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बॉम्बे हाईकोर्ट: वायु प्रदूषण पर रोक लगाने में नाकाम बीएमसी से मांगी रिपोर्ट, पिता को सौंपी दो बच्चों की परवरिश

- शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर रोक लगाने में नाकाम रही बीएमसी से मांगा कार्रवाई की रिपोर्ट
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन और चार साल के दो बच्चों के हित को देखते हुए पिता को सौंपी परवरिश
- अदालत की अवमानना मामले में वकील नीलेश ओझा के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई 17 जून तक टली
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर रोक लगाने में नाकाम रही मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) से कार्रवाई की 6 सप्ताह में रिपोर्ट मांगा है। साथ ही अदालत ने वायु प्रदूषण को लेकर 9 जनवरी के अपने पहले के बीएमसी को दिए आदेश पर पूरी तरह से अमल करने और कंस्ट्रक्शन साइट पर पलुशन इंडिकेटर डिवाइस लगाने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस. कार्णिक की पीठ के समक्ष मुंबई में खराब वायु गुणवत्ता पर एक स्वत: संज्ञान (सुनोटो) याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) ने साकीनाका स्थित चांदीवली के खैरानी रोड और उल्हासनगर में भट्टियों से हो रहे वायु प्रदूषण को पीठ के संज्ञान में लाया। वहीं सामाजिक संस्था वनशक्ति के वकील ने दलील दी कि शहर में हो रहे कंस्ट्रक्शन से निकले वाली धूल से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। अदालत ने 9 जनवरी को आदेश में कंस्ट्रक्शन साइटों पर पलुशन इंडिकेटर डिवाइस लगाने और उसके आधार पर अधिक वायु प्रदूषण करने वाले कंस्ट्रक्शन साइटों पर कार्रवाई का निर्देश दिया था, लेकिन उस पर अमल नहीं किया जा रहा है। इस पर बीएमसी के वकील ने कहा कि मुंबई में कंस्ट्रक्शन साइटों पर पलुशन इंडिकेटर डिवाइस लगाने के लिए कदम उठाए हैं, जिनका उपयोग निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल की मात्रा की जांच करने के लिए किया जाता है। इसकी निगरानी और पलुशन इंडिकेटर डिवाइस को केंद्रीय रूप से जोड़ने के लिए आईआईटी बॉम्बे और कानपुर से परामर्श ले रहे हैं। बीएमसी ने यह भी कहा कि वह निर्माण स्थलों पर सीसीटीवी लगाने के मुद्दे पर आईआईटी से परामर्श मांगी है। 9 जनवरी 2025 को अदालत ने कई निर्देश जारी किए थे। एक निर्देश यह था कि यदि पलुशन इंडिकेटर डिवाइस नहीं लगाए गए, तो कंस्ट्रक्शन साइटों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिसमें उसके निर्माण को रोकना भी शामिल है। पीठ ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को मुंबई महानगर क्षेत्र में विभिन्न श्रेणियों में आने वाले विभिन्न उद्योगों और विशेष रूप से लाल श्रेणी के उद्योगों का प्रदूषण ऑडिट करने का भी निर्देश दिया था। एमपीसीबी ने कहा कि सभी लाल श्रेणी के उद्योगों का तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट किया गया है और ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगा है। पीठ ने बीएमसी को अनुपालन रिपोर्ट और एमपीसीबी को ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया। पीठ अब गर्मी की छुट्टियों के बाद मामले की सुनवाई करेगा।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन और चार साल के दो बच्चों का हित देखते हुए पिता को सौंपी परवरिश
