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सिकलसेल जागरुकता दिवस: सिकलसेल पीड़ितों काे एकाकी जीवन जीने की नौबत, सालाना 17 तलाक, 735 की शादी नहीं
- समाज ही बांट सकता है वंशानुगत बीमारी का दर्द
- 3000 सिकलसेल पीड़ित हैं फिलहाल जिले में
- 1050 संख्या है इसमें किशोर और युवाओं की
चंद्रकांत चावरे , नागपुर । सिकलसेल, चिकित्सा, मानव और सामाजिक आयामों के साथ एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह मात्र चंद अक्षरों से मिला एक शब्द नहीं, जीवन भर का दर्द समेटे वह नासूर है, जिसके पीड़ित का कोई कसूर नहीं होता। वंशानुगत होने के चलते यह पीड़ित को अभिशप्त की श्रेणी में छोड़ जाता है। इस दर्द के साथ जीने वालों की संख्या जिले में ऑन रिकॉर्ड करीब 3000 हैं। इनमें से 18 से 31 आयुवर्ग की संख्या 35 फीसदी यानी 1050 है। इनमें से 70 फीसदी यानी 735 पीड़ितों की शादियां नहीं हो पा रही हैं। दरअसल, जागरुकता के अभाव में इस बीमारी से पीड़ितों का जीवन प्रभावित हो जाता है। शादी के बाद साथी सिकलसेल पीड़ित होने का पता चलने पर तलाक के अनेक मामले सामने आए हैं। सालाना ऐसे मामले औसतन 12 के करीब देखे जाते हैं। वहीं किसी परिवार में सिकलसेल पीड़ित बच्चा जन्म लेता है, तो सारा दोष लड़की को दिया जाता है। इस चक्कर में साल भर में 5 तलाक हो जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति चिंतनीय: सिकलसेल पीड़ितों के प्रति समाज की सोच को बदलने के लिए हर साल 19 जून को विश्व सिकलसेल जागरुकता दिवस मनाया जाता है। यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली ने 2008 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी। 2009 से यह दिवस मनाया जाता है। 16 साल से निरंतर सिकलसेल को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन आज भी जागरुकता का अभाव दिखाई दे रहा है। नागपुर जिले में ऑन रिकॉर्ड 3000 सिकलसेल पीड़ित हैं, जबकि मेडिकल में सालाना 5000 से अधिक मरीज उपचार के लिए आते हैं।
शादी के बाद पता चला तो तलाक : सूत्रों ने बताया कि शादी हाेने के बाद जब किसी एक साथी को दूसरे साथी के सिकलसेल पीड़ित होने का पता चलता है, तो बात तलाक तक पहुंच जाती है। ग्रामीण में ऐसे अनेक मामले सामने आते है। कुछ दंपति समझदारी दिखाते हैं, तो वहीं कुछ तलाक ले लेते हैं। सालाना तलाक लेने वालों की संख्या औसत 5 बताई गई है।
विशेष रक्त जांच से होती है पहचान : सिकलसेल एक अनुवांशिक बीमारी है। जब तक खून की जांच न कराई जाए, तब तक इस बीमारी की जानकारी नहीं मिलती। इस बीमारी का नियमित औषधोपचार करने पर पीड़ित सामान्य जीवन जी सकता है।
दर्द तब कम होगा, जब समाज दिल से जागरुक होगा : सिकलसेल पीड़ितों का सामाजिक दर्द समाज ही दूर कर सकता है। जिस दिन समाज यह मान लेना कि सिकलसेल ग्रस्त सामान्य जीवन जी सकता है, उस दिन सिकलसेल पीड़ितों का दर्द कम होगा। हम हर स्तर पर देश भर में लोगों काे जागरुक करने का निरंतर प्रयास कर रहे है। -गौतम डोंगरे, सचिव, नेशनल एलायंस ऑफ सिकलसेल आर्गनाइजेशन, नागपुर
Created On :   19 Jun 2024 11:40 AM IST