- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- कैंसर रोगियों का मामला और बदलापुर...
बॉम्बे हाईकोर्ट: कैंसर रोगियों का मामला और बदलापुर मामले में विशेष समिति की रिपोर्ट पर अमल नहीं - राज्य सरकार को फटकार

- बॉम्बे हाईकोर्ट ने कैंसर रोगियों के लिए अस्थायी बने शेल्टर को तोड़ने के लिए बीएमसी को लगाया 2 लाख का जुर्माना
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने विशेष समिति की रिपोर्ट पर अमल नहीं किए जाने पर राज्य सरकार को लगाई फटकार
- मुंबई पुलिस आयुक्त विवेक फणसलकर ने राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएसएचआरसी) के ज्वेलर को 10 लाख हर्जाना देने के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कैंसर रोगियों के लिए अस्थायी बने शेल्टर को तोड़ने के लिए मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। टाटा मेमोरियल अस्पताल में इलाज करा रहे कैंसर रोगियों के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए अस्थायी शेल्टर बनाया गया था। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की पीठ ने बीएमसी पर 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि बीएमसी अधिकारियों ने न केवल असंवेदनशील और मनमाने ढंग से काम किया है, बल्कि साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन भी नहीं किया। भारत के संविधान के अनुच्छेद 51-ए और बीएमसी के अधिनियम के तहत निर्धारित मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि किसी भी उचित प्रक्रिया के अभाव में बीएमसी के अधिकारियों ने मनमानी और असंवेदनशील तरीके से याचिकाकर्ता के अस्थाई निर्माण को तोड़ा। इसलिए याचिकाकर्ता को लागत के साथ दोबारा अस्थाई शेल्टर बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। बीएमसी द्वारा की गई अवैध कार्रवाई की गंभीरता को देखते हुए याचिकाकर्ता के पक्ष में लागत 2 लाख रुपए निर्धारित की जा सकती है, जिसका भुगतान बीएमसी द्वारा किया जाएगा। बीएमसी के दोषी अधिकारियों से लागत की राशि वसूलने की स्वतंत्रता होगी। पीठ ने कहा कि यह बिल्कुल दुर्भाग्यपूर्ण मामला था, जहां याचिकाकर्ता मेसर्स मेहता एंड कंपनी के निर्माण को विकास नियंत्रण और संवर्धन विनियमन 2034 (डीसीपीआर 2034) के विनियमन 33(9) के तहत पुनर्विकास योजना के कार्यान्वयन की आड़ में बीएमसी के अधिकारियों द्वारा मनमानी और अवैध रूप से शेल्टर को तोड़ा गया था। याचिकाकर्ता टाटा मेमोरियल अस्पताल से कैंसर का इलाज करवा रहे गरीब और जरूरतमंद कैंसर रोगियों को भोजन और आश्रय जैसी धर्मार्थ सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से शेल्टर का निर्माण किया था। पीठ ने यह भी कहा कि मुंबई जैसे शहर में अस्थायी शेल्टर होम मिलना बहुत मुश्किल है। इसलिए, मुझे यह मानने में कोई संदेह नहीं है कि तोड़ने की कार्रवाई ने न केवल याचिकाकर्ता को उसके अधिकारों से वंचित किया है, बल्कि कैंसर रोगियों को भी इलाज के समय अस्थायी शेल्टर होम के उनके अधिकार से वंचित किया है।
बदलापुर स्कूल में बच्चियों से दुराचार का मामला - बॉम्बे हाई कोर्ट ने विशेष समिति की रिपोर्ट पर अमल नहीं किए जाने पर राज्य सरकार को लगाई फटकार
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने बदलापुर स्कूल में दो बच्चियों से दुराचार के मामले में विशेषज्ञों की समिति के सुझाव पर अमल नहीं किए जाने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यह राज्य भर के स्कूलों के बच्चों की सुरक्षा का मामला है। दोबारा इसी तरह की घटना हो सकती है। हम इस मामले में और अधिक समय नहीं दे सकते हैं। 