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परिणाम: गडकरी की हैट्रिक, बर्वे ने जीता गढ़, जानिए - फडणवीस-बावनकुले का गणित कहां बिगड़ा
- केदार बने किंगमेकर
- फडणवीस-बावनकुले का गणित
- बसपा पिछड़ी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। लोकसभा चुनाव का परिणाम जिले में उम्मीदों के अनुरूप ही रहा है। नागपुर में भाजपा उम्मीदवार नितीन गडकरी ने जीत की हैट्रिक बनाई है। रामटेक में कांग्रेस उम्मीदवार श्याम बर्वे जीते हैं। बर्वे की जीत से कांग्रेस रामटेक में अपना खोया गढ़ वापस पाने में भी सफल रही है। मतगणना के 20 वें राउंड में गडकरी ने कांग्रेस उम्मीदवार विकास ठाकरे को 1,37,603 मतों के अंतर से पराजित किया है। गडकरी को 6,55,027 व ठाकरे को 5,17,424 मत मिले हैं। रामटेक में कांग्रेस उम्मीदवार बर्वे ने 74,904 मतों के अंतर से शिवसेना उम्मीदवार बर्वे को पराजित किया है। बर्वे को 5,59,856 व पारवे को 4,84,952 मत मिले हैं। मंगलवार को मतगणना के आरंभिक रुझान में ही गडकरी व बर्वे की जीत के संकेत मिलने लगे। दोनों उम्मीदवार आरंभ से ही मतों के मामले में आगे रहे।
गडकरी की जीत
भाजपा के अध्यक्ष रहे गडकरी 10 वर्ष तक केंद्र से केंद्र में मंत्री हैं। 2014 में उन्होंने 3.80 लाख व 2019 में 2.16 लाख मतों के अंतर से चुनाव जीता था। इस बार नागपुर में 26 उम्मीदवार थे। गडकरी, ठाकरे के बीच सीधा मुकाबला हुआ। बसपा उम्मीदवार चुनाव के समय ही कमजोर दिखने लगे थे। वंचित बहुजन आघाड़ी ने कांग्रेस को समर्थन दिया था। भाजपा दावा कर रही थी कि गडकरी 5 लाख मतों के अंतर से जीतेेगी। लेकिन चुनाव आरंभ होते ही विविध चुनौतियों सामने आने लगी थी। विधायक व कांग्रेस के शहर अध्यक्ष विकास ठाकरे को उम्मीदवार बनाये जाने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा था। ऐसे में दावा किया जा रहा था कि गडकरी के लिए जीत की हैट्रिक चुनौतीपूर्ण है। इससे पहले 13 बार नागपुर से कांग्रेस जीती है। कांग्रेस नेता विलास मुत्तेमवार ने 1998 से 2009 तक चुनाव जीता। जीत की हैट्रिक बनाई थी। गडकरी ने विविध चुनौतियों को दूर करते हुए जीत की हैट्रिक बनाई है।
रामटेक में कांग्रेस को मिला गढ़
भगवान राम के मंदिर व गढ़ के लिए पहचाने जाने वाले रामटेक क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा रहा है। इस बार चुनाव में 28 उम्मीदवार थे। बर्वे, पारवे को छोड़ अन्य कई उम्मीदवार प्रचार करते भी नहीं दिखे। 1957 में लोकसभा क्षेत्र के गठन के बाद से 1998 तक इस क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार ही जीते। बाद में 2009 में कांग्रेस के मुकुल वासनिक की जीत को छोड़ दिया जाए तो क्षेत्र में शिवसेना ही जीतती रही। स्थिति यह बनी कि कांग्रेस का गढ़ कहलानेवाला रामटेक क्षेत्र शिवसेना का गढ़ कहे जाने लगा। इस बार कांग्रेस विधायक राजू पारवे को महायुति की उम्मीदवारी दिलाकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गढ़ कायम रखने का प्रयास किया। लेकिन सफल नहीं हो पाए। रामटेक का गढ़ पाने में कांग्रेस सफल हुई है।
बसपा पिछड़ी
बसपा को पहले से कम मत मिले हैं। नागपुर में बसपा उम्मीदवार योगेश लांजेवार ने 19,114 व रामटेक में संदीप मेश्राम ने 23,938 मत पाए हैं। रामटेक में कांग्रेस के बागी व वंचित आघाडी समर्थित उम्मीदवार किशाेर गजभिये को 22,249 मत मिले हैं।
