Mumbai News: एमबीबीएस के छात्र को राहत नहीं, महिला सरपंच के खिलाफ कलेक्टर का आदेश रद्द

एमबीबीएस के छात्र को राहत नहीं, महिला सरपंच के खिलाफ कलेक्टर का आदेश  रद्द
  • अदालत ने छात्र द्वारा प्रथम वर्ष की परीक्षा में दो विषयों की उत्तर पुस्तिकाओं में मोबाइल नंबर लिखने को माना कदाचार
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने लूट के मामले में आरोपी 18 वर्षीय छात्र को पढ़ाई जारी रखने के लिए दी जमानत
  • बॉम्बे हाई कोर्ट से एक महिला सरपंच के खिलाफ रायगढ़ के जिला कलेक्टर के आदेश को किया रद्द

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से एमबीबीएस के छात्र को राहत नहीं मिली। अदालत ने छात्र के प्रथम वर्ष की परीक्षा में दो विषयों की उत्तर पुस्तिकाओं पर मोबाइल नंबर लिखने को कदाचार माना है। अदालत ने माना कि जब तक एमबीबीएस पाठ्यक्रम का प्रथम वर्ष सभी विषयों में उत्तीर्ण होने सहित सभी मामलों में पूरा नहीं हो जाता, तब तक किसी छात्र को आगे के पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती। हम यहां चिकित्सा पाठ्यक्रम के विषय में बात कर रहे हैं। इस नियम जैसे सख्त गुणवत्ता जांच को बनाए रखा जाना चाहिए। इसलिए उस सलाह की संवैधानिक वैधता या शक्तियों की चुनौती भी खारिज की जाती है। न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर और न्यायमूर्ति एम.एम.साथये की पीठ के समक्ष एमबीबीएस के छात्र की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में छात्रा को एमबीबीएस पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ता के वकील हितेश मिश्रा ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को दूसरे वर्ष के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश करने से पहले प्रथम वर्ष के एमबीबीएस के सभी विषयों को पास करने की आवश्यकता वाले नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध हैं। याचिकाकर्ता ने प्रथम वर्ष के एमबीबीएस में सभी विषयों को पास कर लिया है, इसलिए उसे एमबीबीएस पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिए अन्यथा याचिकाकर्ता एक शैक्षणिक वर्ष खो देगा। नाशिक के महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय की ओर से पेश वकील सचिंद्र शेटे ने कहा कि याचिकाकर्ता ने शीतकालीन-22 सत्र की परीक्षा के दौरान उत्तर पुस्तिका पर अपना मोबाइल नंबर लिखकर एनाटॉमी-I और फिजियोलॉजी-I विषयों में प्रथम एमबीबीएस परीक्षा में उत्तीर्ण अंक देने की अपील करके अनुचित साधनों का सहारा लिया था। यह कदाचार के बराबर है, जिसके लिए निर्धारित दंड की मात्रा संबंधित विषय में संबंधित परीक्षा में उम्मीदवार के प्रदर्शन को रद्द करना है। इसलिए उस नियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती की याचिका खारिज किया जाना चाहिए। पीठ ने छात्रा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को द्वितीय वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति न देने में विश्वविद्यालय का रुख लागू नियमों की सीमाओं के भीतर है। उसे एमबीबीएस प्रथम वर्ष उत्तीर्ण होने तक दूसरे वर्ष का प्रशिक्षण करने की भी अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता को शीतकालीन-2023 सत्र में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की परीक्षा पूरी तरह उत्तीर्ण करने के बाद 12 महीने के कोर्स कर सकता है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हमारे असाधारण याचिका क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने लूट के मामले में आरोपी 18 वर्षीय छात्र को पढ़ाई जारी रखने के लिए दी जमानत

