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कलयुग में नाम संकीर्तन और भक्ति ही मुक्ति का मार्ग- खेडकर
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डिजिटल डेस्क, यवतमाल. सतयुग में तपश्चर्या, त्रेतायुग में यज्ञयाग, द्वापार युग में कर्मकांड तो कलयुग में नामसंकीर्तन भक्ति ही मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। लोभ, मोह, आसक्ति क्रोध, ईर्ष्या आदि से बाहर निकालने के लिए मनुष्य को ईश्वर की भक्ति में लीन होना चाहिए। इसलिए समस्त संताें ने भी ईश्वर की शरण में जाकर अच्छे कार्य किए। "नाम संकीर्तन साधन या पै सोपे ! जलतील पापे जन्मांतरीची" ऐसा मुक्ति का एक मात्र सुगम साधन हरिपाठ है। अमोध शास्त्र माऊली ज्ञानेश के मुख से प्रकट हुए "देवाचिये उभा क्षणभरी। तेणे मुक्ति चारी साधीयेल्या" ऐसे हरिपाठ के 28 अभंग है। यह प्रतिपादन रेशीम खेडकर ने किया। वे यवतमाल में कीर्तन महोत्सव आयोजन समिति द्वारा आयोजित 15 वंे कीर्तन महोत्सव में बोल रहीं थीं। इस अवसर पर कीर्तनकाराें का स्वागत सुधा कैपिल्यवार और माल्यार्पण प्रा. डा. स्वाति जोशी द्वारा किया गया। उसी प्रकार संवादिनी वादक गंगाधरराव देव तथा तबला वादक श्रीधर कोरडे का स्वागत डा. सुशील बत्तलवार द्वारा किया गया। इस अवसर पर गीतसेवा शुभलक्ष्मी कुलकर्णी इस बच्ची ने प्रस्तुत कर उपस्थितों का मन जीत लिया। कार्यक्रम का संचालन भक्ति जोशी ने किया। "राजा पंढरीचा हरी माझा आला मला भक्तीचा फुलला’ इस अभंग कीर्तन से कार्यक्रम का समापन किया गया।
Created On :   18 Dec 2022 9:27 PM IST