केदार बने किंगमेकर
रामटेक में पूर्व मंत्री सुनील केदार किंगमेकर की भूमिका में है। उन्होंने रामटेक में पूर्व जिप अध्यक्ष रश्मि बर्वे को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने का प्रयास किया। किशोर गजभिये की बगावत व अन्य कई कांग्रेस नेताओं की असहमति के बाद भी केदार ने रश्मि को उम्मीदवारी दिलाई थी। हालांकि जाति प्रमाण पत्र का विषय ऐसे गर्माया कि रश्मि की उम्मीदवारी रद्द हो गई। तब कांग्रेस ने रश्मि के पति श्याम बर्वे को उम्मीदवार बनाया। श्याम बर्वे उपसरपंच रहे हैं। विविध चुनौतियों के बीच श्याम की जीत का श्रेय सुनील केदार को दिया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि केदार ही किसी उपसरपंच को सांसद बना सकते हैं। इससे पहले विधानपरिषद की स्नातक निर्वाचन सीट व शिक्षक निर्वाचन सीट में कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के लिए भी केदार की रणनीति की सराहना की गई। स्नातक निर्वाचन सीट से पूर्व महापौर संदीप जोशी की पराजय को उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पराजय कहा जाने लगा था। शिक्षक निर्वाचन सीट के चुनाव में भी भाजपा को झटका लगा था। इस क्षेत्र से दो बार चुने गए नागो गाणार को सुधाकर अडबाले ने आसानी से पराजित कर दिया। जिला परिषद में केदार के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने सत्ता पाई है। फिलहाल केदार बैंक घोटाले में जेल से जमानत पर छूटे हैं। उनकी सावनेर से विधानसभा की सदस्यता भी रद्द है।
फडणवीस-बावनकुले का गणित कहां बिगड़ा
रामटेक क्षेत्र में महायुति की जीत के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने ताकत लगा रखी थी। अब सवाल किया जा सकता है कि उनका चुनावी गणित कहां बिगड़ा। फडणवीस व बावनकुले ने 6 माह पहले से ही इस क्षेत्र के लिए रणनीति पर काम शुरू कर दिया था। दावा किया जा रहा था कि इस क्षेत्र से पहली बार भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा, लेकिन गठबंधन की राजनीति में फडणवीस-बावनकुले की रणनीति उलझ गई। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नहीं माने। शिंदे के नेतृत्व की शिवसेना के लिए भाजपा को यह सीट छोड़ना पड़ा। हालांकि शिंदे दो बार इस क्षेत्र से चुने गए शिवसेना नेता कृपाल तुमाने का उम्मीदवार नहीं बना पाए। उमरेड में कांग्रेस के विधायक पद से इस्तीफा दिलाकर राजू पारवे को शिंदे ने शिवसेना में प्रवेश दिलाया। बाद में पारवे को महायुति का उम्मीदवार बनाया गया। चर्चा रही कि पारवे शिवसेना िशंदे के कोटे से भले ही उम्मीदवार थे, लेकिन भाजपा ने ही उन्हें उम्मीदवारी दी थी। सुना गया कि पारवे, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के साथ भाजपा में शामिल होने वाले थे, लेकिन फडणवीस-बावनकुले ने दांव चलते हुए पारवे को शिंदे के नेतृत्व की शिवसेना से उम्मीदवार बनवाया। पारवे के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा कांद्री में हुई। कांग्रेस के नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्य श्याम बर्वे कांद्री के ही हैं। केदार के करीबी मनोहर कुंभारे व रामटेक में कांग्रेस उम्मीदवार रहे उदयसिंह यादव को चुनाव के समय भाजपा में शामिल कराया गया, लेकिन महायुति चुनाव जीतने में सफल नहीं रही।
Created On :   4 Jun 2024 8:42 PM IST