28 अप्रैल को मामले की अगली सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष स्वत: संज्ञान (सुमोटो) याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने सरकारी वकील से पूछा कि पिछले दिनों समिति ने जो सुझाव दिए थे, उस पर क्या अमल किया गया है। सरकारी वकील ने सरकार से इस पर जानकारी लेने के लिए समय की मांग की। इस पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। यदि सरकार द्वारा समिति की सुझावों पर कोई कदम नहीं उठाए गए, तो हम जुर्माना लगाएंगे। सरकारी वकील ने समिति के सुझाव पर कदम उठाने के लिए समय की मांग की। पीठ ने सरकार को इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया है। पिछले दिनों दो पूर्व हाई कोर्ट न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली समिति ने राज्य के सभी स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य करने, कर्मचारियों का चरित्र सत्यापन, स्कूलों द्वारा सुरक्षित परिवहन की जिम्मेदारी लेने, बच्चों को अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श के बारे में सिखाने, साइबर अपराधों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और प्रमुख स्थानों पर ‘1098’ (बच्चों की हेल्पलाइन) प्रदर्शित करने का सुझाव दिया। पीठ ने सरकार को समिति के सुझावों पर अमल करने का निर्देश दिया था।
ज्वेलर्स से जबरन वसूली मामला - मुंबई पुलिस आयुक्त विवेक फणसलकर ने राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएसएचआरसी) के ज्वेलर को 10 लाख हर्जाना देने के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती
मुंबई पुलिस आयुक्त विवेक फणसलकर ने तीन पुलिसकर्मियों के ज्वेलर से जबरन वसूली करने के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएसएचआरसी) के ज्वेलर्स को 10 लाख रुपए हर्जाना और आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। अदालत ने बुधवार को आयोग के फैसले पर रोक लगा दिया और राज्य सरकार समेत आयोग को नोटिस जारी किया है। दो सप्ताह में मामले की अगली सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष विवेक फणसलकर और परिमंडल-1 के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) प्रवीण मुंढे की दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। दोनों याचिकाओं में राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा 3 दिसंबर 2024 को चार पुलिसकर्मियों के ज्वेलर्स से जबरन वसूली करने के मामले में दिए फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। आयोग ने राज्य के पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त को आरोपी तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 308 (जबरन वसूली) के तहत आजाद मैदान पुलिस स्टेशन पर एफआईआर दर्ज करने और पीड़ित ज्वेलर निशांत जैन को 10 लाख रुपए हर्जाना देने का निर्देश दिया है। जुर्माना की राशि आरोपी पुलिसकर्मियों की से वसूल सकते हैं। साथ ही आयोग के न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के.के.तातेड़ और एम.ए.सईद की दो सदस्यीय पीठ ने राज्य में पुलिस बल को संवेदनशील बनाने और उनमें जिम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिए समय-समय पर सेमिनार आयोजित करने का भी सुझाव दिया। पीठ ने बुधवार को आयोग के फैसले पर रोक लगा दिया और राज्य सरकार समेत आयोग को नोटिस जारी किया है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को उनकी याचिका में बदलाव करने की भी अनुमति दे दी है। आरोप है कि आजाद मैदान पुलिस स्टेशन के पुलिस उप निरीक्षक केजल पानसरे, सुदर्शन बाबुराव पुरी, हवलदार श्रीकृष्ण अर्जुन जयभाई और राजेश पालकर ने 5 मार्च 2024 को ताडदेव के ज्वेलर निशांत जैन को फोन कर चोरी के गहने खरीदने का आरोप लगाते हुए उनसे 50 हजार रुपए की मांग की। पुलिसकर्मियों ने उसी दिन जैन को रात 10.07 बजे हिरासत में अपने साथ ले गए। बाद में उन्हें कथित रूप से झूठे मामले में फंसाने की धमकी देकर उनसे 25 हजार रुपए लेकर छोड़े। जैन ने इसकी शिकायत राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत की।
Created On :   9 April 2025 9:44 PM IST