्टूडेंट्स एसोसिएशन द्वारा "नयनतारा सहगल का साहित्य सम्मेलन का वह भाषण' विषय पर चर्चासत्र का आयोजन किया गया, जिसमें राजनीति शास्त्र विभाग, मराठी विभाग और मास कम्युनिकेशन विभाग के शिक्षकों और कैंपस के विविध विभागों के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था। नयनतारा सहगल का समर्थन करते हुए उन्हें दिए गए निमंत्रण को रद्द करने का निषेध किया गया।
Created On :   24 Dec 2019 6:54 AM GMT