बॉम्बे हाईकोर्ट ने लूट के एक मामले में 18 वर्षीय आरोपी छात्र को जमानत दी है। अदालत ने पाया कि लंबे समय तक हिरासत में रखने से छात्र अपराधी अपराध के चक्र में फंस सकता है, जिससे वह भविष्य में समाज के लिए खतरा बन सकता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया गया है कि उनकी शिक्षा जारी रखने से उसके सुधार में मदद मिल सकती है। पुलिस ने जब आरोपी अविनाश बेनेवाल को 2023 में गिरफ्तार किया, तब वह ठाणे के एक कॉलेज में 12वीं कक्षा में पढ़ रहा था। लूट के सिलसिले में उस पर भारतीय दंड संहिता और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकलपीठ ने अविनाश बेनेवाल की जमानत याचिका अपने फैसले में उसकी कम उम्र और शारीरिक रूप से अक्षमता को ध्यान में रखा। पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता की उम्र 18 वर्ष और 4 महीने थी और उसका कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं था। शिक्षा प्रणाली से एक युवा अपराधी को हटाने से दीर्घकालिक नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। अगर वह अपनी किताबों की ओर लौटता है, तो यह उसे सुधार सकता है। इस स्तर पर उसकी शिक्षा को रोकना और उसे हिरासत में रखना उसे अपराधी बनने के लिए मजबूर कर सकता है। 25 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत देते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि बेनेवाल को आगामी शैक्षणिक वर्ष (2025-26) में अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने का अवसर दिया जाए। यह अदालत केवल आरोपी के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास कर सकती है। यह इस विश्वास पर आधारित है कि वह खुद को सुधारने और कानून का पालन करने वाला जीवन जीने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेगा। अभियोजन पक्ष ने दलील थी कि बेनेवाल ने स्वेच्छा से अपने सह-आरोपियों की पहचान करते हुए एक इकबालिया बयान दिया था, जिसमें कथित गिरोह के नेता सुरेश उर्फ विकी पवार शामिल थे, जिनका गंभीर आपराधिक इतिहास है। राज्य सरकार ने जमानत का विरोध किया, क्योंकि उसे डर था कि बेनेवाल की रिहाई से वह अपराध को फिर से दोहरा सकता है। नौपाड़ा पुलिस स्टेशन में याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर के अनुसार सुबह 9.30 बजे शिकायतकर्ता तीन हाथ नाका के पास टहल रहा था, तभी चार लोगों ने उसे घेर लिया। एक ने उस पर हमला किया और उसका मोबाइल फोन और 1 हजार 8 सौ रुपए छीन लिए। ट्रैफिक कांस्टेबलों ने भागने की कोशिश करते हुए पकड़ लिया। जबकि उसके साथी तीन आरोपी भागने में सफल रहे। एक टेस्ट आइडेंटिफिकेशन (टीआई) परेड ने बेनेवाल की संलिप्तता की पुष्टि की थी।

बॉम्बे हाई कोर्ट से एक महिला सरपंच के खिलाफ रायगढ़ के जिला कलेक्टर के आदेश को किया रद्द

बॉम्बे हाई कोर्ट से एक महिला सरपंच के खिलाफ रायगढ़ के जिला कलेक्टर के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि त्यागपत्र वापस लेने के बाद याचिकाकर्ता के लिए विवाद दायर करने का कोई और कदम उठाना आवश्यक नहीं था। इस सीमा तक मेरे द्वारा लिया गया दृष्टिकोण बबनराव उत्तमराव जाधव (सुप्रा) में पीठ द्वारा लिए गए दृष्टिकोण के अनुरूप प्रतीत होता है। इसलिए मेरे विचार में 15 मार्च 2024 को आयोजित बैठक के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा इस्तीफा वापस लेने के कारण उसका इस्तीफा प्रभावी नहीं हुआ। न्यायमूर्ति संदीप वी. मार्ने की पीठ ने महिला सरपंच कलावती राजेंद्र कोकले की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि कलेक्टर ने गलती से यह निष्कर्ष निकाला कि सरपंच का पद रिक्त हो गया है, बिना इस बात पर विचार किए कि इस्तीफा पहले ही वापस ले लिया गया था। हालांकि कलेक्टर ने बीडीओ की 5 अप्रैल 2024 की रिपोर्ट पर विचार किया है, लेकिन उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा इस्तीफा वापस लेने के बारे में उस पत्र में बीडीओ द्वारा दर्ज किए गए विशिष्ट निष्कर्ष को गलती से नजरअंदाज कर दिया है। पीठ ने यह भी कहा कि कलेक्टर द्वारा 7 जून 2024 के आदेश में सरपंच का पद रिक्त होने के बारे में दर्ज किए गए निष्कर्ष अवैध हैं और उन्हें रद्द किया जाता है। ग्राम पंचायत द्वारा 13 जून 2024 की बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव के माध्यम से प्रतिवादी का चुनाव भी शुरू से ही शून्य है। याचिकाकर्ता ने सरपंच का पद खाली नहीं किया है, इसलिए प्रतिवादी के उस पद पर चुनाव का कोई सवाल ही नहीं है। याचिका में रायगढ़ जिले के ऐनधर तहसील स्थित रोहा गांव के सरपंच के पद पर रिक्ति घोषित करने और सरपंच के रिक्त पद के लिए चुनाव कराने के लिए रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त करने के रायगढ़ के कलेक्टर द्वारा पारित 7 जून 2024 के आदेश को चुनौती दी थी।याचिकाकर्ता कलेक्टर की इस कार्रवाई से व्यथित थी कि सरपंच के पद से उसका इस्तीफा ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 29 के प्रावधानों के तहत प्रभावी हो गया है, भले ही उसने अपने इस्तीफे के सत्यापन के लिए बुलाई गई ग्राम पंचायत की बैठक के दौरान इस्तीफा वापस ले लिया था। ऐनधर ग्राम पंचायत का चुनाव फरवरी 2021 में हुए थे। याचिकाकर्ता चुनाव में ग्राम पंचायत के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई थी। सरपंच का पद पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित था।

Created On :   2 Feb 2025 9:28 PM IST

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