Mumbai News: साकीनाका में बच्ची से दुराचार मामले में असंवेदनशीलता को लेकर पुलिस को फटकार

साकीनाका में बच्ची से दुराचार मामले में असंवेदनशीलता को लेकर पुलिस को फटकार
  • अदालत ने पुलिस को जांच रिपोर्ट पेश करने का दिया निर्देश
  • अदालत ने निर्देश पर सरकार ने पीड़िता के परिवार को दिया 3 लाख का हर्जाना

Mumbai News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने साकीनाका में 4 साल की बच्ची से दुराचार मामले में असंवेदनशीलता को लेकर मुंबई पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम के तहत आने वाले मामलों को लेकर पुलिस का इस तरह का असंवेदनशील रवैये ठीक नहीं है। अदालत ने साकीनाका पुलिस को बच्ची से दुराचार के मामले में जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने साकीनाका पुलिस स्टेशन के उन 5 पुलिसकर्मियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, पीड़ित बच्ची के परिजनों के साथ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था और उन्हें यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने से हतोत्साहित किया था।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष पीड़िता के परिवार की ओर से वकील अमीत कटरनवरे और वकील पूजा डोंगरे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ के समक्ष साकीनाका पुलिस स्टेशन के वे पांच पुलिसकर्मी पेश हुए, जिन पर पीड़िता के परिवार से असंवेदनशील रवैया अपनाने का आरोप है। पीठ ने पुलिसकर्मियों से पाक्सो मामले में संवेदनशील रवैया अपनाने और अगली सुनवाई पर जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

सरकार की ओर से पेश हितेन वेनेगावकर कहा कि पीड़ित बच्ची के परिवार को हर्जाने के रूप में 3 लाख रुपए दिया गया है। पुलिस ने बच्ची के परिवार का बयान दर्ज किया है। 13 अगस्त को एक किशोर ने चार वर्षीय बच्ची का यौन उत्पीड़न किया था। याचिका में साकीनाका पुलिसकर्मियों के असंवेदनशील रवैये अपनाने और परिवार को शिकायत दर्ज करने से हतोत्साहित करने का आरोप लगाया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील अदालत से अनुरोध किया था कि वह इस मुद्दे को स्वतः संज्ञान में ले। यह बदलापुर मामले जैसा ही है। पीठ ने पुलिस से पूछा था कि क्या पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष दर्ज किया गया था? वेनेगावकर ने जवाब दिया कि 15 अगस्त को एक अनुरोध किया गया था, लेकिन मजिस्ट्रेट अदालत ने इसे 13 सितंबर के लिए निर्धारित किया था। पीठ ने मजिस्ट्रेट अदालतों के इस प्रथा पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि पुलिस द्वारा अनुरोध किए जाने पर, मजिस्ट्रेट को अनुरोध किए जाने के 4 दिनों के बाद 3 से 4 दिनों के भीतर पीड़िता का बयान दर्ज करना होता है।

Created On :   19 Sept 2024 4:19 PM GMT

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