Mumbai News: सामाजिक कार्यकर्ता को लोकायुक्त कार्यालय के नाम जाली नोटिस तैयार करने के मामले में अग्रिम जमानत

सामाजिक कार्यकर्ता को लोकायुक्त कार्यालय के नाम जाली नोटिस तैयार करने के मामले में अग्रिम जमानत
  • मुंबई सत्र न्यायालय ने दी अग्रिम जमानत
  • सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज
  • लोकायुक्त कार्यालय में एक व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत करना पड़ा भारी

Mumbai News : सत्र न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र रघुनाथ वाहुले को राज्य लोकायुक्त कार्यालय के नाम पर एक व्यक्ति के भ्रष्टाचार के खिलाफ जाली नोटिस तैयार करने के मामले में अग्रिम जमानत दे दी। सामाजिक कार्यकर्ता को एक व्यक्ति के खिलाफ लोकायुक्त कार्यालय में भ्रष्टाचार की शिकायत करना भारी पर गया। उसके खिलाफ मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में जालसाजी की एफआईआर दर्ज करा दी गई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ.एस.डी.तौशीकर ने वकील गणेश गुप्ता की ओर से औरंगाबाद निवासी महेंद्र रघुनाथ वाहुले की दायर अग्रिम जमानत याचिका पर कहा कि प्रथम दृष्टया कथित नोटिस जाली और मनगढ़ंत लगता है। नोटिस के लेखक का पता लगाना जांच तंत्र का काम है। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। याचिकाकर्ता द्वारा जाली दस्तावेज मामले की सुनवाई के लिए दिया गया एक साधारण नोटिस है। इससे किसी को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। उस पर जालसाजी के आरोप हैं, फिर भी मुझे लगता है कि याचिकाकर्ता को हिरासत में लिए बिना भी जांच आगे बढ़ाई जा सकती है। इसलिए कुछ शर्तों पर याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत की अनुमति दी जाती है। याचिकाकर्ता पुलिस की जांच में सहयोग करना होगा। यदि पुलिस याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 465, 468, 471 के तहत गिरफ्तार करती है, तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा।

याचिकाकर्ता के वकील गणेश गुप्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने जिस व्यक्ति के खिलाफ लोकायुक्त कार्यालय में भ्रष्टाचार की शिकायत की गयी थी, उस पर कार्रवाई करने के बजाय याचिकाकर्ता के खिलाफ ही झूठे मामले दर्ज कर लिया गया। जांच अधिकारी गावड़े ने याचिकाकर्ता के अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आम तौर पर लोकायुक्त कार्यालय द्वारा जारी नोटिस में आरोपों का विस्तृत विवरण नहीं होता। नोटिस में केवल पक्षकार का नाम, केस नंबर और सुनवाई की तारीख होती है। जबकि याचिकाकर्ता (सामाजिक कार्यकर्ता) द्वारा जाली नोटिस में व्यक्ति के खिलाफ आरोपों का अनावश्यक विवरण दिया गया है। ऐसा लगता है कि डेस्क अधिकारी और सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर को स्कैन करके जाली नोटिस तैयार करने के लिए उसका दुरुपयोग किया गया है। याचिकाकर्ता को नोटिस दिए जाने के बावजूद वह पुलिस स्टेशन में पेश नहीं हुआ। जाली नोटिस कहां और कैसे तैयार हुआ? यह पता लगाने के लिए याचिकाकर्ता को हिरासत में लेकर पूछताछ करना जरूरी है।

Created On :   31 Oct 2024 2:48 PM GMT

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