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Nagpur News: ऑनलाइन गेम - आई किल यू... मार डालो रात में चिल्लाते हैं बच्चे, तनाव में रहते हैं
- मनोचिकित्सा विभाग के सामने आती हैं अनेक कहानियां
- मेडिकल में 288, अन्य में 1500 से अधिक
- स्क्रीन का टाइम सेटिंग मॉनिटरिंग एप जरूरी
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन व तनाव में रहते हैं
Nagpur News : चंद्रकांत चावरे - सोमवार को नागपुर में ऑनलाइन गेमिंग के कारण सोमवार को एक किशोरी ने आत्महत्या कर ली। उपराजधानी में पहले भी ऐसी घटनाएं हुई हैं। दिसंबर 2024 में विधान परिषद सदस्य मनीषा कायंदे के प्रश्न के जवाब में राज्य सरकार ने बताया था कि, किशोर वर्ग बड़ी संख्या में ऑनलाइन गेम के अधीन हो रहे हैं। राज्य में ऑनलाइन गेमिंग के चलते एक व्यक्ति की हत्या, 7 लोगों की आत्महत्या के अलावा 41 अपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि यह संख्या अधिक हो सकती है। सोमवार की घटना से पहले भी नागपुर में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। दिसंबर 2018 में ऑनलाइन ब्ल्यू व्हेल गेम का टास्क पूरा करने के चक्कर में 18 साल के युवक ने अपने हाथों की नसें काटकर आत्महत्या कर ली थी। अक्टूबर 2021 में एक 17 साल की युवती ने ऑनलाइन गेम के चक्कर में खुद की जान दे दी। इसी साल दिसंबर में एक युवा ने तीसरी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में फंसकर किशोरों की आत्महत्या को लेकर मेडिकल के मनोचिकित्सा विभाग के अधिकारी ने बताया कि, हर हफ्ते यहां छह पालक मोबाइल गेम की लत के शिकार हो चुके बच्चों को लेकर आते है। यानि अकेले मेडिकल में सालाना 288 बच्चे मोबाइल लत के शिकार आते हैं। इसके अलावा मेयो, प्रादेशिक मनोचिकित्सालय व निजी अस्पतालों में कुल 1500 से अधिक किशोरों को मोबाइल लत से छुटकारा दिलाने उनके पालक लेकर आते हैं। मेडिकल के मनोचिकित्सा विभाग प्रमुख डॉ. मनीष ठाकरे ने सोमवार की घटना के बाद मंगलवार को विद्यार्थियों को मोबाइल गेमिंग का मस्तिष्क पर होने वाला परिणाम पर अध्ययन कर ब्योरा संकलित करने को कहा है, ताकि मोबाइल की लत से मस्तिष्क पर क्या असर होता है, इस बात का पता चल सकेगा। बताया गया कि मोबाइल लत के 3 से 21 साल आयु वर्ग के शिकार हैं।
स्वभाव में चिड़चिड़ापन व तनाव में रहते हैं
मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टरों के अनुसार जो बच्चे या किशोर मोबाइल लत का शिकार हो चुके हैं, वे कम से कम 5-6 घंटे मोबाइल स्क्रीन में बिता रहे हैं। उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। भोजन समय पर नहीं करते। चिड़चिड़ापन व तनावग्रस्त रहते हैं। अध्ययन के प्रति लापरवाह होने लगते हैं। परिवार के अन्य सदस्यों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। सोशल साइटस् के अलावा अलग-अलग गेम खेलने में लगे रहते हैं। उनकी दुनिया वर्चुअल वर्ल्ड में समाहित हो रही है। ऑनलाइन गेम या अन्य मनोरंजक साधनों के इस्तेमाल से बच्चों के मस्तिष्क में न्यूरो केमिकल रिसाव होता है, जिसे हैप्पी हार्मोंस भी कहते हैं। इस बीच अचानक उसे गेम खेलने से रोक दिया जाए, तो हैप्पी हार्माेंस का रिसाव रुक जाता है। इसकी वजह से बच्चे डिप्रेशन में आने लगते हैं। ऐसे बच्चों को काउंसिलिंग और दवाओं की जरूरत पड़ रही है।
अस्पतालों में आने वाले बच्चों के बारे में पालक अलग-अलग आश्चर्यजनक बातें मनोचिकित्सकों को बताते हैं। नींद में वह धांय-धांय... या आई किल यू, मार डालो... जैसे शब्द बोलता है। ऐसी आवाजें सुनते ही माता-पिता उसे नींद से जगा देते हैं, तब जाकर वह सामान्य होता है। ऐसे बच्चों की मनोचिकित्सकाें द्वारा काउंसिलिंग की जाती है। बच्चों में इस तरह की बीमारी को ड्रीम वर्क कहा जाता है। यह ड्रीम वर्क दिमाग में इस कदर बैठ जाता है कि, बच्चा हर वक्त उन्हीं बातों को सोचता है। इस तरह गेम की लत बच्चों के दिमाग पर हावी हो रही है। कोरोनाकाल से यह बीमारी तेजी से फैल चुकी है। महामारी के दौरान बच्चों के हाथों में लैपटॉप और मोबाइल पकड़ा दिया गया। उन पर नजर भी नहीं रखी गई। ऐसे में बच्चों को गेम की लत लग गई। इसमें ज्यादातर गेम हिंसक हैं। ये गेम उनके दिमाग पर अलग-अलग तरीके से असर कर रहे हैं।
यह डाल रहे दिमाग पर असर : चाइनीज गेम पब-जी के बैन होने के बाद भी कई ऐसे गेम हैं जो बच्चों के दिमाग पर ज्यादा असर डाल रहे हैं। इनमें एफपीएस कमांडो सीक्रेट मिशन, निंजा आरसी, निंजा राइडेन रिवेंज, स्टॉर्म फॉल सागा ऑफ सरवाइकल, रोबोलाॅक्स, रेड वाइपर जैसे हिंसक गेम हैं। यह मारधाड़ वाले गेम हैं होने के बावजूद प्रचलित हो चुके हैं। 90 फीसदी किशोर बच्चे इन्हीं गेम को खेलते हैं।
डॉ. मनीष ठाकरे, मनोचिकित्सा विभाग प्रमुख, मेडिकल के मुताबिक मोबाइल गेम के चक्कर में आत्महत्या करना चिंता का विषय है। हमारे विभाग में हर हफ्ते मोबाइल गेम या सोशल साइटस् के कारण मस्तिष्क पर असर हो चुके औसत 6 मरीज आते हैं। इनका आयुवर्ग 3 से 21 साल तक होता है। घर में नो मोबाइल जोन होना चाहिए। स्क्रीन देखने का टाइम सेट करना चाहिए। निगरानी के तौर पर कोई मॉनिटरिंग एप डाउनलोड करना जरूरी है। इससे क्या देखा जा रहा है, इसका पता चल सकेगा। 2009 में सरकार ने डिजिटल व एडवांस तरीके से स्मार्ट शिक्षा देने बच्चों को टैब व लैपटॉप देने का निर्णय लिया था। यह प्रयोग घातक साबित हो गया। 2023 में स्क्रिन से दूरी बनाने के लिए पुस्तकों से शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। मोबाइल के चलते पठन पद्धति खत्म होनेले कई तरह के नकारात्मक परिणाम हो रहे हैं, इसलिए पालकों, शिक्षकों समेत समाज के सभी वर्ग ने बच्चों व किशोरों को मोबाइल देने के पहले नियमावली लागू कर देनी चाहिए।
Created On :   29 Jan 2025 7:10 PM IST