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विकास: अब प्रशिक्षित पायलट ही नहीं , वैज्ञानिक भी अंतरिक्ष स्टेशन जा सकेंगे
- गगनयान 2025 तक और भारतीय अंतरिक्ष यात्री 2040 तक चंद्रमा पर कदम रखेंगे
- इसरो और विज्ञान भारती के "स्पेस ऑन व्हील्स' कार्यक्रम में बोले इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ
- भारत आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष में कई कदम उठाने जा रहा
डिजिटल डेस्क, नागपुर । भारत आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष में कई कदम उठाने जा रहा है और अंतरिक्ष स्टेशन (स्पेस स्टेशन) स्थापित करने की तैयारी कर रहा है। अब तक केवल पूरी तरह से प्रशिक्षित वायु सेना के पायलटों को ही अंतरिक्ष यात्री के रूप में अंतरिक्ष में भेजा जाता है, लेकिन जब अंतरिक्ष केंद्र पूरा हो जाएगा, तो विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिक जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं, उन्हें भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। यह प्रतिपादन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (इसरो) के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने किया। इसरो और विज्ञान भारती विदर्भ प्रदेश के सहयोग से 15 अगस्त 2023 से शुरू हुए ‘स्पेस ऑन व्हील्स' के समापन कार्यक्रम में डॉ. एस. सोमनाथ उपस्थित थे। गुरुवार को सुरेश भट सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में विज्ञान भारती के अध्यक्ष एवं सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक डाॅ. शेखर मांडे, एनआरएससी के डॉ. प्रकाश चव्हाण, सीबीबीडी के सुधीर कुमार, शिव कुमार शर्मा और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
भारत को निवेश बढ़ाने की जरूरत : डॉ. सोमनाथ ने विश्वास जताया कि गगनयान 2025 तक और भारतीय अंतरिक्ष यात्री 2040 तक चंद्रमा पर कदम रखेंगे। उन्होंने कहा कि इसरो की कोशिश 2028 तक अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने की है। अंतरिक्ष अनुसंधान में 450 अरब डॉलर के निवेश के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है। वर्तमान में भारत का योगदान केवल 2 प्रतिशत है और इसे 10 प्रतिशत तक ले जाने के लिए छात्रों को नए विचारों, स्टार्टअप और उद्योग के साथ पहल करने की आवश्यकता है। 1960 के दशक में जब अमेरिका ने अपना चंद्र मिशन लॉन्च किया था, तब भारत रॉकेट भी नहीं बना रहा था, लेकिन आज भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश है। भारत एक विकसित राष्ट्र है और हर क्षेत्र में अग्रणी है। फिलहाल हम 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और जल्द ही हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर पहुंच जाएंगे।
भारत डिजिटल क्रांति का नेतृत्व कर रहा है : इसरो अध्यक्ष ने कहा कि दुनिया तेजी से बदल रही है। हम डिजिटल क्रांति के युग में रहते हैं और भारत सबसे अधिक लेन देन के साथ डिजिटल क्रांति का नेतृत्व कर रहा है। हमें अंतरिक्ष विज्ञान में भी तेजी से आगे बढ़ना होगा, क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञान डिजिटल क्रांति की रीढ़ है। भविष्य उनका है जो प्रौद्योगिकी की ताकत को पहचानते हैं और अंतरिक्ष विज्ञान का हर क्षेत्र में योगदान है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर भौतिक विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में भी अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान व्यापक बदलाव के लिए महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विदर्भ के कृषि क्षेत्र और ग्रामीण संचार में फायदेमंद होगी।
विदर्भ में बढ़ाई जाएगी विज्ञान के प्रति रुचि : स्पेस बस बनाने में कड़ी मेहनत करने वाले सुधीर कुमार ने इस सफलता की जानकारी देते हुए बताया कि विदर्भ के छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि और अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए इसरो और विभा की पहल पर चंद्रयान और भारतीय अंतरिक्ष मिशन की जानकारी देने के लिए एक मोबाइल बस तैयार की गई थी। यह बस विदर्भ के 11 जिलों में 5000 किमी की यात्रा करके 135 से अधिक स्कूलों तक पहुंची और 5 लाख से अधिक छात्रों ने इसका लाभ लिया। इस अवसर पर अचलपुर के छात्र साैरभ वैद्य, हिंगनघाट के शिक्षक आशीष कुमार और मेलघाट क्षेत्र की शिक्षिका विद्या कुमरेकर ने अपने विचार रखे।
Created On :   22 March 2024 1:28 PM IST