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नागपुर: महामंडलों के पुनर्गठन की दरकार, अब महामंडलों पर टिकी हैं जनप्रतिनिधियों की निगाहें
- कौन सा महामंडल यह कैसे बताएं
- राजनीति के शिकार महामंडलों के पुनर्गठन की दरकार,
डिजिटल डेस्क, नागपुर. लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद केंद्र ही नहीं राज्य में भी सत्ता समायोजन की नई राजनीति आरंभ होगी। निश्चित ही कईयों की अपेक्षाएं भंग होंगी तो कई अपने स्वप्नों को पूरे करेंगे। ऐसे में राज्य विकास महामंडलों पर विविध दलों के जनप्रतिनिधियों की नजर टिक सी गई हैं। हालांकि महामंडल पूरी तरह से राजनीति के शिकार लग रहे हैं। ऐसे में कोई यह भी बता नहीं पा रहा है कि कौन सा महामंडल टिका रहेगा और कौन सा महामंडल कालातीत होकर रह जाएगा। महामंडल पुनर्गठन की दरकार बढ़ने लगी है।
सफेद हाथी बने महामंडल
राज्य में फिलहाल महामंडलों की स्थिति सफेद हाथी सी बनी है। विभागीय, समाजिक व क्षेत्रीय विकास के लिए महामंडलों का गठन किया गया था। पहले राज्य में 95 महामंडल थे। उसमें अण्णासाहेब पाटील आर्थिक विकास महामंडल, जगदज्योति महात्मा बसेश्वर आर्थिक विकास महामंडल, संत काशिबा गुरव युवा आर्थिक विकास महामंडल, राजे उमाजी नाईक आर्थिक विकास महामंडल, वडार आर्थिक विकास महामंडल जोड़े गए। ये नए 9 महामंडल समाज विशेष को सहायता के लक्ष्य के साथ तैयार किए गए।
भ्रष्टाचार की चर्चा
कुछ महामंडल भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा में रहे। नाराज विधायकों को खुश करने के लिए महामंडलों की कमान उन्हें क्या सौंपी महामंडल का व्यावसायीकरण होने लगा। परिवहन महामंडल, चर्मोद्योग महामंडल, अण्णाभाऊ साठे महामंडल, विविध विभागों के पाटबंधारे महामंडल भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ घाटे में रहे। लिहाजा राज्य में स्थानीय स्तर पर विकास के लिए नए विकल्प तलाशे गए। नागपुर प्रदेश सुधारना प्रन्यास, राज्य रस्ते विकास महामंडल, मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण, पुणे-पिंपरी-चिंचवड महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण जैसी संस्थाओं का निर्माण किया गया।
सरकार की भूमिका साफ नहीं
महामंडलों को लेकर सरकारों की भूमिका कभी भी साफ नहीं रही। महामंडलों की नियुक्तियों का विषय सदैव बना रहा। घाटे के महामंडलों को बंद करने की सिफारिश कई बार भारतीय नियंत्रक व महालेखापरीक्षक कैग ने की। सत्ताधारियों ने भी महामंडल बंद करने की घोषणा की। वर्ष 2015 में मैफ्को, मेल्ट्रान, भूविकास महामंडल, महाराष्ट्र विकास महामंडल सहित 7 महामंडल को बंद करने का निर्णय लिया गया। 2007 में उपासनी समिति ने 11 महामंडलों को बंद करने की सिफारिश की थी। देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री कार्यकाल में 35 महामंडलों को बंद करने की तैयारी की थी। मुख्य सचिव की समिति गठित की थी। लेकिन बाद में वह विषय जैसे का तैसा रह गया।
इनका कहना है कोई गंभीर नहीं
नितीन रोंघे, विदर्भ विकास अनुशेष के जानकार के मुताबिक महामंडलों व क्षेत्रीय विकास के मामलों को लेकर कोई भी राजनीतिक दल गंभीरता नहीं दिखा रहा है। चुनाव के बाद या कहें कि सत्ता में आते ही प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। क्षेत्रीय विकास संतुलन के लक्ष्य के साथ विदर्भ विकास वैधानिक मंडल सहित अन्य मंडल तैयार किए गए। इन संवैधानिक मंडलों का अस्तित्व भी अधर में है। न्याय के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है।
पिछड़े समाज पर अन्याय
किशोर कन्हेरे, प्रवक्ता शिवसेना उद्धव के मुताबिक सामाजिक व आर्थिक तौर पर पिछड़े समाज को आधार देने के लिए विकास महामंडलों का काफी महत्व है। लेकिन निधि के अभाव में समाज विकास संबंधित महामंडल या तो किसी काम के नहीं रह जाते हैं या फिर बंद पड़ जाते हैं। पिछड़े समाज के साथ यह अन्याय है। महामंडलों के पुनगर्ठन का कार्य त्वरित होना चाहिए। कारपोरेट क्षेत्र के लिए काम करनेवाले नेताओं व सरकारों को पिछड़े समाज का भी ध्यान रखना चाहिए।
भ्रष्टाचार पर हाे नियंत्रण
धर्मपाल मेश्राम, प्रवक्ता भाजपा महाराष्ट्र के मुताबिक महामंडलाें के मामले में भ्रष्टाचार नियंत्रण की ठोस व्यवस्था होना चाहिए। कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार के समय विविध महामंडलों की स्थिति यह थी कि वे कुछ नेताओं के लिए भ्रष्टाचार के माध्यम बने थे। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रहता तो महामंडलों पर किसी तरह का संकट नहीं आता। भाजपा गठबंधन की सरकार ने विविध विकास व कल्याण योजनाओं के माध्यम से क्षेत्रीय विकास के लक्ष्य को गति दी है। आवश्यकता अनुसार विकास उपाययोजना की है।
Created On :   26 May 2024 11:02 AM IST