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन साल के बेटे और चार साल की बेटी की भलाई को देखते हुए पिता को उनकी परवरिश की जिम्मेदारी सौंपी दी। अदालत ने दोनों बच्चों की मां की बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने माना कि पिता बच्चों की देखभाल करने की बेहतर स्थिति में है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह बेटी के समुचित उपचार के लिए आवश्यक सभी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने की स्थिति में है। इसलिए केवल इस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर निर्णय लेने के उद्देश्य से हमारी यह राय हैं कि इस स्तर पर पिता बच्चों की देखभाल करने की बेहतर स्थिति में है। इसलिए बच्चों के कल्याण के लिए इस मामले में पिता के पास हिरासत जारी रखना उचित है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम.मोडक की पीठ के समक्ष के एक मां की ओर से वकील प्रशांत पांडे और वकील दिनेश जाधवानी की दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत पांडे ने दलील दी कि मुंबई में रहने वाली याचिकाकर्ता दिव्यांग है। वह एक व्यवसाय चला रही है। उनकी बेटी का चार साल और बेटे की उम्र तीन साल है। उन्हें सास और ससुर की क्रूरता, ताने और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा। उसे 12 जून 2021 को अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा और उसके बाद उसे वापस आने की अनुमति नहीं दी गई। उसने तालेगांव के दाभाड़े पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई। वह ने अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी चाहती है, जिसे उसके पति की दो भतीजियां एक मॉल में घुमाने के लिए ले गईं और वहां से दोनों बच्चों को अपने साथ पुणे लेकर चली गईं। इसके बाद मां से बच्चों से मिल नहीं सकी। बेटी मिर्गी के दौरे से पीड़ित है। उसका इलाज हो रहा है। बच्चों को याचिकाकर्ता की कानूनी हिरासत से धोखे से और अपहरण करके अवैध रूप से ले जाया गया था, इसलिए बच्चों की हिरासत याचिकाकर्ता के पास बहाल की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी बेटी के लिए मुंबई में कभी कोई इलाज शुरू नहीं किया। बेटी को हमेशा पुणे में इलाज दिया गया। उसे पुणे में डॉक्टर के पास बार-बार जाना पड़ता है और उसे रिकवरी फिजियोथेरेपी सेशन की भी जरूरत होती है। पीठ ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों और एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज मामलों और जवाबी मामलों के कारण मां के लिए पुणे जाना संभव नहीं है। इसलिए अगर बेटी की कस्टडी मां को दी जाती है, तो उसके लिए पुणे में इलाज जारी रखना संभव नहीं है। दूसरा बच्चा एक साल छोटा है। इस छोटी सी उम्र में जब दोनों बच्चे साथ-साथ बड़े हो रहे हैं। उन्हें इस अवस्था में अलग करना उचित नहीं होगा। याचिकाकर्ता के पिता और भाई अपनी सेवा में व्यस्त हैं। केवल उसकी मां ही है
अदालत की अवमानना मामले में वकील नीलेश ओझा के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई 17 जून तक टली
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट में मंगलवार को पूर्व मुख्य न्यायाधीश और हाई कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों को लेकर अदालत की अवमानना मामले में वकील नीलेश ओझा के खिलाफ सुनवाई 17 जून के लिए टल गई। पिछले दिनों अदालत ने इसको लेकर ओझा, यूट्यूब और एक न्यूज चैनल को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। अदालत ने उनसे पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए? मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे, न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर, न्यायमूर्ति एम.एस.सोनक, न्यायमूर्ति रवींद्र वी.घुगे और न्यायमूर्ति अजय गडकरी की खंडपीठ के समक्ष स्वत: संज्ञान (सुमोटो) याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान नीलेश ओझा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने आज पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आरोप मुक्त आवेदन दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। इसके बाद पीठ ने सुनवाई स्थगित कर दी और अगली सुनवाई 17 जून को रखी है। दिशा सालियान के पिता सतीश सालियान के वकील नीलेश ओझा ने दावा किया कि दिशा ने आत्महत्या नहीं की, न ही उनकी मृत्यु दुर्घटनावश हुई। एक राजनेता, उसके दोस्तों और अंगरक्षकों द्वारा सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।
Created On :   29 April 2025 9:06 PM IST