उदासीनता: साहब छुट्टी पर, जिला परिषद के स्वास्थ्य केंद्रों का मूल्यांकन लटका, बढ़ी परेशानी

साहब छुट्टी पर, जिला परिषद के स्वास्थ्य केंद्रों का मूल्यांकन लटका, बढ़ी परेशानी
  • राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक प्राप्त करने में बड़ा पेंच सामने
  • पिछले साल रिक्त पद पर कोऑर्डिनेटर की नियुक्ति
  • काम की जानकारी नहीं होने से एसेसमेंट नहीं हो पाया

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग व सिविल सर्जन कार्यालय अंतर्गत हर साल ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों का एसेसमेंट किया जाता है। इसके बाद उन्हें नेशनल क्वालिटी एश्योरेन्स स्टैंडर्ड (एनक्वास) का मानक दिया जाता है। यह अवार्ड प्राप्त करने वाले केंद्रों को तीन साल तक विकास निधि भी दी जाती है, लेकिन नागपुर जिले में मूल्यांकन के लिए नियुक्त अधिकारी पिछले कई दिनों से छुट्‌टी पर हैं। सूत्रों ने बताया कि अधिकारी नहीं होने से मूल्यांकन ही नहीं हो पाया है। जब यह अधिकारी छुट्‌टी पर नहीं गए थे, तब भी उन्होंने यह काम नहीं किया। समय पर मूल्यांकन नहीं होने स्वास्थ्य केंद्रों को राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक से वंचित रहना पड़ सकता है।

कोऑर्डिनेटर नियुक्त, नहीं हो रहा काम : सूत्रों के अनुसार क्वालिटी एश्योरन्स कार्यक्रम का काम एनआरएचएम अंतर्गत क्वालिटी एश्योरन्स कोऑर्डिनेटर के माध्यम से किया जाता है। पहले यह काम करने वाले जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनका प्रभार दूसरे अधिकारी को दिया गया था। प्रभारी अधिकारी अपना काम नियमित रूप से करते थे। पिछले साल रिक्त पद पर कोऑर्डिनेटर की नियुक्ति की गई। इस अधिकारी को काम की जानकारी नहीं होने से एसेसमेंट नहीं हो पाया। इस बारे में जब अधिकारियों ने शिकायतें की, तब पहले जो प्रभारी था, उसे सहायक के रूप में काम करने के लिए कहा गया। लेकिन जब नये नियुक्त कोऑर्डिनेटर को इस बारे में पता चला तो उसने श्रेय लेने की होड़ के चक्कर में सहायक को रिलिव कर दिया। सहायक ने काम नहीं किया, वहीं पदस्थ कोऑर्डिनेटर ने भी काम नहीं किया। इस कारण स्वास्थ्य केंद्रों का मूल्यांकन नहीं हो पाया। मूल्यांकन नहीं होने से एनक्वास मानक व विकास निधि दोनों से वंचित रहने की संभावना व्यक्त की गई है।

बोलती दीवार’ उपक्रम में रिश्तेदारों को मिला लाभ : जिला परिषद के अंतर्गत ‘बोलती दीवार’ उपक्रम के कार्य में भ्रष्टाचार की आशंका व्यक्त की जा रही है। दावा किया जा रहा है कि इस कार्य में सत्ता में प्रभाव रखने वाले लोगों ने अपने नाते रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाया। भ्रष्टाचार के विविध तरीके अपनाए गए। गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र में विद्यार्थियों की शैक्षणिक व बौद्धिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विविध उपक्रम चलाए जाते हैं। जिला परिषद की प्राथमिक शाला, आंगनवाड़ी की सुरक्षा दीवारों को आकर्षक रंग में रंगने के अलावा पहाड़ा, एबीसीडी अक्षर, पक्षी, वन्य प्राणियों, पालतू पशुओं, खेल, पेड़-पौधों व फूलों के चित्रांकन के लिए राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिए है। उद्देश्य यह है कि मध्यांतर व छुट्टी के समय या पोषण आहार लेते समय बच्चें खेलते हुए बोलती दीवारों से भी ज्ञान पा सकें। इसके लिए जिला परिषद के सेसफंड और 15 वें वित्त आयोग की निधि से आर्थिक व्यवस्था की गई है। उपक्रम के तहत 15 से 20 शालाओं का चयन किया गया है। प्रत्येक शाला के लिए 2 लाख रुपये व उससे अधिक निधि स्वीकृति की गई है।

जिला परिषद में विपक्ष के नेता आतिश उमरे ने आरोप लगाए है कि बोलती दीवार उपक्रम में सत्ता पक्ष के लोगों ने अनियमितता की है। सत्ता पक्ष के एक सदस्य ने रिश्तेदार के माध्यम से लाखों का कार्य लिया है। शाला चयन के मामले में भी मनमानी की गई है।

Created On :   14 May 2024 9:16 AM GMT

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