Nagpur News: रैबीज का पता लगने में 3 से 400 दिन का लग जाता है समय

रैबीज का पता लगने में 3 से 400 दिन का लग जाता है समय
  • सर्वाधिक मृत्यु होनेवाले की आयु 15 साल से कम
  • मेडिकल में 9 महीने में 12 मृत्यु रैबीज से दर्ज
  • जानलेवा हो जाता है जानवरों का काटना

Nagpur News किसी भी जानवरों के काटने या नाखून लगने के बाद रैबीज होगा या नहीं, रैबीज हुआ या नहीं, इस बात का पता लगने में कमसे कम 3 दिन और अधिकतम 400 दिन लग सकते है। मेडिकल सूत्रों ने इसकी जानकारी दी है। रैबीज से मृत्यु होनेवालों में सर्वाधिक संख्या 15 साल की आयु वर्ग से कम की है। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) में बीते 9 महीने में 12 मौत रैबीज से होने की पुष्टि हुई है।

श्वानों के अलावा अन्य जानवरों से भी खतरा : जानवरों के काटने या नाखून लगने से रैबीज की बीमारी होती है। सर्वाधिक बीमारी आवारा श्वानों के कारण होती है। आवारा श्वान या पागल श्वान के काटने से उसकी जहरीली लार इंसान के शरीर में जाती है। इसके बाद यही लार रक्त धमनियों में फैलकर मस्तिष्क में पहुंचती है। इस तरह रैबीज की बीमारी शरीर के साथ ही दिमाग पर अधिक हावी होती है।

आवारा श्वानों के मुकाबले बिल्लियों के काटने से रैबीज होकर मरनेवालों की संख्या अधिक बतायी जाती है। श्वान, बिल्ली के अलावा गाय, भैंस, घोड़े, चमगादड़, बंदर, नेवला आदि के काटने पर भी रैबीज का खतरा बना रहता है। रैबीज से मरनेवालों में 15 साल से कम आयुवर्ग की संख्या अधिक है। श्वानों का वैक्सीनेशन नहीं होने से यह बीमारी तेजी से फैल रही है। इससे बचने लिए प्रतिबंधक टीकाकरण जरुरी है। मेडिकल के अांकड़ों के अनुसार 9 महीने में 12 की मौत हो चुकी है। पागल श्वानों के काटने से रैबीज के वायरस जल्दी फैलते है। वहीं पालतु श्वानों के प्रति पशुपालकों ने सावधानी बरतने की सलाह डॉक्टरों ने दी है। पालतु श्वानों को 3 महीने में पहला प्रतिबंधक टीका और हर 6 महीने में रैबीज प्रतिबंधक टीका लगाना जरुरी बताया गया है। पालतु जानवरों को आवारा जानवरों के संपर्क में नहीं जाने देना चाहिए। पालतु जानवरों में बदलाव दिखायी देने पर पशु चिकित्सकों से संपर्क करने की सूचना मेडिकल के डॉक्टरों ने दी है।

ऐसे लक्षण दिखनेपर सावधानी बरतना जरुरी सामान्य रैबीज के लक्षणों में बुखार आना, मानसिक तनाव, निद्रानाश, आभास होना, पानी का डर लगना, गला सूखना आदि शामिल है। क्लासिकल रैबीज के लक्षणों में घाव में खुजली होना, पानी का डर लगना, गले व श्वासनलिका के स्नायू संकुचित होना, अलग-अलग प्रकार का आभास होना शामिल है। तीसरा पैरासिटिक रैबीज के लक्षणों में पानी का डर नहीं लगना, बुखार आना, सिरदर्द, पैरों में कमजोरी, पक्षाघात, हृदयाघात का खतरा होता है। किसी भी जानवर के काटनेपर पहले उस स्थान को साबुण से साफ करना जरुरी है। इसके बाद उस पर टिंक्चर आयोडिन व डेटॉल लगाना और बिना समय गंवाए डॉक्टर के पास जाकर टीका लगवाना चाहिए। ऐसा भी मेडिकल के डॉक्टरों ने बताया है। मेडिकल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अविनाश गावंडे ने रैबीज के बारे में बताया कि इस बीमारी के लिए एन्टी रैबीज का टीका प्रभावी है। इससे बीमारी को एक हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। स्वयंसेवी संस्थाअों के माध्यम से रैबीज प्रतिबंधक टीकाकरण के प्रति जागरुकता की आवश्यकता है। रैबीज के मरीजों को तांत्रिक, भोंदूबाबा या जड़ी-बूटियों वालों के पास नहीं ले जाना चाहिए। इससे मामला बिगड़ने की आशंका होती है। प्रतिबंधक टीके से ही रैबीज नियंत्रण में आ सकता है।

Created On :   28 Sept 2024 9:51 AM GMT

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