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भास्कर खास: पानी की बर्बादी रोकें तो मुंबईकरों को मिल सकती है पेयजल कटौती से निजात
- मुंबई में 40 प्रतिशत फ्रेश वाटर का शौचालय में हो रहा इस्तेमाल
- नियम के बावजूद नहीं हो रहा ग्राउंड वाटर का उपयोग, मनपा प्रशासन उदासीन
- मुंबई में 24 हजार सोसायटी, 3 हजार सोसायटी में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग
- हर साल 10 प्रतिशत पेयजल की किल्लत
डिजिटल डेस्क, मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। नहाने-धोने और शौचालय में इस्तेमाल होनेवाले पानी की बर्बादी रोकी जाए तो मुंबई को पेयजल कटौती से निजात मिल सकती है। मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) रोजाना 4000 मिलियन लीटर (एमएलडी) पीने के पानी की आपूर्ति करती है। इसमें से 40 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल बाथरूम और शौचालय में होता है। बाथरूम और टॉयलेट के लिए बोरवेल का पानी इस्तेमाल किया जाए तो मुंबईकरों को साल भर पर्याप्त पेयजल मिल सकता है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग और बोरवेल के पानी के इस्तेमाल के लिए मनपा ने नियम बनाए हैं। इन नियमों पर अमल को लेकर उदासीन रहा मनपा प्रशासन अब इस पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
जलजीवन मिशन के तहत काम करने वाले मिशन ग्रीन मुंबई के फाउंडर शुभोजित मुखर्जी ने बताया कि मुंबई में ग्राउंड वाटर की कोई कमी नहीं है। समुद्र का पानी छन कर भूजल स्रोत को बढ़ाता है। इस पानी का उपयोग शौचालय आदि के लिए किया जा सकता है। इस मामले में चेन्नई और हैदराबाद का उदाहरण लिया जा सकता है।
2007 में बना नियम
वर्ष 2007 में इसके लिए नियम बनाया गया। लेकिन, इस पर गंभीरता से अमल नहीं किया गया। अधिकारियों का कहना है कि इन नियमों के अमल में कुछ जटिलताएं हैं। क्योंकि पुरानी आवासीय सोसायटियों में इसे लागू करना आसान नहीं है।
24 हजार सोसायटी
मुंबई में 24 हजार सोसायटी हैं। इनमें से केवल 3000 सोसायटी में वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था है। बारिश में जमा पानी का इस्तेमाल ये सोसायटी गार्डन की सिंचाई, वाहनों की धुलाई और शौचालयों के लिए करती हैं। बाकी 21 हजार सोसायटियों में फ्लश के लिए पेयजल इस्तेमाल किया जाता है।
टैंकर बिजनेस को बढ़ावा
मुंबई में पानी की कमी के कारण टैंकर बिजनेस तेजी से फल-फूल रहा है। महामुंबई क्षेत्र (एमएमआर) में सालाना आधार पर टैंकर जलापूर्ति का कारोबार 35 हजार करोड़ रुपए के आसपास है।
मिलनी चाहिए सब्सिडी
मुखर्जी के अनुसार एक सोसायटी में बोरवेल के पानी का उपयोग करने के लिए 4 से 5 लाख रुपए खर्च आता है। दिल्ली सरकार इसके लिए एक लाख रुपए सब्सिडी देती है। बीएमसी को भी सब्सिडी देनी चाहिए।
शुभोजित मुखर्जी, फाउंडर, मिशन ग्रीन मुंबई के मुताबिक जिन सोसायटियों में बोरवेल हैं, उन्हें टैंकर का पानी नहीं मंगाना पड़ता। लेकिन जहां बोरवेल नहीं है, वहां पानी कटौती के समय दिक्कतें बढ़ जाती हैं। फ्लश के लिए ग्राउंड वाटर के उपयोग से करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है।
पुरुषोत्तम मालवदे, चीफ इंजीनियर मनपा जल विभाग के मुताबिकनई सोसायटियों में टॉयलेट के लिए भूजल का उपयोग किया जा रहा है। सोसायटियों में प्रति व्यक्ति 135 लीटर और स्लम में 45 लीटर पानी दिया जाता है। आगामी समय में फ्लश के लिए भूजल का उपयोग अनिवार्य किया जाएगा
Created On :   7 Nov 2023 7:00 AM IST