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गुमशुदगी: नागपुर शहर में 39 महीने में 1545 गुमशुदा, इनमें 1195 लड़कियां और 426 लड़के
- उम्र 12 से 13 वर्ष की बताई गई
- कुछ बच्चों के बारे में कुछ भी पता नहीं
अभय यादव , नागपुर । पापारिवारिक सदस्य के लापता हो जाने का दर्द पीड़ित परिवार ही समझ सकता है। किशोरों के मामले कुछ ज्यादा ही संवेदनशील होते हैं। नागपुर में भी अनेकों ऐसे परिवार हैं, जो इस मामले में भुक्तभोगी हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, उपराजधानी से हर रोज 3 लड़कियां गायब हो रही हैं, जिनकी उम्र 12 से 13 वर्ष की बताई गई है। गत 39 महीने में अकेले नागपुर से करीब 1545 से अधिक लोग गायब हुए, जिनमें कुछ तो वापस आ गए, लेकिन कुछ की तो उम्मीद टूट गई है। अभी करीब 50 लड़के- लड़कियां लापता है़ं। उनके बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है।
आरोप : कमाई नहीं, तो दिलचस्पी नहीं : परिजनों का मानना है कि ऐसे मामले में पुलिस भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेती है, क्योंकि लापता लोगों के मामले में कोई कमाई नहीं होती है। शायद लापता का पता लगाने का काम जिस पुलिसकर्मी को सौंपा जाता है, वह पूरी ईमानदारी के साथ शायद इसीलिए उसकी तलाश नहीं करता है।
हर थाने में बना है विशेष स्क्वॉड : शहर में 34 पुलिस थाने हैं, जिसमें एक साइबर पुलिस थाना भी शामिल है। संतरानगरी के 33 थानों में मिसिंग का विशेष स्क्वॉड है। इस स्क्वॉड में प्रत्येक थाने में 2-3 ही कर्मचारी कार्यरत हैं। लापता होने वाले लोगों का हर दिन का प्रमाण औसतन 10 है, जिसमें लड़कियों का अनुपात करीब 3 है। शहर के थाने में धारा 363 अंतर्गत 39 महीने में 1545 लड़के-लड़कियों के गायब होने के मामले दर्ज हैं। इसमें 1195 लड़कियां और 426 लड़के शामिल हैं। इसमें से कुछ लौटकर आए तो कुछ को पुलिस ने खोजा। यह प्रमाण 10 प्रतिशत के करीब है। 39 महीने से लापता करीब 50 लड़के-लड़कियों का आज तक पुलिस थानों के मिसिंग स्क्वॉड के अधिकारी- कर्मचारी कोई पता नहीं लगा सके हैं। यह मामला भी धारा 363 के तहत दर्ज किया गया था।
रिपोर्ट के हैरान करने वाले आंकड़े : एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल से लापता होने वालों का प्रमाण सबसे अधिक है। भारत में तीन वर्ष पहले लगभग 3.42 लाख लोग कथित तौर पर लापता थे और अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में इन लापता व्यक्तियों में से 50 प्रतिशत से अधिक का अभी तक पता नहीं चल पाया है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि गत 3 वर्ष में देश से 3.42 लाख लोग अभी भी लापता हैं, जिसमें लगभग 87 फीसदी या 2.98 लाख वयस्क थे, जबकि बच्चों का प्रमाण केवल 13 फीसदी था।
2023 में सबसे अधिक लापता
2023 में सबसे अधिक लोग लापता हुए थे। धारा 363 के तहत दर्ज 513 मामलों में 166 लड़के और 385 लड़कियां शामिल थीं। 160 लड़के और 372 लड़कियां तो मिलीं, लेकिन 6 लड़के और 13 लड़कियां आज भी लापता हैं।
2022 में 477 मामले दर्ज थे, जिसमें 119 लड़के और 379 लड़कियां गायब हो गई थी, इनमें से भी 1 कम उम्र का लड़का और 7 लड़कियां आज तक नहीं मिल सकी हैं।
2021 में 453 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें 110 लड़के और 354 लड़कियां लापता थीं। इस वर्ष लापता में मात्र 10 प्रतिशत लोगों को पुलिस खोज बीन कर ला पाई, बाकी अधिकांश वापस घर लौट आए थे।
काफी संवेदनशील मामला : एक आला अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि काफी संवेदनशील मामला है। लोग चाहे जो भी बोलें लेकिन मिसिंग स्क्वॉड का दस्ता हर संभव प्रयास करता है। इस दस्ते में कार्यरत पुलिस को ही पता है कि लापता लोगों का पता लगाने में कैसे उनके पसीने छूट जाते हैं। शहर से गायब होने वाले अधिकांश लोग शहर से बाहर चले जाते हैं। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश व अन्य कुछ पड़ोसी राज्यों की ओर जाने की जानकारी मिलती है, मगर इनका पता लगाना आसान नहीं होता है। हालांकि कुछ लोग खुद ही वापस लौट आते हैं, जिनके बारे में कई बार परिजन थाने में सूचना नहीं देते हैं, जिससे वह रिकार्ड में लापता ही रहते हैं। काफी हद तक यह भी सच है कि नए मामले सामने आने के बाद मिसिंग स्क्वॉड कई बार पुराने मामलों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता है।
Created On :   6 Jun 2024 9:19 AM GMT