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Nagpur News: समस्या बड़ी है , लंबी ड्यूटी से तनावग्रस्त रहते हैं रेजिडेंट डॉक्टर

- मरीजों की बढ़ती संख्या, डॉक्टर कम
- पीजी स्टूडेंट्स के भरोसे अस्पताल
Nagpur News चंद्रकांत चावरे . सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। रेजिडेंट डॉक्टर यानी पीजी स्टूडेंटस पर काम का अत्यधिक दबाव होता है। पेशंट को भर्ती होने से लेकर छुट्टी तक की पूरी व्यवस्था उन्हीं के भरोसे है। उन्हें लगातार 12 से 36 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। इसके कारण तनाव से गुजरना पड़ता है। उनकी शारीरिक-मानसिक स्थिति का ध्यान रखते हुए डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की मांग उठती है। दो बड़े सरकारी अस्पतालों में यही स्थिति देखने को मिली।
जीएमसी नागपुर मार्ड के एक प्रतिनिधि के यहां 750 रेजिडेंट डॉक्टर हैं। सरकारी अस्पतालों में गरीब व सामान्य वर्ग के मरीज आते है। इसलिए यहां मरीजों की संख्या सर्वाधिक होती है। नियमानुसार आठ घंटे की ड्यूटी लगानी हो तो डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी। अभी डॉक्टरों की कमी के कारण रेजिडेंट डॉक्टरों को 24 से 36 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है।
कागज पर ही नियम : मेयो नागपुर मार्ड के एक पदाधिकारी ने बताया कि यहां 400 रेजिडेंट डॉक्टर्स है। कभी 24 कभी 36 तो कभी 48 घंटे भी ड्यूटी करनी पड़ती है। ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं रहता। अस्पताल संभालने की जिम्मेदारी उनकी ही होती है। सरकार ने आठ घंटे ड्यूटी का नियम बनाया है।
इन्हें करने पड़ते हैं काम : मार्ड के एक पदाधिकारी ने बताया कि स्टाफ कम होने के कारण अधिकतर सेवाएं रेजिडेंट डॉक्टरों को देनी पड़ती है। पहले साल के स्टूडेंटस पर काम अधिक होता है। बाद के दो साल काम का बोझ कुछ कम होता है। नर्सेस व क्लास फोर के कर्मचारियों की संख्या कम है। इसिलए इनके भी कुछ काम करने पड़ते हैं। इसलिए पीजी स्टूडेंटस में काम का तनाव रहता है। तनावग्रस्त होने से चिड़चिड़ाहट, बातचीत का लहजा बदलना आदि स्वाभाविक है।
यूनिटवाइज चलता है काम : पीजी कोर्स तीन साल का है। मार्ड के एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि लगातार काम के कारण यदि किसी को थकान या नींद आ रही है, तो वह अन्य साथी से समन्वय करता है। हरेक डिपार्टमेंट में यूनिट होती है। सभी आपसी तालमेल से एक-एक दिन काम करते हैं। एक दिन इमर्जेंसी की जिम्मेदारी होती है।
Created On :   22 April 2025 12:05 PM IST